बैंकों को दीमक की तरह चाट रहे हैं बड़े अफसर
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 21, 2018 05:12 AM2018-06-21T05:12:12+5:302018-06-21T05:12:12+5:30
आम आदमी को छोटे-मोटे कर्ज के लिए बैंक अफसर चक्कर पे चक्कर लगवाते हैं। यदि किसी तरह कर्ज मंजूर हो भी गया और किसी वास्तविक कठिनाई या समस्या के कारण वह कुछ किश्तें लौटाने में असफल रहा तो उसकी संपत्ति नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
लोकमत समाचार संपादकीय
बैंकों में जमा जनता की मेहनत की पूंजी लेकर नीरव मोदी, मेहुल चौकसी तथा उससे पहले विजय माल्या के देश से फरार होने के बाद यह सवाल उठने लगा था कि आखिर इतना बड़ा घोटाला बैंक अफसरों की नाक के नीचे कैसे हो गया. खामी बैंकिंग प्रणाली में है या अफसरों की बड़े उद्योगपतियों और व्यवसायियों से साठगांठ है। पहले लगा कि घोटाला सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक में हुआ है लेकिन घोटाले की परतें जब खुलने लगीं तो पता चला कि देश के अधिकांश सार्वजनिक बैंकों का सिस्टम ही भ्रष्ट है।
इस घोटाले को लेकर जो ताजा तथ्य सामने आए हैं, उनसे आम आदमी के मन में उठ रहे संदेह की पुष्टि हो गई कि उच्च स्तर पर बैंक अफसरों की मिलीभगत के बिना नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या जैसे लोग हजारों करोड़ रु. लेकर देश से फरार हो ही नहीं सकते। बैंकों के शीर्ष अफसरों की मेहरबानी का ही नतीजा है कि डूबत कर्ज 8 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर गया है। सरकारें आती रहीं और मौजूदा सरकार का कार्यकाल भी खत्म होने को आ रहा है। जिन लोगों ने बैंकों से कर्ज लेकर उसे वापस नहीं लौटाया है, उनसे कर्ज वसूल करना तो दूर रहा, इसके विपरीत उन पर मेहरबानी ही की जा रही है।
आम आदमी को छोटे-मोटे कर्ज के लिए बैंक अफसर चक्कर पे चक्कर लगवाते हैं। यदि किसी तरह कर्ज मंजूर हो भी गया और किसी वास्तविक कठिनाई या समस्या के कारण वह कुछ किश्तें लौटाने में असफल रहा तो उसकी संपत्ति नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, मगर जो हजारों करोड़ डकार कर बैठे हैं, उनकी संपत्ति को बैंक हाथ लगाने तक की हिम्मत नहीं करते। नीरव मोदी या माल्या जैसे मामले अपने आप में दुर्लभ नहीं हैं।
पुणो में नामचीन बिल्डर डी.एस. कुलकर्णी पर भी बैंक अफसरों ने मेहरबानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जांच के बाद बैंक ऑफ महाराष्ट्र के शीर्ष अधिकारी गिरफ्तार हो गए और एक बार फिर पुष्टि हुई कि बड़े अधिकारियों की इच्छा के बिना बैंकों में घोटाले हो ही नहीं सकते। किसान आत्महत्या के कारणों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि कर्ज वसूली के लिए बैंकों द्वारा दी जाने वाली प्रताड़ना के डर से भी वे आत्महत्या करते हैं। 25-50 हजार या एक लाख के कर्ज की वसूली के लिए जो तौर-तरीके बैंक अधिकारी अपनाते हैं, वे किसानों के आत्मसम्मान पर चोट पहुंचाते हैं और सार्वजनिक रूप में किसान खुद को अपमानित महसूस करते हैं। हजारों करोड़ रु. का कर्ज डुबोने वाले किसी उद्योगपति या व्यवसायी को आज तक किसी ने आत्महत्या करते हुए नहीं सुना। उन्हें कार्रवाई का डर नहीं रहता।
उन्हें मालूम है कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि बैंक सेटलमेंट करेंगे और उन्हें कर्ज का एक छोटा सा हिस्सा ही अदा करना पड़ेगा तथा इसके बाद बैंक फिर से कर्ज देने के लिए तिजोरी खोलकर बैठे ही हैं। बैंकों की सेहत का सीधा असर अर्थव्यवस्था से है। बैंकों में डूबने वाले कर्ज की भरपाई करने में अर्थव्यवस्था की कमर टूट सकती है। अर्थव्यवस्था की सेहत तभी अच्छी रह सकती है, जब बैंक मजबूत हालत में हों। इसीलिए बैंकों का पैसा डुबाने वाले तथा उनसे साठगांठ करने वाले अधिकारी राष्ट्रविरोधी तत्वों से कम खतरनाक नहीं हैं। ये लोग देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर विकास को अवरुद्ध कर रहे हैं और आम आदमी के कल्याण के लिए चलाई जानेवाली तमाम योजनाओं के आर्थिक स्नेतों को बंद कर रहे हैं। सरकार ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनाए जिसमें कर्ज लेने में तो आसानी हो मगर उसे डुबा पाना असंभव हो जाए।
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