अनिल जैन का ब्लॉग: भोपाल गैस त्रासदी से अभी भी जूझ रहे हैं लोग 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 2, 2018 06:00 AM2018-12-02T06:00:09+5:302018-12-02T06:22:21+5:30

अब भी भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने का सैकड़ों टन जहरीला मलबा उसके परिसर में दबा या खुला पड़ा हुआ है।

bhopal gas tragedy People are still battling today | अनिल जैन का ब्लॉग: भोपाल गैस त्रासदी से अभी भी जूझ रहे हैं लोग 

अनिल जैन का ब्लॉग: भोपाल गैस त्रासदी से अभी भी जूझ रहे हैं लोग 

भोपाल गैस त्नासदी को पूरे 34 बरस हो चुके हैं। दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड के कारखाने से निकली जहरीली गैस (मिक यानी मिथाइल आइसो साइनाइड) ने अपने-अपने घरों में सोये हजारों लोगों को एक झटके में हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया था। जिन लोगों को मौत अपने आगोश में नहीं समेट पाई थी वे उस जहरीली गैस के असर से मर-मर कर जिंदा रहने को मजबूर हो गए थे। ऐसे लोगों में कई लोग तो उचित इलाज के अभाव में मर गए और जो किसी तरह जिंदा बच गए उन्हें तमाम संघर्षो के बावजूद न तो आज तक उचित मुआवजा मिल पाया है और न ही उस त्नासदी के बाद पैदा हुए खतरों से पार पाने के उपाय किए जा सके हैं।

अब भी भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने का सैकड़ों टन जहरीला मलबा उसके परिसर में दबा या खुला पड़ा हुआ है। इस मलबे में कीटनाशक रसायनों के अलावा पारा, सीसा, क्र ोमियम जैसे भारी तत्व हैं, जो सूरज की रोशनी में वाष्पित होकर हवा को और जमीन में दबे रासायनिक तत्व भू-जल को जहरीला बनाकर लोगों की सेहत पर दुष्प्रभाव डाल रहे हैं। यही नहीं, इसकी वजह से उस इलाके की जमीन में भी प्रदूषण लगातार फैलता जा रहा है और आसपास के इलाके भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। मगर न तो राज्य सरकार को इसकी फिक्र  है और न केंद्र सरकार को। प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने जो देशव्यापी स्वच्छता अभियान चला रखा है, उसमें भी इस औद्योगिक जहरीले कचरे और प्रदूषण से मुक्ति का महत्वपूर्ण पहलू शामिल नहीं है।  

इस त्नासदी के 34 साल बीत जाने के बावजूद प्रशासन अभी तक त्नासदी में मारे गए लोगों से जुड़े आंकड़े उपलब्ध नहीं करा सका है। गैरसरकारी संगठन जहां इस गैस कांड से अब तक 25 हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने का दावा करते हैं, वहीं राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में 5295 लोग मारे गए और साढ़े पांच लाख लोग जहरीली गैस के असर से विभिन्न बीमारियों के शिकार हुए। मगर हकीकत में संख्या इससे कहीं ज्यादा है, क्योंकि 1997 के बाद सरकार ने गैस पीड़ितों के बारे में पता लगाना बंद कर दिया।

यूनियन कार्बाइड कारखाने के परिसर में रखे गए 350 मीट्रिक टन जहरीले रासायनिक कचरे की वजह से भी हर साल बढ़ते रोगियों के आंकड़े नहीं जुटाए जा रहे हैं। भोपाल गैस त्नासदी के बाद से ही मांग की जाती रही है कि औद्योगिक इकाइयों की जवाबदेही स्पष्ट की जाए। मगर अभी तक सभी सरकारें इससे बचती रही हैं। शायद उनमें इसकी इच्छाशक्ति का ही अभाव रहा है। इसी का नतीजा है कि भोपाल गैस त्नासदी के पीड़ित परिवारों को आज तक मुआवजे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

जो लोग स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां ङोल रहे हैं, उनकी तकलीफों की कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। भोपाल गैस त्नासदी के मामले में जब औद्योगिक कचरे के निपटान में अब तक ऐसी अक्षम्य लापरवाही बरती जा रही है, तो वैसे मामलों में सरकारों से क्या उम्मीद की जा सकती है, जो चर्चा का विषय नहीं बन पाते।

 

Web Title: bhopal gas tragedy People are still battling today

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