भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: किसानों को बढ़ा समर्थन मूल्य क्यों नहीं मिल रहा?
By भरत झुनझुनवाला | Published: October 22, 2018 07:40 AM2018-10-22T07:40:28+5:302018-10-22T07:40:28+5:30
मंडियों में धान जैसी प्रमुख फसल का मूल्य समर्थन मूल्यों से 20 से 50 प्रतिशत कम चल रहा है। यानी बढ़ा हुआ समर्थन मूल्य केवल कागजी कार्यवाही रह गया है और किसान उस लाभ से वंचित है।
पिछले बजट के बाद सरकार ने चिन्हित फसलों के समर्थन मूल्यों में भारी वृद्धि की थी। माना जा रहा था कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी और उनकी समस्या का निदान होगा। लेकिन ताजा समाचार बताते हैं कि किसानों को यह बढ़ा हुआ मूल्य नहीं मिल रहा है।
मंडियों में धान जैसी प्रमुख फसल का मूल्य समर्थन मूल्यों से 20 से 50 प्रतिशत कम चल रहा है। यानी बढ़ा हुआ समर्थन मूल्य केवल कागजी कार्यवाही रह गया है और किसान उस लाभ से वंचित है।
इस दुरूह परिस्थिति का सीधा कारण फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया की निष्क्रियता है। समर्थन मूल्य पर फसल को खरीदने की जिम्मेदारी फूड कार्पोरेशन की होती है। मंडी में फसल का दाम नीचा होने का सीधा कारण है कि फूड कार्पोरेशन द्वारा निर्धारित मूल्य पर खरीद नहीं की जा रही। कहना मुश्किल है कि यह अकुशलता है, भ्रष्टाचार के कारण है या सरकार की सोची-समझी रणनीति अंतर्गत ऐसा हो रहा है।
शंका बनती है कि सरकार के द्वारा फसलों की खरीद जानबूझकर बढ़े हुए दाम पर नहीं की जा रही है। इसका कारण यह है कि प्रमुख फसलों के वैश्विक दामों में गिरावट आ रही है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एवं एग्रीकल्चर के ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार वर्ष 2011 में कृषि उत्पादों का मूल्य सूचकांक 229 था।
2018 में यह घटकर 173 रह गया है। वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों के दामों में गिरावट आ रही है। ऐसी परिस्थिति में फूड कार्पोरेशन के सामने समस्या है कि वह ऊंचे दाम में खरीदे हुए माल का निष्पादन कैसे करेगा? इसका निर्यात करना भी कठिन होगा क्योंकि विश्व बाजार में दाम घट रहे हैं।
इस समस्या का उपाय यह है कि वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जो फर्टिलाइजर, खाद्य सब्सिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि के माध्यम से किसानों को सब्सिडी दी जा रही है उस रकम को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए। इन मदों पर केंद्र सरकार द्वारा हजारों करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रति वर्ष दी जा रही है।
यदि इस रकम को देश के दस करोड़ किसान परिवारों में वितरित कर दिया जाए तो प्रत्येक किसान परिवार को पचास हजार रुपए की रकम प्रति वर्ष सीधे दी जा सकेगी। यह रकम परिवार के लिए अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी।
इसके बाद फर्टिलाइजर, खाद्य सब्सिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि जैसी तमाम योजनाओं को पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है। ऐसा करने से समर्थन मूल्य का झंझट खत्म हो जाएगा। सरकार को न तो इन मदों पर सब्सिडी देनी होगी, न ही उन उत्पादों के निष्पादन के लिए निर्यात सब्सिडी देनी होगी।
फिर भी फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया की जरूरत रहेगी। फूड कार्पाेरेशन की भूमिका होनी चाहिए कि फसलों के दाम में तात्कालिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण रखे। जैसे यदि किसी वर्ष धान का उत्पादन ज्यादा हो तो फूड कार्पोरेशन उसे खरीद कर भंडारण करे। दो साल बाद जब उत्पादन कम हो तब उस भंडारण का वितरण करे।
इस प्रकार फूड कार्पाेरेशन बाजारों में दामों का उतार चढ़ाव नियंत्रित कर सकता है।