भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: टीके की उपलब्धता के लिए WTO की बाधा दूर करने की जरूरत

By भरत झुनझुनवाला | Published: May 20, 2021 08:29 PM2021-05-20T20:29:09+5:302021-05-20T20:29:09+5:30

भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में पर्याप्त मात्रा में कोरोना की वैक्सीन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है. जरूरी है कि कई कंपनियां इसका उत्पादन करें.

Bharat Jhunjhunwala's blog: India needs to release licence to other company also for covid vaccine | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: टीके की उपलब्धता के लिए WTO की बाधा दूर करने की जरूरत

भारत में कोरोना की पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती (फाइल फोटो)

कोविड की महामारी से निजात पाने के लिए इस समय देश में प्रमुख टीका एस्ट्राजेनेका द्वारा बनाया गया ‘कोविशील्ड’ प्रचलन में है. इसे भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा एस्ट्राजेनेका से लाइसेंस लेकर बनाया जा रहा है. इसमें व्यवस्था है कि जिस मूल्य पर सीरम इंस्टीट्यूट इस टीके को बेचेगी उसका आधा हिस्सा एस्ट्राजेनेका को रायल्टी के रूप में दिया जाएगा. 

अत: यदि सीरम इंस्टीट्यूट इस टीके को 150 रुपए में केंद्र सरकार को बेचती है तो उसमें से 75 रुपए एस्ट्राजेनेका को दिया जाएगा. यह रायल्टी इस टीके के महंगे होने का प्रमुख कारण है. सीरम इंस्टीट्यूट का कहना है कि 150 रुपए में से उसे केवल 75 रुपए मिलते हैं, जिस मूल्य पर उसके लिए कोविशील्ड का उत्पादन करना संभव नहीं है. इसलिए सीरम इंस्टीट्यूट राज्यों को 300 रुपए में इसी टीके को बेचना चाहती है, जिसमें से 150 एस्ट्राजेनेका को रायल्टी के रूप में दिया जाएगा.

दूसरा विषय इस रायल्टी की मात्रा का है. 1995 में हमने विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की सदस्यता स्वीकार की थी. डब्ल्यूटीओ की सदस्यता का एक नियम यह था कि ‘प्रोडक्ट’ पेटेंट देना होगा. दो प्रकार के पेटेंट होते हैं. एक ‘प्रोडक्ट’ पेटेंट यानी ‘माल’ के ऊपर दिया गया पेटेंट, और दूसरा ‘प्रोसेस’ यानी बनाने की विधि पर दिया गया पेटेंट. 

इसे आप इस प्रकार समझें कि लोहे की सरिया को एस्ट्राजेनेका ने गर्म करके पट्टी बनाई और उसे बाजार में बेचा. इसमें गर्म करना ‘प्रोसेस’ हुआ और पट्टी ‘प्रोडक्ट’ हुई. 1995 के पूर्व हमारे कानून में व्यवस्था थी कि किसी भी माल या ‘प्रोडक्ट’ को कोई भी व्यक्ति किसी दूसरी प्रक्रिया या ‘प्रोसेस’ से बना सकता है. 

उसी ‘प्रोडक्ट’ को दूसरे ‘प्रोसेस’ से बनाने की छूट थी. जैसे यदि एस्ट्राजेनेका ने लोहे की सरिया को गर्म करके पट्टी बनाया तो दूसरा व्यक्ति उसी सरिया को हथौड़े से पीटकर पट्टी बनाने और एस्ट्राजेनेका की तरह बाजार में बचने को स्वतंत्र था. इसकी तुलना में ‘प्रोडक्ट’ पेटेंट में व्यवस्था होती है कि आप किसी भी प्रक्रिया या ‘प्रोसेस’ से उसी माल जैसे लोहे की पट्टी को नहीं बना सकते हैं. 

इसलिए पूर्व में यदि एस्ट्राजेनेका ने कोविशील्ड बनाई थी तो हमारे उद्यमी उसी टीके को दूसरी प्रक्रिया से बनाने को स्वतंत्र थे. कोविशील्ड को हमारे उद्यमी आज दूसरी प्रक्रिया से बनाने को स्वतंत्र नहीं हैं चूंकि हमने डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार प्रोडक्ट पेटेंट को लागू कर दिया है. और, चूंकि हमारे उद्यमी कोविशील्ड को बनाने को स्वतंत्र नहीं हैं इसलिए हमें एस्ट्राजेनेका को भारी मात्रा में रायल्टी देनी पड़ रही है.

सरकार जारी करे दूसरी कंपनियों के लिए भी लाइसेंस

डब्ल्यूटीओ में व्यवस्था है कि किसी राष्ट्रीय संकट के समय सरकार को अधिकार होगा कि किसी भी पेटेंट को निरस्त करके जबरदस्ती उस माल को बनाने का लाइसेंस जारी कर दे. जैसे यदि आज भारत पर राष्ट्रीय संकट है तो भारत सरकार कोविशील्ड बनाने के लाइसेंस को जबरन खोल सकती है अथवा दूसरे उद्यमियों को इसी टीके को बनाने के लिए हस्तांतरित कर सकती है. 

यह चिंता का विषय है कि इतने भयंकर संकट के बावजूद भारत सरकार कम्पल्सरी लाइसेंस जारी करने में संकोच कर रही है. भारत सरकार ने डब्ल्यूटीओ में दक्षिण अफ्रीका के साथ एक आवेदन अवश्य दिया है कि संपूर्ण विश्व के लिए इन पेटेंट को खोल दिया जाए लेकिन स्वयं भारत सरकार आगे बढ़कर इस कम्पल्सरी लाइसेंस को जारी करने से झिझक रही है. 

इसके पीछे संभवत: भारत सरकार को भय है कि यदि कम्पल्सरी लाइसेंस जारी किया तो संपूर्ण बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारे विरुद्ध लामबंद हो जाएंगी.  

हमें आगे की सोचनी चाहिए. कोविड का वायरस म्यूटेट कर रहा है और अगले चरण में इसके नए रूप सामने आ सकते हैं. इसलिए हमें तत्काल तीन कदम उठाने चाहिए. पहला यह कि केंद्र सरकार को सीरम इंस्टीट्यूट को कोविशील्ड खरीदने के लिए उचित दाम देना चाहिए जिससे कि राज्यों पर अतिरिक्त बोझ न पड़े. 

केंद्र सरकार की भूमिका परिवार के कर्ता यानी पिता की है और राज्य सरकार की भूमिका आश्रित यानी पुत्र की है, इसलिए केंद्र सरकार को उचित दाम देना चाहिए. दूसरा, सरकार को तत्काल एस्ट्राजेनेका ही नहीं बल्कि फाइजर और रूस की स्पुतनिक आदि तमाम टीकों का कम्पल्सरी लाइसेंस जारी कर देने चाहिए, ताकि हमारे देश के उद्यमी इसे पर्याप्त मात्र में बना सकें.

तीसरा, सरकार को भारत की कंपनी भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई कोवैक्सीन का लाइसेंस उन्हें संतुष्ट करते हुए उचित मूल्य पर खरीदकर संपूर्ण विश्व के लिए खुला कर देना चाहिए, ताकि संपूर्ण विश्व की कंपनियां कोवैक्सीन बना कर अपनी जनता को उपलब्ध करा सकें और हम इस संकट से उबर सकें.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's blog: India needs to release licence to other company also for covid vaccine

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