भरत झुनझुनवाला का नजरियाः भविष्य के लिए सौर ऊर्जा पर ही दें पूरा ध्यान

By भरत झुनझुनवाला | Published: February 17, 2019 06:22 AM2019-02-17T06:22:37+5:302019-02-17T06:22:37+5:30

बीते समय में सोलर पैनल बनाने की तकनीकों में इजाफा हुआ है, अब सौर ऊर्जा का उत्पादन मूल्य मात्र 4 रुपए प्रति यूनिट हो गया है 

Bharat Jhunjhunwala's article: focus on solar energy for the future | भरत झुनझुनवाला का नजरियाः भविष्य के लिए सौर ऊर्जा पर ही दें पूरा ध्यान

भरत झुनझुनवाला का नजरियाः भविष्य के लिए सौर ऊर्जा पर ही दें पूरा ध्यान

हमारे लिए पनबिजली  और परमाणु ऊर्जा तो पहले ही लाभप्रद नहीं थी क्योंकि इनके दाम अधिक थे. अब थर्मल का भी सूर्यास्त होने लगा है क्योंकि हमारे पास सौर ऊर्जा का उत्तम विकल्प उपलब्ध हो गया है.  बिजली के चार प्रमुख स्त्नोत हैं. पहला थर्मल यानी कोयले अथवा ईंधन तेल से उत्पादित बिजली का है. दूसरा स्नेत सौर ऊर्जा का है. तीसरा स्नेत पनबिजली यानी जलविद्युत अथवा हाइड्रोपावर का है और चौथा परमाणु ऊर्जा का है. 

इन चार स्नेतों में वर्तमान में सौर ऊर्जा सबसे सस्ती पड़ रही है. जानकारों के अनुसार नई सोलर बिजली का उत्पादन खर्च लगभग चार रुपए प्रति यूनिट है जबकि नई थर्मल बिजली की उत्पादन लागत 5 रुपए प्रति यूनिट आती है. जल विद्युत और परमाणु ऊर्जा की उत्पादन लागत इनसे बहुत अधिक लगभग 7 से 11 रु. प्रति यूनिट आती है. अपने देश में अब तक थर्मल एवं हाइड्रोपावर को प्रोत्साहन दिया जा रहा था. चूंकि हमारे पास कोयले के भंडार एवं नदियां पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं, अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें अपने संसाधनों का सर्वप्रथम उपयोग करना था. 

सौर ऊर्जा का उत्पादन दाम आज से पांच वर्ष पूर्व लगभग 10 रु. प्रति यूनिट पड़ता था. बीते समय में सोलर पैनल बनाने की तकनीकों में इजाफा हुआ है और इसके कारण आज सौर उर्जा का उत्पादन मूल्य मात्न 4 रु. प्रति यूनिट हो गया है. सौर ऊर्जा के इस गिरते दाम से हमको थर्मल एवं हाइड्रोपावर का एक उत्तम विकल्प मिल गया है. अपने देश में सूर्य की रोशनी भी प्रचुर मात्ना में उपलब्ध है. राजस्थान के रेगिस्तान, गुजरात के कच्छ क्षेत्न और कर्नाटक के पठार में विशाल क्षेत्नफल पर सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है. अब तय यह करना है कि हम सौर ऊर्जा को बढ़ावा देंगे अथवा थर्मल को. 

थर्मल बिजली में पहली समस्या सौर ऊर्जा की तुलना में अधिक दाम है और दूसरी समस्या यह है कि यह ग्लोबल वार्मिग यानी धरती के तापमान को बढ़ावा देता है. पूर्व में सूर्य की ऊर्जा को वृक्षों ने ग्रहण कर अपने में रख लिया था. उसी पूर्व की संग्रहीत ऊर्जा को आज हम कोयले के रूप में निकालकर उपयोग करते हैं. कोयले को जलाने से जो कार्बन डाईऑक्साइड उत्पन्न होती है वह धरती के तापमान को बढ़ा रही है. फलस्वरूप रोग और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं. हमारे लिए हाइड्रोपावर और परमाणु ऊर्जा तो पहले ही लाभप्रद नहीं थी क्योंकि इनके दाम अधिक थे. अब थर्मल का भी सूर्यास्त होने लगा है क्योंकि हमारे पास सौर ऊर्जा का उत्तम विकल्प उपलब्ध हो गया है. 

सौर ऊर्जा के विस्तार में मुख्य समस्या यह है कि इसका उत्पादन दिन के समय होता है जब सूर्य की रोशनी धरती पर पहुंचती है. जबकि बिजली की जरूरत सुबह एवं शाम में अधिक होती है. उत्पादन और खपत के समय में गणित नहीं बैठता है. जबकि थर्मल पावर प्लांट में बिजली का उत्पादन 24 घंटे लगातार चलता है. सौर ऊर्जा को बढ़ाना हमारे लिए तभी संभव है जब हम दिन में बनी बिजली का संग्रहण करके इसका उपयोग सुबह और शाम कर सकें. बीते समय में इस प्रकार की कुछ प्रमुख तकनीकें उपलब्ध हो गई हैं. 

एक उपाय पंप स्टोरेज योजना का है. इस योजना में दिन के समय जब सौर बिजली उत्पन्न होती है तब नीचे के तालाब से पानी को उठाकर ऊपर के तालाब में डाल दिया जाता है. इसके बाद जब सुबह और शाम बिजली की जरूरत होती है तब ऊपर के तालाब से पानी को छोड़कर टरबाइन में डालते हुए पुन: नीचे के तालाब में लाया जाता है. हमारे ऊर्जा मंत्नालय के अंतर्गत सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के प्रमुख ने अनुमान लगाया है कि पंप स्टोरेज योजना के माध्यम से दिन की बिजली को सुबह शाम की बिजली में बदलने का खर्च लगभग 50 पैसा प्रति यूनिट आता है. अत: यदि हम चार रुपए में सौर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं और 50 पैसे में इसे सुबह और शाम की बिजली में परिवर्तित कर दें तो हमें सुबह और शाम की बिजली 4.50 रुपए प्रति यूनिट में उपलब्ध हो जाती है जो कि अपने देश के लिए सफल है.

बीते समय में प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस नाम के गठबंधन की आधारशिला रखी थी. उन्होंने विचार किया है कि विश्व के तमाम देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाकर हम विश्व को तेल और कोयले के दुष्प्रभावों से मुक्त कर सकते हैं. यह सोच सही दिशा में है. सरकार को चाहिए कि सौर ऊर्जा के विकास के लिए तमाम देशों को धन उपलब्ध कराने के लिए इंटरनेशनल सोलर बैंक नाम की संस्था बनाए जो कि देशों को सौर बिजली बनाने के लिए मदद करे. 

इस संदर्भ में जल विद्युत का भविष्य डांवाडोल है. जलविद्युत के तमाम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होते हैं. जैसे मछलियों का आवागमन अवरुद्ध होना, नदी की गाद का मैदान में न पहुंचना, नदी के सौंदर्य की हानि होना, पानी की गुणवत्ता में गिरावट आना इत्यादि. वर्ष 2018 में सानंद स्वामी उर्फ जीडी अग्रवाल (पूर्व प्रोफेसर आईआईटी कानपुर) ने मांग की थी कि गंगा पर निर्माणाधीन चार जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त किया जाए. सरकार के द्वारा इस मांग को स्वीकार न किए जाने के कारण उन्होंने 112 दिन के उपवास के बाद अपना शरीर त्याग दिया. वर्तमान में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद इन्हीं जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग को लेकर 114 दिन से मात्न पानी और शहद लेकर तपस्या में लीन हैं. सरकार को विचार करना चाहिए कि जब जलविद्युत महंगी है और इसका भविष्य स्वत: डाउन है तो इन परियोजनाओं को शीघ्र निरस्त करके आत्मबोधानंद के उपवास को खोलने का प्रयास किया जाए.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala's article: focus on solar energy for the future

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