राष्ट्र निर्माण को समर्पित बाबासाहब की पत्रकारिता, डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 14, 2020 06:20 PM2020-04-14T18:20:34+5:302020-04-14T18:20:34+5:30

अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, पाली, संस्कृत, गुजराती, जर्मन, फारसी, फ्रेंच और बांग्ला भाषा के वे अच्छे जानकार थे.डॉ. आंबेडकर अपने समकालीन सभी राजनेताओं की तुलना में सबसे अधिक लिखा करते थे. सामाजिक संघर्ष में हमेशा सक्रिय और व्यस्त होने के बावजूद उनकी किताबें, निबंध, लेख एवं भाषणों का अपार संग्रह है.

Babasaheb's journalism dedicated to nation building, Dr. Visala Sharma's blog | राष्ट्र निर्माण को समर्पित बाबासाहब की पत्रकारिता, डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग

डॉ. आंबेडकर ने अपने सार्वजनिक जीवन में पत्नकारिता के क्षेत्न में बहुत बड़ा योगदान दिया.

Highlightsराजनीति, अर्थशास्त्न, मानव विज्ञान, धर्म, समाजशास्त्न, कानून आदि की कई किताबें लिखी हैं जो उनकी असामान्य विद्वत्ता एवं दूरदर्शिता का परिचय देती हैं.1920 में मूकनायक, 1927 में बहिष्कृत भारत, 1928 में समता, 1930 में जनता एवं 1956 में प्रबुद्ध भारत जैसे क्रांतिकारी पत्नों का संपादन एवं प्रकाशन किया.

राष्ट्र निर्माण और सामाजिक संरचना को दृढ़ बनाने में एक पत्नकार के रूप में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की भूमिका अहम रही है. बाबासाहब को कुल छह भारतीय और चार विदेशी भाषाओं का ज्ञान था.

अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, पाली, संस्कृत, गुजराती, जर्मन, फारसी, फ्रेंच और बांग्ला भाषा के वे अच्छे जानकार थे.डॉ. आंबेडकर अपने समकालीन सभी राजनेताओं की तुलना में सबसे अधिक लिखा करते थे. सामाजिक संघर्ष में हमेशा सक्रिय और व्यस्त होने के बावजूद उनकी किताबें, निबंध, लेख एवं भाषणों का अपार संग्रह है.

उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्न, मानव विज्ञान, धर्म, समाजशास्त्न, कानून आदि की कई किताबें लिखी हैं जो उनकी असामान्य विद्वत्ता एवं दूरदर्शिता का परिचय देती हैं. डॉ. आंबेडकर ने अपने सार्वजनिक जीवन में पत्नकारिता के क्षेत्न में बहुत बड़ा योगदान दिया. 1920 में मूकनायक, 1927 में बहिष्कृत भारत, 1928 में समता, 1930 में जनता एवं 1956 में प्रबुद्ध भारत जैसे क्रांतिकारी पत्नों का संपादन एवं प्रकाशन किया.

डॉ. आंबेडकर ने मूकनायक के माध्यम से पत्नकारिता के क्षेत्न में कदम रखा. मूकनायक दलित समाज का पहला पाक्षिक माना जाता है. इसकी उम्र मात्न 3 साल रही. लेकिन मूकनायक दलित प्रबोधन, दलित शिक्षण, दलित जागृति और दलित संगठन के बीज बोने में सफल रहा. उसी के माध्यम से दलित उद्धार, दलित पत्नकारिता का मार्ग प्रशस्त कर चुका था.

डॉ. आंबेडकर का मानना था- ‘‘जिस तरह पंछियों को पंखों की जरूरत होती है, उसी तरह अपने विचार लोगों तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्न की आवश्यकता होती है.’’ इस उद्देश्य से डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने बहिष्कृत भारत की शुरुआत की. उन्होंने बहिष्कृत भारत के संपादकीय लेख में स्पष्ट किया था कि यह जनता की जागृति के लिए स्वयं ली हुई दीक्षा है.

बाबासाहब ने तीन वर्षो तक अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी इस समाचार पत्न को चलाया. ‘जनता’ अखबार के माध्यम से अछूतों के मुद्दों को जनता के सामने लाने के लिए प्रयास किया. पाक्षिक मूकनायक की शुरुआत कोल्हापुर के शाहूजी महाराज की मदद से की.

प्रबुद्ध-भारत आंबेडकर की पत्नकारिता का शिखर बिंदु बन सकता था लेकिन डॉ. आंबेडकर को महानिर्वाण प्राप्त हो गया. प्रबुद्ध-भारत आंबेडकर की लेखनी से महिमा मंडित न हो सका. लेकिन डॉ. आंबेडकर की पत्नकारिता ने जिन मूल्यों का शुभारंभ किया था वे दलित साहित्य और पत्नकारिता का दर्पण बन गए. इस तरह समाज सेवा और जन जागरण को उन्होंने पत्नकारिता का लक्ष्य बनाकर पत्नकारिता के क्षेत्न में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

Web Title: Babasaheb's journalism dedicated to nation building, Dr. Visala Sharma's blog

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