अवधेश कुमार का ब्लॉगः इन त्रसदियों का जिम्मेदार कौन?
By अवधेश कुमार | Published: February 12, 2019 06:23 AM2019-02-12T06:23:58+5:302019-02-12T06:23:58+5:30
अनेक प्रदेशों में महिलाओं ने शराब के खिलाफ आंदोलन किया है, पर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन जाती है, क्योंकि पूरे समाज का साथ उन्हें नहीं मिलता.
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जहरीली शराब ने जैसा कहर बरपाया है उससे दिल तो दहला ही है, हर विवेकशील व्यक्ति के अंदर गुस्सा पैदा हो रहा है. आखिर यह कैसा समाज है, कैसी शासन व्यवस्था है जहां जीवन को हर क्षण जोखिम में डालने का धंधा खुलेआम चल रहा है. कल्पना करिए कि तीन जिलांे में जहरीली शराब पीने से सैकड़ों लोग असमय मौत के मुंह में समा जाएं, उतनी ही संख्या में बीमार अस्पतालों में मौत से जूझ रहे हों तो तस्वीर आखिर कैसी होगी.
अगर कोई प्राकृतिक आपदा आ जाए और उसमें लोग हताहत हों तो हमें मन मारकर अपनी विवशता स्वीकार करनी पड़ती है, क्योंकि उसमें हम कुछ कर नहीं सकते. किंतु यह तो आमंत्रित मौतें हैं. यह भी नहीं है कि जहरीली शराब से पहली बार लोग काल के गाल में समा रहे हों. कोई ऐसा वर्ष नहीं गुजरता है जिसमें कहीं न कहीं जहरीली शराब से मृत्यु की घटनाएं सामने न आती हों. प्रश्न है कि ऐसा क्यों होता है? वस्तुत: शराब से राजस्व पाने की भूख हर राज्य में शराबखोरी को प्रोत्साहित करती है.
शराब पीने पर कोई पाबंदी नहीं. इसमें संपन्न लोगों के लिए अनेक किस्म की महंगी शराब उपलब्ध हैं जबकि गरीब और निम्न मध्यमवर्ग देसी शराब पर निर्भर है. पूरे देश की यही दशा है. भारत का ऐसा शायद ही कोई राज्य हो जहां से देसी शराबों में जहरीली सामग्रियों के मिश्रण के सबूत नहीं मिले हों. प्रश्न है कि इसके लिए किसे दोषी कहा जाएगा? कौन अपराधी है?
अनेक प्रदेशों में महिलाओं ने शराब के खिलाफ आंदोलन किया है, पर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन जाती है, क्योंकि पूरे समाज का साथ उन्हें नहीं मिलता. सबसे बढ़कर विचार करने वाली बात यह भी है कि क्या देश नशामुक्ति के खिलाफ दृढ़ होकर खड़ा नहीं हो सकता. गांधीजी ने आजादी के एक बड़े लक्ष्य के रूप में नशामुक्ति को रखा था.
आज पूरे देश का ढांचा ऐसा हो गया है कि कोई एक राज्य नशे पर रोक लगाने का कदम उठाता है तो उसे कहीं से सहयोग नहीं मिलता और वह विफल हो जाता है. मुख्य खलनायक तो नशे के लिए कुछ सामग्रियों को कानूनी रूप से मान्य कर देना है. विरोध करने पर राजस्व का तर्क दिया जाता है. किंतु नशे के कारण जो बीमारियां होती हैं, अपराध होते हैं, सामाजिक अशांति होती है उन पर होने वाले खर्च की तुलना करने का साहस सरकारें करें तो राजस्व का सच सामने आ जाएगा.