अवधेश कुमार का ब्लॉग: जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना की दिशा में बहुआयामी कदम
By अवधेश कुमार | Published: August 4, 2019 11:35 AM2019-08-04T11:35:46+5:302019-08-04T11:35:46+5:30
किसी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सीधे जनता तक पहुंचने को लेकर इस दिशा में सोचा ही नहीं था. पंचायत या स्थानीय निकाय के लोग भी जनता के प्रतिनिधि हैं. सरकार की नीति साफ है कि सीधे जनता के पास शासन जाए.
नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में बिल्कुल नए एप्रोच और तेवर के साथ काम कर रही है. अपनी पिछली मन की बात में प्रधानमंत्नी ने शोपियां निवासी मोहम्मद आलम के पत्न की चर्चा करते हुए बताया कि जब वे कम्युनिटी मोबिलाइजेशन कार्यक्रम के तहत बैक टू विलेज आयोजन में शामिल थे तब देश के लोगों को पता चला कि कश्मीर में ऐसा कोई कार्यक्रम हो रहा है.
प्रधानमंत्नी के अनुसार मोहम्मद आलम ने लिखा कि अधिकारी उनके गांव आए और दो दिन रुके. विकास की नीतियों की जानकारी दी, पूछा कि आपके यहां विकास पहुंच रहा है या नहीं. मोहम्मद आलम का कहना था कि ऐसा कार्यक्रम बार-बार होना चाहिए. प्रधानमंत्नी ने कहा कि विकास की शक्ति बम और बंदूक की शक्ति से बड़ी है.
जब गृह मंत्नी अमित शाह दो दिनों के कश्मीर दौरे पर गए थे तो उन्होंने किसी बड़े नेता से मुलाकात नहीं की जो पहले से परंपरा रही है. उन्होंने विकास परियोजनाओं की समीक्षा की, कल्याण कार्यक्रमों के बारे में जानकारी ली, इनसे संबंधित निर्देश दिए और सबसे बढ़कर पंचायत प्रतिनिधियों के संगठन के सदस्यों से लंबी मुलाकात की. निर्वाचित सरपंचों व पंचों के प्रमुख संगठन आल जम्मू-कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के तीस सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने शाह के सामने कई मांगें रखीं. यह पहली बार था जब केंद्र सरकार का प्रतिनिधि ग्राम प्रधानों-सरपंचों आदि से मिला था. वह एक संकेत था कि सरकार की कश्मीर नीति बदल चुकी है. इसी तरह उन्होंने गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोगों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं समझीं.
किसी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सीधे जनता तक पहुंचने को लेकर इस दिशा में सोचा ही नहीं था. पंचायत या स्थानीय निकाय के लोग भी जनता के प्रतिनिधि हैं. सरकार की नीति साफ है कि सीधे जनता के पास शासन जाए. अमित शाह के वापस आने के साथ ही बैक टू विलेज अभियान आरंभ हो गया. इस अभियान के तहत राजपत्रित अधिकारियों ने राज्य की सभी 4,483 पंचायतों में दो दिन और एक रात बिताई. यह कश्मीर के लिए असाधारण घटना थी.
इन अधिकारियों की रिपोर्ट है कि पूरे राज्य में लोग बदलाव चाहते हैं, बेहतर प्रशासन चाहते हैं. शायद कइयों को यह जानकर आश्चर्य हो कि मारे गए आतंकवादी बुरहान वानी के पैतृक गांव त्नाल इलाके के डडसरा में जाकिर मूसा के पिता बैक टू विलेज अभियान में शामिल हुए. जैसा गृह मंत्नी ने पहले ही जानकारी दी थी, अब पंचायतों का पैसा सीधे गांवों के खातों में जा रहा है और उनको अपने गांव के विकास की योजना बनाकर काम करने की आजादी दी गई है.
इससे वहां के नेताओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं. उनको लगता था कि मोदी और शाह जनता तक जाएंगे नहीं, वे तो केवल सुरक्षा बलों के अभियानों तक सीमित रहेंगे. ऐसा भी नहीं है कि केंद्र का फोकस केवल पंचायतों तक है. यह मुख्य फोकस है और रहेगा. किंतु इसके साथ और इसको बल प्रदान करने वाले कई कार्यक्र म चल रहे हैं. इनमें एक है, ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने की कोशिश. गांवों के विकास कार्यक्रम में भी रोजगार पैदा होगा, किंतु इसके अतिरिक्त जितनी विकास परियोजनाएं थीं सबकी समीक्षा कर काम को तेज किया गया है. साथ ही राज्य में अक्तूबर में निवेश शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना है. इसका लक्ष्य है संभावित निवेशकों की आशंकाओं को दूर करना, उन्हें निवेश के लिए प्रेरित करना.
देखते हैं यह कितना सफल होता है, पर इसकी तैयारी गंभीरता से हो रही है. उन क्षेत्नों का चयन किया जा रहा है जहां निवेश ज्यादा सुरक्षित हो तथा उससे लोगों को रोजगार मिले.