अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि मानव हितैषी की बनी हुई है. विश्व के बहुसंख्य देशों की सोच है कि मानवीय संकट या आपदा के काल में भारत हमेशा सेवा, सहयोग और मदद में अपनी क्षमता के तहत आगे रहता है. किसी को संदेह हो तो कैरेबियाई देश डोमिनिकन गणराज्य के प्रधानमंत्नी रूजवेल्ट स्केरिट द्वारा कोरोना टीका के लिए प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को लिखा गया पत्न अवश्य देखना चाहिए.
इसमें लिखा था, ‘दुनिया के विकासशील देशों को अपनी आधी से अधिक खुराक प्रदान करने के लिए ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका के संकल्प के बावजूद हम लंबे समय से टीका नहीं पा सके. हम एक विकासशील छोटा सा द्वीप देश हैं और बड़े देशों से टीके की अधिक मांग और इसके लिए भुगतान करने में असमर्थ हैं. हमारे देश को अक्सर भारत से सहायता प्राप्त करने का सौभाग्य रहा है. 2017 में तूफान मारिया के बाद भारत ने तत्काल राहत के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर तथा आवश्यक बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए 10 लाख अमेरिकी डॉलर प्रदान किया था. 2016 में भारत ने सहायता योजना में अनुदान के एक भाग के रूप में डोमिनिकन के लिए दवा भी प्रदान की थी. हमें उम्मीद है कि अब हम फिर से आपकी उदारता पर भरोसा कर सकते हैं.’
डोमिनिकन रिपब्लिक छोटा देश है लेकिन उसके पत्न का भाव देखिए. यह कोई साधारण बात नहीं है. डोमिनिकन रिपब्लिक से भारत के अच्छे संबंध हैं. उसने 2020 तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारत के साथ अपने संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया था. जब पाकिस्तान चीन की मदद से कश्मीर पर भारत को निशाना बना रहा था, अफगानिस्तान में काम कर रहे निदरेष भारतीयों को सुरक्षा परिषद के 1267 प्रस्ताव के तहत वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने की कोशिश कर रहा था तो उसने इसका विरोध किया. खुलकर भारत का साथ दिया. जाहिर है, भारत उसे निराश नहीं कर सकता. यह एक देश की बात नहीं है. भारत ने पड़ोसी प्रथम नीति के तहत अपनी जरूरतों के अनुसार पर्याप्त भंडार का ध्यान रखते हुए भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, सेशेल्स, श्रीलंका, अफगानिस्तान और मॉरीशस को टीके की आपूर्ति शुरू कर दी है. भारत उनसे धन नहीं लेगा. यह अनुदान सहायता के रूप में है. अनेक देशों ने भारत से खरीदने या अनुदान के रूप में टीका देने का अनुरोध किया और धीरे-धीरे उसकी आपूर्ति की जा रही है. अब तो कनाडा के प्रधानमंत्नी जस्टिन टड्रो ने भी प्रधानंत्नी मोदी से टीके के लिए बात की है.
भारत के टीके के प्रति दुनिया का विश्वास इसका एक पहलू है. इसका दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है, भारत की संवेदनशीलता, मानवीय संकट के समय विश्व समुदाय की अपनी क्षमता के अनुसार सहायता व मदद करने के लिए खड़ा होने का रिकॉर्ड. यह अलग प्रकार की कूटनीति है जो इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इससे देशों के साथ सरकारों के स्तर पर तो हमारे संबंध बेहतर होते ही हैं, वहां की जनता के साथ भी भावनात्मक लगाव मजबूत होता है. ब्राजील के राष्ट्रपति ने टीका मिलने पर आभार के लिए जो ट्वीट किया उसमें हनुमानजी की संजीवनी बूटी के लिए पहाड़ ले जाते हुए तस्वीर है. इस तरह के आभार प्रकटीकरण की कल्पना किसे थी?
यह सीधे व्यापार के लिए किए गए पूंजी निवेश से बड़ा मानवीय पूंजी निवेश है जिसका प्रतिफल हमें लंबे समय तक मिलता रहेगा. यह ऐसा क्षेत्न है जिसमें क्षति की कोई संभावना पैदा हो ही नहीं सकती. अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हमारी चुनौती दुनिया में जिन देशों के साथ है उनमें चीन प्रमुख है.
चीन विश्व में अपनी संपत्ति और सैन्य शक्ति की बदौलत महाशक्ति का रुतबा हासिल करना चाहता है. विचार करिए इस तरह की सेवा कूटनीति हमारे लिए कितना प्रभावी हथियार साबित होगी. परंपरागत रूप से भारत की भूमिका वैश्विक स्तर पर संवेदनशील सहकार और साङोदारी के ध्वजवाहक की रही है. भारत के महाशक्ति होने का हमारा लक्ष्य अमेरिका या पश्चिमी देशों की तरह केवल स्वयं को आर्थिक और सैन्य शक्ति से सबल करके दुनिया पर धौंस जमाना या वर्चस्व कायम करना नहीं बल्कि ऐसी आदर्श शक्ति बनना है जिसे देखकर दुनिया सीखे कि सहयोग और सहकार के साथ कैसे जीवन जिया जा सकता है.