अवधेश कुमार का ब्लॉग: कोरोना के खिलाफ संकल्प
By अवधेश कुमार | Published: April 15, 2020 11:21 AM2020-04-15T11:21:51+5:302020-04-15T11:21:51+5:30
पहले 21 दिन और अब 19 दिन यानी कुल मिलाकर 40 दिन होते हैं. प्रधानमंत्नी के संबोधन से यह संकेत मिलता है कि जिन क्षेत्नों में स्थिति बिल्कुल नियंत्नण में दिखेगी वहां कुछ गतिविधियों की सीमित छूट मिल सकती है.
निस्संदेह, पूरा देश प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के संबोधन की प्रतीक्षा कर रहा था. हालांकि लॉकडाउन का विस्तार होगा इसे लेकर किसी को भी संदेह नहीं था, क्याेंकि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित राज्यों की बैठक में ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने भी इसी की मांग की थी. उसमें एक भी राज्य ने लॉकडाउन का विरोध नहीं किया था.
जैसा प्रधानमंत्नी ने कहा कि नागरिकों की तरफ से भी यही सुझाव आ रहा था. तमाम पूर्वोपाय एवं प्रयासों के बावजूद कोरोना जिस तरह फैल रहा है उसने पूरे विश्व को पहले से कहीं ज्यादा चिंतित और सतर्क कर दिया है. वास्तव में आज विश्व की भयावहता को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न यही था कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई अब आगे कैसे बढ़े और हम इसको कैसे नियंत्नण में लाएं. विश्व का अनुभव यही है कि कोविड 19 से बचाव ही विकल्प है और उसके लिए लॉकडाउन एकमात्न अस्त्न है.
कोरोना जैसी दुनिया को भयाक्रांत कर चुकी महामारी के बीच देश में पैदा हुए भय और चिंता को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वो सारे तथ्य बताए कि कैसे समय रहते कदम उठाकर अपने देश को संभाल कर रखा है जिसमें एक-एक व्यक्ति का योगदान है. यानी आप सब यदि अनुशासन और संयम का पालन नहीं करते तो भारत को सुरक्षित रखना संभव नहीं होता.
विश्व के आंकड़ों को देखते हुए उनका यह कहना बिल्कुल सच है कि इंटीग्रेटेड एप्रोच न अपनाया होता, समय पर तेज फैसले न लिए होते तो आज भारत की स्थिति क्या होती इसकी कल्पना से ही रोएं खड़े हो जाते हैं. इसका मतलब हुआ कि सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन का लाभ देश को मिला है.
इसकी देश को आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है, सारी वैश्विक संस्थाएं भारत की विकास दर में भारी गिरावट का आंकड़ा दे रही हैं. लेकिन किसी देश की पहली प्राथमिकता वहां के नागरिकों की जीवन रक्षा है. हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर इस प्राथमिकता पर हमारी सफलता बेहतरीन है और दुनिया में इसकी प्रशंसा हो रही है. प्रधानमंत्नी ने देशवासियों के लिए सप्तपदी के रूप में जो सूत्न दिया वह पूरे संबोधन की आत्मा थी.
उसका पूरी तरह पालन किया जाए जो संभव है, तो निश्चय ही हम कोरोना पर विजय पाएंगे.
सप्तपदी का हमारे यहां कई तरह का शास्त्नीय महत्व है. इसमें शरीर और मन पर नियंत्नण के लिए योग भी है. उसमें अनुशासन की सीख है तो बुजुर्गो की देखभाल एवं घर के बनाए मास्क पहनने की अपील भी. उसमें यदि व्यवसायों एवं उद्योगों में काम करने वालों के प्रति नियोजकों से संवेदनशीलता बरतने का फिर आग्रह है तो गरीबों का ध्यान रखने के लिए संपूर्ण देश को प्रेरित करने का भाव. इसका सीधा संदेश यही है कि सरकारों को जो करना है वो करेंगी, लेकिन बगैर समाज के सहयोग के कोरोना महामारी से लड़ाई तथा इससे उत्पादित सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और चुनौतियों से निपटना संभव नहीं होगा.
इसलिए एक होकर पूरा देश इसमें योगदान करे. बावजूद इसके हमारे सामने कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं. क्या इसी तरह संपूर्ण लॉकडाउन लागू रहेगा? इसमें कुछ छूट मिलने की संभावना है? तीन मई को यह खत्म हो जाएगा या फिर इसे बढ़ाने की नौबत आ जाएगी? वास्तव में इन तीनों प्रश्नों का उत्तर भविष्य की स्थिति पर निर्भर करेगा.
पहले 21 दिन और अब 19 दिन यानी कुल मिलाकर 40 दिन होते हैं. प्रधानमंत्नी के संबोधन से यह संकेत मिलता है कि जिन क्षेत्नों में स्थिति बिल्कुल नियंत्नण में दिखेगी वहां कुछ गतिविधियों की सीमित छूट मिल सकती है. इस मायने में अगले एक सप्ताह यानी 20 अप्रैल तक हर थाने, हर जिले, हर राज्य में कोरोना स्थिति की समीक्षा की जाएगी. यानी जो क्षेत्न अपने यहां लॉकडाउन का पूरी तरह पालन करते हुए कोरोना से बचने में सफल दिखेंगे, हॉट स्पॉट नहीं बढ़ने देंगे, जहां हॉटस्पॉट की संभावना कम होगी, वहां पर कुछ जरूरी गतिविधियों की सशर्त छूट मिल सकती है, लेकिन अगर उसमें फिर से लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं होता तो ये छूट वापस ले ली जाएंगी.
इस तरह भविष्य की एक मोटामोटी तस्वीर साफ हो गई है. इसमें हर भारतवासी का दायित्व बढ़ गया है कि आत्मानुशासन, संयम और सतर्कता से लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करे.