अवधेश कुमार का ब्लॉग: पलायन करती भीड़ और हमारी व्यवस्था
By अवधेश कुमार | Published: March 31, 2020 01:09 PM2020-03-31T13:09:44+5:302020-03-31T13:09:44+5:30
सड़कों पर पलायन करते कामगारों और उनके परिवारों का उमड़ा सैलाब किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर से हिला देने वाला है. कहीं कोई सवारी नहीं, खाना-पीना उपलब्ध नहीं, लेकिन साहस के साथ ये पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर चले जा रहे. राजधानी दिल्ली के गाजीपुर एवं आनंद विहार सीमा के पास इतनी भारी संख्या में ये आ गए कि पुलिस के सामने हार मान जाने के अलावा कोई चारा नहीं था.
महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा आदि से भी इस तरह पलायन देखा गया है. हालांकि दिल्ली जैसी विस्फोटक स्थिति कहीं पैदा नहीं हुई. लॉकडाउन का मतलब है कि जो जहां है वही अपने को कैद कर ले. कोरोना महामारी के प्रकोप से बचने का यही एकमात्र विकल्प है. लेकिन ये जीवन में पैदा हुए अभाव, या पैदा होने वाले अभाव के भय, पीठ पर किसी आश्वासन भरे हाथ के न पहुंचने तथा अन्य प्रकार के भय एवं कई प्रकार के अफवाहों के कारण पलायन कर रहे हैं. कोई भी सामान्य स्थिति में सैकड़ों मील दूर पैदल जाने के लिए तैयार नहीं होगा. छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं को देखकर सहसा विश्वास ही नहीं होता कि सरकार की इतनी घोषणाओं और व्यवस्थाओं के बावजूद ये इस तरह स्वयं को निराश्रित और भयभीत महसूस कर सकते हैं.
हालांकि इस दृश्य को देखने के बाद गृह मंत्रालय सक्रिय हुआ. सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने पत्र लिखकर 14 अप्रैल तक लॉकडाउन के दौरान सभी प्रवासी कृषि, औद्योगिक व असंगठित क्षेत्न में काम करने वाले मजदूरों के लिए खाने-पीने और ठहरने की उचित व्यवस्था करने को कहा. कहा गया कि बड़ी तादाद में पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों और अन्य लोगों को बीच रास्ते में ही रोक कर उन्हें समझाया जाए और उनकी देखरेख की जाए.
गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्रियों से भी बात की. राज्य आपदा प्रबंधन की राशि खर्च करने की अनुमति दी गई. अब राज्यों को सक्रिय देखा गया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने हर जिला प्रशासन और पुलिस को बाजाब्ता आदेश जारी किया कि इनको रोककर उनके रहने, खाने-पीने का प्रबंध किया जाए. प्रशासन इस पर काम करते देखा जा रहा है. इसी तरह का प्रबंध करते अन्य राज्यों को देखा गया है. किंतु जो लोग निकल पड़े उनमें से ज्यादातर की मानसिकता किसी तरह अपने मूल स्थान, परिवार तक पहुंच जाने की बन जाती है.
बेशक, यह उन राज्य सरकारों की विफलता है जहां से ये पलायन कर रहे हैं. लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही दैनिक मजदूरी से लेकर, प्रतिदिन कमाई के आधार पर जीने तथा छोटे-मोटे कारखानों, कार्यालयों, होटलों, रेस्तरां आदि में काम करने वालों की देखरेख का समुचित प्रबंध करने और उन तक पहुंचने की पूरी कोशिश होनी चाहिए थी. इसी तरह झूठ और अफवाह न फैले इसका भी प्रबंध होना चाहिए था।