अवधेश कुमार का ब्लॉग: विस्थापित कश्मीरी पंडित क्या घाटी में वापस लौट पाएंगे?
By अवधेश कुमार | Published: July 21, 2019 01:00 PM2019-07-21T13:00:55+5:302019-07-21T13:00:55+5:30
कश्मीरी हिंदुओं की वापसी का मुद्दा फिर एक बार चर्चा में है. भाजपा महासचिव तथा जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने कहा है कि पार्टी कश्मीर घाटी में विस्थापित हिंदुओं के पुनर्वास की तैयारी कर रही है.
कश्मीरी हिंदुओं की वापसी का मुद्दा फिर एक बार चर्चा में है. भाजपा महासचिव तथा जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने कहा है कि पार्टी कश्मीर घाटी में विस्थापित हिंदुओं के पुनर्वास की तैयारी कर रही है. कश्मीर घाटी के मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं को दोबारा से बसाया जाएगा. उनके अनुसार इस प्रस्ताव को आलाकमान की मंजूरी मिल चुकी है. राम माधव नरेंद्र मोदी सरकार में न होते हुए भी कश्मीर मामलों के रणनीतिकारों में शामिल हैं. हालांकि उन्होंने विस्तार से और बिल्कुल सुस्पष्ट तरीके से हिंदुओं की वापसी तथा उनके पुनर्वास की जानकारी नहीं दी लेकिन अगर उन्होंने कहा है तो इसका अर्थ साफ है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने जा रही है.
नरेंद्र मोदी सरकार-2 के एजेंडा में इस समय कश्मीर समस्या का आंतरिक समाधान सर्वोपरि है. नरेंद्र मोदी सरकार-1 में भी कश्मीरी पंडितों की वापसी प्राथमिकता में थी. पीडीपी के साथ सरकार गठित करने के बाद हिंदुओं के लिए कॉलोनियां बनाने की योजना सामने आई. हालांकि जब इस पर गंभीरता से काम आरंभ हुआ तो अलगाववादी ताकतों ने विरोध करना शुरू कर दिया. वे कहने लगे कि हम हिंदुओं यानी पंडितों के लिए अलग कॉलोनियां बनने नहीं देंगे. वे पहले जहां थे वहां आकर रहें हम स्वागत करेंगे. सुनने में अच्छा लगता है कि वे जहां से गए वहीं आकर बसें. किंतु व्यावहारिक स्थिति अलग है. आखिर हिंदू या सिख वहां से अपने-आप तो गए नहीं.
माहौल ऐसा बनाया गया जिसमें राज्य व्यवस्था हिंदुओं-सिखों की रक्षा करने में विफल रही. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 2008 में दी गई अपनी रिपोर्ट में बताया था कि आतंकवाद से मजबूर होकर 24 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों के परिवार ने कश्मीर छोड़ दिया था.
अब प्रश्न है कि उनको लौटाया कैसे जाएगा? इसके प्रयास पूर्व में भी हुए हैं. 2008 में यूपीए सरकार ने एक योजना बनाई थी. इसमें वापस जाने वाले परिवारों को आठ लाख रु पया दिया जाना था. किंतु उन्हें वहीं जाना था जहां से वे आए थे. आतंकवाद के रहते हुए कश्मीरी हिंदू इसके लिए तैयार न थे. कश्मीरी हिंदुओं के संगठनों ने साफ कर दिया कि वो उस क्षेत्न में रहेंगे जहां किसी की दखलंदाजी न हो. इस पहल में ज्यादा गंभीरता नहीं थी और संकल्पबद्धता तो खैर थी ही नहीं. मोदी सरकार ने गंभीर कोशिश करनी चाही लेकिन पीडीपी के साथ सरकार चलाने की मजबूरी में उस तरह दृढ़ता से आगे नहीं बढ़ सकी जिस तरह बढ़नी चाहिए थी.
उस समय जानकारी दी गई कि 100 एकड़ जमीन चिह्न्ति की जा चुकी है तथा काम प्रगति पर है. जून 2018 में बताया गया कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए घर बनाने का काम शुरू हो गया है. सरकार इनके लिए क्लस्टर आधारित मकान बना रही है. पैकेज के रूप में घर वापसी करने वाले प्रति परिवार को 21-21 लाख रु पए देने की भी योजना थी, ताकि वे फिर कश्मीर में अपने जीवनयापन का साधन खड़ा कर सकें. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 62 हजार कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर देश के अन्य भागों में रह रहे हैं. योजना बंद नहीं हुई है. जानकारी के अनुसार घाटी के दक्षिणी इलाके अनंतनाग, उत्तरी इलाके बारामूला और कुपवाड़ा में क्लस्टर बनाए जा रहे हैं. श्रीनगर में भी क्लस्टर बनाएंगे.
कश्मीरी पंडितों ने चार प्रमुख मांगें सरकार के सामने रखी थीं. एक, केंद्र सरकार सम्मान और सुरक्षा के साथ उनका पुनर्वास करवाए. दो, उम्रदराज के लिए अलग से पैकेज व नीति हो. यानी इनके लिए 21 लाख से अलग राशि की व्यवस्था हो. तीन, 1990 से अब तक हुई कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की एसआईटी जांच हो. और चार, दक्षिण कश्मीर में पनुन कश्मीर के रूप में रहने के लिए अलग से जगह मिले. ये मांगें ऐसी हैं जिनको स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.