अवधेश कुमार का ब्लॉग: विचारधारा के प्रति निष्ठावानों का अभाव

By अवधेश कुमार | Published: November 6, 2019 01:05 PM2019-11-06T13:05:32+5:302019-11-06T13:05:32+5:30

भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार की दृष्टि से देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी की तुलना में अपनी मूल विचारधारा के प्रति यह ज्यादा समर्पित और मुखर है. इसके बावजूद पार्टी मशीनरी में सरकार के अंदर शामिल मंत्रियों तथा सांसदों, विधायकों या सांसद, विधायक बनने की चाहत रखने वालों की भूमिका वैसी नहीं है जिससे आप बड़ा जोखिम उठाकर निश्चिंत होकर आगे बढ़ सकें.

Avadhesh Kumar blog: Lack of loyalty to ideology | अवधेश कुमार का ब्लॉग: विचारधारा के प्रति निष्ठावानों का अभाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

निश्चित विचारधारा वाली किसी पार्टी के लिए सबसे पहली प्राथमिकता यही हो सकती है कि उसकी पार्टी मशीनरी यानी कार्यकर्ता-नेता उन विचारों और लक्ष्यों के प्रति समर्पित हों. अगर आप सत्ता के लिए संघर्ष करते हैं तो यही पार्टी मशीनरी आपका नि:स्वार्थ भाव से साथ देगी. 

भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार की दृष्टि से देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी की तुलना में अपनी मूल विचारधारा के प्रति यह ज्यादा समर्पित और मुखर है. इसके बावजूद पार्टी मशीनरी में सरकार के अंदर शामिल मंत्रियों तथा सांसदों, विधायकों या सांसद, विधायक बनने की चाहत रखने वालों की भूमिका वैसी नहीं है जिससे आप बड़ा जोखिम उठाकर निश्चिंत होकर आगे बढ़ सकें. हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में यह पूरी तरह स्पष्ट हुआ है.

जनसंघ की स्थापना की पृष्ठभूमि के मूल विचारों में जम्मू-कश्मीर का संपूर्ण विलय शामिल था. पूरे संघ परिवार के एक-एक कार्यकर्ता के लिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का खात्मा महान सपने जैसा था.   

स्थापना के समय से देखा गया कश्मीर का सपना मोदी सरकार ने 5 अगस्त को पूरा किया. महाराष्ट्र, हरियाणा विधानसभा चुनाव भाजपा की दृष्टि से इस ऐतिहासिक कदम के बाद आया था. इसमें एक-एक कार्यकर्ता को जी-जान से काम करना चाहिए था. लेकिन हुआ क्या?

दोनों राज्यों के चुनावों में भाजपा के अंदर असंतोष, विद्रोह और उदासीनता की भावना प्रबल थी. भाजपा सरकारों की एक समस्या सत्ता में आने पर एरोगेंस व्यवहार की रही है. कार्यकर्ताओं और समर्थकों की परवाह न करना, उनकी अनदेखी और कई बार उनका अपमान तक करने का व्यवहार केंद्र से प्रदेश तक साफ दिखाई देता है. 

प्रदेशों में यह ज्यादा है. इससे मंत्रियों, विधायकों और नेताओं के प्रति गुस्सा और असंतोष स्वाभाविक है. अगर आप गहराई से दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करेंगे तो आंकड़े आईने की तरह साफ कर देंगे कि भाजपा ने ही भाजपा का अंकगणित बिगाड़ दिया. विद्रोहियों ने दोनों राज्यों में कहर बरपाया. हरियाणा, महाराष्ट्र चुनाव इस मायने में भाजपा के लिए सबक है.

Web Title: Avadhesh Kumar blog: Lack of loyalty to ideology

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