अवधेश कुमार का ब्लॉग: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने की चुनौती

By अवधेश कुमार | Published: May 6, 2019 06:07 AM2019-05-06T06:07:08+5:302019-05-06T06:07:08+5:30

भारत के लिए अमेरिकी प्रतिबंध की घोषणा तब भी चिंता का कारण थी और आज भी है. हमारे लिए सऊदी अरब एवं इराक के बाद तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता ईरान ही रहा है.

Avadhesh Kumar Blog: Challenge for India to deal with US sanctions on Iran | अवधेश कुमार का ब्लॉग: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने की चुनौती

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो।

दो मई से अमेरिका द्वारा ईरान से कच्चे तेल की खरीद पर लगी पाबंदी से मिली छूट समाप्त होने के साथ चिंता के कई प्रश्न खड़े हो गए हैं. इनमें सबसे प्रमुख तेल की आपूर्ति एवं उसके मूल्यों में वृद्धि की संभावनाओं से निपटना है. हालांकि यह अचानक पैदा हुई परेशानी नहीं है. अमेरिका ने अप्रैल 2018 में ही ईरान के साथ पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के काल में हुई नाभिकीय संधि को खत्म करने की घोषणा के साथ स्पष्ट कह दिया था कि सभी देश ईरान से तेल आयात शून्य पर ले आएं और 4 नवंबर 2018 को उसने पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया. अमेरिका ने चीन, भारत, जापान, द. कोरिया, ताइवान, तुर्की, इटली और यूनान को छह माह के लिए ईरान से तेल आयात की छूट दी थी.  

भारत के लिए अमेरिकी प्रतिबंध की घोषणा तब भी चिंता का कारण थी और आज भी है. हमारे लिए सऊदी अरब एवं इराक के बाद तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता ईरान ही रहा है. ईरान के साथ तेल आयात का बड़ा लाभ यह है कि उसके बड़े अंश का रुपयों में भुगतान होता है. अमेरिकी प्रतिबंध की घोषणा के बाद भारत ने ईरान से एक समझौता किया जिसके अनुसार 2 मई 2019 तक ईरान से हर महीने 12.5 लाख टन कच्चा तेल खरीदा गया. इस तरह छह महीने में हमने ईरान से करीब 1.25 करोड़ टन तेल आयात किया है. 

यहां एक बड़ा प्रश्न ईरान के साथ संबंधों के भविष्य का भी है. भारत के ईरान के साथ सांस्कृतिक-राजनीतिक एवं आर्थिक संबंध काफी गहरे हैं. तेल की भूमिका इसमें छोटी है. भारत ईरान पर पूरी तरह प्रतिबंध के साथ नहीं जा सकता. भारत ने वहां काफी निवेश किया हुआ है. भारत ने वहां चाबहार बंदरगाह विकसित किया है जिसके साथ सड़क एवं रेल मार्ग विकसित करने सहित कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है. चीन से वहां हमारी सीधी प्रतिस्पर्धा है.

पिछले वर्ष अमेरिकी प्रतिबंधों की घोषणा के बाद तत्कालीन विदेश सचिव विजय गोखले ने ईरान की यात्ना कर आश्वासन दिया कि भारत उसे मंझधार में नहीं छोड़ेगा. उस दौरान आपसी व्यापार दोगुना करने का निश्चय हुआ. तो ईरान के साथ भारत व्यापारिक संबंधों को खत्म नहीं कर सकता. किंतु समस्या भुगतान की आने वाली है.

दोनों देश व्यापार के कुछ हिस्से का ही रुपयों में भुगतान करते हैं. दोनों देश अपना पूरा कारोबार रुपए में तभी कर सकते हैं, जब जितना माल भारत आता हो, उतनी ही कीमत का ईरान को जाता हो. ऐसा नहीं है. अमेरिका एवं यूरोप के वर्चस्व वाली बैंकिंग प्रणाली में परस्पर भुगतान संभव नहीं है. यह एक बड़ी बाधा है जिसकी काट तलाशनी होगी. साथ ही अमेरिका भारत को द्विपक्षीय व्यापार में सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाला देश है. इसलिए उसके बिल्कुल विरुद्ध जाना भी विघातक होगा. तो इसके बीच संतुलन साधने की चुनौती है. 

Web Title: Avadhesh Kumar Blog: Challenge for India to deal with US sanctions on Iran

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