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अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: ध्रुवीकरण की कोशिश ने भाजपा को पहुंचाया नुकसान

By अभय कुमार दुबे | Updated: June 5, 2024 11:32 IST

आम चुनाव 2024 में भाजपा ने अगर अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया है और अकेले दम पर बहुमत नहीं पा सकी है तो उसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं.

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ठळक मुद्देभाजपा ने नकारात्मक तरीके से अपना चुनाव प्रचार अभियान चलाया. कांग्रेस के घोषणापत्र को उसने मुस्लिम लीग का घोषणापत्र करार दिया और उसके नेता लगातार मुस्लिमों के खिलाफ बातें करते रहे. सारी विरोधी पार्टियों पर उसने मुस्लिमों की एजेंट होने का आरोप मढ़ दिया.

आम चुनाव 2024 में भाजपा ने अगर अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया है और अकेले दम पर बहुमत नहीं पा सकी है तो उसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं. पहली बात तो यह कि भाजपा ने नकारात्मक तरीके से अपना चुनाव प्रचार अभियान चलाया. कांग्रेस के घोषणापत्र को उसने मुस्लिम लीग का घोषणापत्र करार दिया और उसके नेता लगातार मुस्लिमों के खिलाफ बातें करते रहे. 

सारी विरोधी पार्टियों पर उसने मुस्लिमों की एजेंट होने का आरोप मढ़ दिया. उसके नेता लोगों को डर दिखाते रहे कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो आपकी भैंस खोल कर ले जाएगी, महिलाओं का मंगलसूत्र छीन लेगी और ये सब ‘घुसपैठियों’ और ‘अधिक बच्चे पैदा करने वालों’ को दे दिया जाएगा. यह कहते हुए उनका इशारा मुसलमानों की तरफ था.

लोगों ने जब भाजपा के 2014 और 2019 के चुनाव प्रचार अभियानों से वर्तमान चुनाव अभियान की तुलना की तो उन्होंने महसूस किया कि पिछले चुनाव विकास के वादे पर लड़े गए थे, जबकि इस बार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की गई. दरअसल भारत की आम जनता उदारता और समरसता में विश्वास रखती है, कट्टरता उसे पसंद नहीं है. 

इसलिए ध्रुवीकरण की कोशिश का उल्टा ही असर हुआ और भाजपा का जो कट्टर समर्थक नहीं था, वह वर्ग उससे छिटक गया. यही कारण है कि आज भाजपा सबसे बड़ा दल होते हुए भी गठजोड़ सरकार बनाने के लिए मजबूर है. लेकिन इसके लिए भी उसकी राह आसान नहीं है. उसके गठजोड़ पार्टनर भी सोचेंगे कि अपमान सहकर उसके साथ रहना क्या उचित होगा?

 जिन चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की आज मिलाकर 30 के करीब सीटें आ रही हैं, वे अपने साथ किए गए व्यवहार को भूले नहीं होंगे. नायडू ने काफी पहले से भाजपा के साथ गठजोड़ की कोशिश शुरू कर दी थी, लेकिन भाजपा उनकी उपेक्षा कर वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी के साथ समझौते की कोशिश करती रही और आखिरी वक्त में जाकर नायडू के साथ समझौता किया. 

नीतीश कुमार की तो एग्जिट पोल आने के बाद तक उपेक्षा की गई, क्योंकि उसमें दिखाया गया था कि भाजपा अकेले दम बहुमत हासिल करने वाली है. इसीलिए नीतीश ने जब चुनाव के बाद भाजपा नेताओं से मिलने की कोशिश की तो उन्हें कोई भाव नहीं दिया गया था. ऐसी परिस्थिति में गठबंधन के साथी अब भाजपा का कितना साथ देते हैं, यह देखने वाली बात होगी.

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