एन. के. सिंह का ब्लॉग: सभी के लिए होगा 11 दिसंबर का संदेश
By एनके सिंह | Published: December 9, 2018 08:17 AM2018-12-09T08:17:11+5:302018-12-09T08:17:11+5:30
देश के वक्ष-स्थल में स्थित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जनता से अगर कोई एक संदेश आता है तो वह पूरे देश का भाव भी व्यक्त करता है।
तमाम एक्जिट पोल और सर्वे पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बारे में विरोधाभासी निष्कर्ष दे रहे हैं। मुमकिन है इन परिणामों के अगले दिन से ही मीडिया में एक और चर्चा गर्म हो जाए - इन राज्यों के राज्यपाल की भूमिका को लेकर। ज्यादा दिन नहीं हुए, गोवा और कर्नाटक में हमने यह स्थिति देखी। लेकिन सरकार चाहे जैसे बने - जनमत से, तिकड़म से या पैसे से, एक बात साफ है, मत प्रतिशत के तराजू पर भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा हल्का पड़ेगा और कांग्रेस का भारी।
देश के वक्ष-स्थल में स्थित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जनता से अगर कोई एक संदेश आता है तो वह पूरे देश का भाव भी व्यक्त करता है। हम महज यह कह कर इन चुनाव परिणामों के संकेत को खारिज नहीं कर सकते कि राजस्थान में तो हर चुनाव में सत्ता बदलने की आदत रही है और मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में वोटर 15 वर्षो से एक ही चेहरा देख कर थक चुका था। अगले चार माह बाद देश में आम चुनाव होने हैं।
इस संदेश को या तो सत्ताधारी भाजपा शुतुरमुर्ग के भाव से देखे या फिर इस पर गौर करे कि जो जन-स्वीकार्यता का सैलाब साढ़े चार साल पहले आया था वह कहीं धीरे-धीरे कम तो नहीं होता जा रहा है। इन राज्यों में विकास के काम और जन-कल्याण के उत्पाद की डिलीवरी में कोई कमी नहीं थी सन् 2013 के चुनाव के मुकाबले। इस चुनाव में देश के प्रधानमंत्नी और अपेक्षाकृत सबसे लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी ने हरसंभव प्रयास भी किया और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी बूथ के स्तर तक प्रबंध किया और प्रतिबद्ध लोगों को तैनात किया और चूंकि संघ का इस क्षेत्न में गढ़ रहा है लिहाजा इस जबरदस्त प्रतिबद्धता वाले संगठन का भी पूरा सहयोग मिला।
उधर कांग्रेस को भी आत्म -निरीक्षण करना होगा कि जो भी जन-मत उसके पक्ष में बढ़ा उसके कारण क्या हैं। क्या उसके प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है या केवल सत्तापक्ष से नाराजगी के कारण उसे केवल एक विकल्प ही माना गया है। अगर दूसरी बात सही है तो कांग्रेस को इस बात से डरना चाहिए कि कल अगर इन कमियों को दूर करने का भरोसा प्रधानमंत्नी मोदी और भाजपा की ओर से मिलता है और कहीं जनता का भरोसा एक बार फिर बन जाता है तो कांग्रेस के लिए अच्छी स्थिति नहीं रहेगी।
भाजपा को अगले चार महीनों में खोया विश्वास जीतने के लिए दिन-रात एक करना पड़ेगा। खरीफ की खरीद जारी है। राज्यों में फैले भ्रष्ट सरकारी तंत्न जो राज्य की सरकारों के हैं और जहां आम तौर पर भाजपा का शासन है वहां एक सख्त संदेश देना होगा कि कम से कम नए बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर किसानों के उत्पाद की तत्काल खरीद शुरू करें, भ्रष्टाचार और बिचौलियों से हर हाल में छुटकारा पाते हुए। चुनाव के दौरान रबी फसल कटाई व गेहूं बिकवाली किसान शुरू कर चुका होगा।
फसल बीमा एक बेहद कारगर योजना होगी बशर्ते अमल में आ सके। राज्य सरकारों की अकर्मण्यता के कारण एक बेहतरीन योजना परवान नहीं चढ़ सकी। अभी भी वक्त है, रबी के सीजन में ओले पड़ेंगे ही। लिहाजा त्वरित गति से दावों का निपटारा करते हुए किसानों को पैसा देना होगा। स्वास्थ्य बीमा भी जमीन पर नजर नहीं आ सकी है। सब्जी खासकर टमाटर, प्याज और आलू जो किसान मजबूरन दो रुपए किलो बेचता है वह शहरों में 30 रुपए किलो बिकता है महज इसलिए कि आज तक ग्रामीण क्षेत्नों में या कस्बों में शीत-भंडारण की व्यवस्था नहीं हुई है। किसान इससे भी नाराज है।
लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने गुजरात चुनाव और उसके बाद की नीति अपनाई और जिसके तहत पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिरों में जाने लगे। साथ ही दिग्विजय -मणिशंकर ब्रांड परंपरागत राजनीति खत्म की गई और इस ब्रांड के नेताओं को बैरक में बंद कर दिया गया। इससे उदारवादी हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग उसके साथ होने लगा है। दरअसल यह वर्ग किसी भी कट्टरवादी या आक्रामक हिंदुत्व के खिलाफ रहा है। यही कारण है कि अपने को हिंदुओं का प्रतिनिधि और मोदी को ‘हिंदू-हृदय सम्राट’ बताने वाली भाजपा को आजाद भारत के इतिहास में कभी भी 31।3 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले, जबकि देश में हिंदू 79 प्रतिशत हैं।
सन् 2014 की मोदी की जन-स्वीकार्यता (उनके विकास के वादे पर भरोसे के कारण) का काल छोड़ दें तो इस पार्टी को कांग्रेस से हमेशा कम वोट मिलते रहे हैं और सन् 1998 (सन् 2014 को छोड़ कर सबसे अधिक 25।6 प्रतिशत ) के बाद से इसका मत प्रतिशत लगातार 1999, 2004 और 2009 में गिरता रहा है। इसलिए दोनों बड़े दलों को अपना बगैर शुतुरमुर्गी बचाव किए और बगैर आत्म-मुग्ध हुए अगले चार महीने में अथक परिश्रम करना होगा।