अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: रेलवे में शानदार कामयाबी लेकिन चुनौतियां बेशुमार

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 28, 2020 11:41 AM2020-02-28T11:41:24+5:302020-02-28T11:41:24+5:30

1 अप्रैल, 2019 से अब तक एक भी रेल दुर्घटना में किसी मुसाफिर की जान नहीं जाना भारतीय रेल की स्थापना से अब तक के 166 सालों के दौरान की एक सराहनीय उपलब्धि है.

Arvind Kumar Singh: Great success in railways but the challenges are endless | अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: रेलवे में शानदार कामयाबी लेकिन चुनौतियां बेशुमार

अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: रेलवे में शानदार कामयाबी लेकिन चुनौतियां बेशुमार

भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली भारतीय रेल की संसद के भीतर और बाहर तमाम मोर्चो पर आलोचना होती रहती है. यात्नी इसकी कई सेवाओं से असंतुष्ट रहते हैं और कई दूसरे कोण भी हैं. लेकिन 2019-20 के वित्तीय वर्ष के 11 महीनों के दौरान उसने जो बेहतरीन सुरक्षा रिकार्ड बनाया है वह दरअसल भारतीय रेल इतिहास में दर्ज होने जैसी घटना बन गया है. 

1 अप्रैल, 2019 से अब तक एक भी रेल दुर्घटना में किसी मुसाफिर की जान नहीं जाना भारतीय रेल की स्थापना से अब तक के 166 सालों के दौरान की एक सराहनीय उपलब्धि है. इस शानदार कामयाबी पर रेल प्रशासन का उत्साहित होना स्वाभाविक है लेकिन इससे दूसरे मोर्चो पर भी मुसाफिरों की अपेक्षाएं बढ़ना स्वाभाविक है.

दरअसल भारतीय रेल की यह कामयाबी रातोंरात किसी चमत्कार की देन नहीं है. हाल के वर्षो में सुरक्षा और संरक्षा पर खास ध्यान देने और भारी निवेश करने का यह परिणाम है. 2017-18 के  दौरान एक लाख करोड़ रुपए का राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाने के बाद कुछ खास क्षेत्नों में प्राथमिकता के साथ काम हुए. बीते साल ही भारतीय रेल का संरक्षा रिकार्ड यूरोपीय मापदंडों के बराबर आ गया था और उससे भी पहले टक्कर रोधी उपकरणों की स्थापना,  ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम जैसी कई पहल के साथ सिग्नलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण शुरू किया गया था. संचार और सूचना क्रांति ने भी भारतीय रेल के संरक्षा तंत्न को बेहतर बनाने में मदद की.

यह विचित्न संयोग है कि रेल बजट के अस्तित्व के दौरान सुरक्षा और संरक्षा के मुद्दे पर रेल मंत्रियों को सबसे अधिक आलोचना का शिकार होना पड़ा था. 2017 में रेल बजट और आम बजट के समाहित होने के बाद यह बदलाव हुआ है. रेल बजट को आम बजट में समाहित करने के पैरोकार रहे रेल मंत्नी सुरेश प्रभु को खुद अपना मंत्नी पद रेल दुर्घटनाओं के नाते छोड़ना पड़ा. यही नहीं लाल बहादुर शास्त्नी जैसी महान हस्ती को भी रेल मंत्नी पद नैतिक आधार पर रेल दुर्घटना के नाते त्यागना पड़ा था. 

बेशक सुरक्षा-संरक्षा के मोर्चे पर भारतीय रेल ने जो प्रगति की है उसका श्रेय मौजूदा रेल मंत्नी पीयूष गोयल को मिलेगा. लेकिन बजट सत्न के दूसरे चरण में संसद के दोनों सदनों में रेलवे के कामकाज पर व्यापक चर्चा होनी है जिसमें निजीकरण के मुद्दे के साथ तमाम मसलों पर आलोचनाओं को भी ङोलना पड़ेगा.

भारतीय रेल ने हाल के सालों में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. मानव रहित रेल फाटकों को समाप्त करने के बाद एक बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य 27 हजार किमी लंबी लाइनों का विद्युतीकरण कर सारी बड़ी लाइनों को सौ फीसदी विद्युतीकृत करना है. पहली बुलेट ट्रेन की शुरुआत भी 15 अगस्त 2022 तक हो जाए इस पर काम तेजी से चल रहा है. 

लेकिन रेलवे में 15.24 लाख स्वीकृत पदों की तुलना में कर्मचारियों की रिक्तियां 3.06 लाख से अधिक हो चुकी हैं, जिसमें संरक्षा श्रेणी में 1.62 लाख पद खाली हैं, जिस तरफ ध्यान देने की बहुत अधिक जरूरत है.

बेशक भारतीय रेल रोज ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर मुसाफिरों को ढो रही है और अपने विशाल नेटवर्क के साथ यह देश का सबसे बड़ा नियोजक और परिवहन का मुख्य आधार स्तंभ बनी हुई है. कोयला, खाद्यान्न और कई थोक वस्तुओं के साथ यात्नी परिवहन में इसकी अहम भूमिका है. लेकिन इसके सामने चुनौतियां भी कोई कम नहीं हैं.

Web Title: Arvind Kumar Singh: Great success in railways but the challenges are endless

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