बाल तस्करी विश्वभर की एक बेहद चुनौतीपूर्ण समस्याः रेस्क्यू किये बच्चों के लिये प्रभावी पुर्नवास की आवश्यकता

By अनुभा जैन | Published: May 8, 2021 03:35 PM2021-05-08T15:35:53+5:302021-05-08T15:36:53+5:30

नेशनल हयूमन राइट कमिशन ऑफ इंडिया के अनुसार हर साल 40 हजार बच्चे अपहरण किये जाते है और करीब 11 हजार मीसिंग की श्रेणी में होते हैं जिनका कोई पता नहीं होता है।

Anubha Jain blog about Child trafficking is a very challenging problem around the world | बाल तस्करी विश्वभर की एक बेहद चुनौतीपूर्ण समस्याः रेस्क्यू किये बच्चों के लिये प्रभावी पुर्नवास की आवश्यकता

Photo credit: Children pic.jpg - FXB INDIA SURAKSHA

Highlightsहर साल कई बच्चे गायब हो जाते हैं। 2011 के एक रिपोर्ट अनुसार आज हर 10 बच्चों में एक बच्चा बाल श्रम का शिकार है।

बाल तस्करी आज विश्वभर में बेहद चुनौतीपूर्ण समस्या बनी हुयी है जो कि बड़ी संख्या में बच्चों को हर दिन प्रभावित कर रही है। 18 वर्ष से कम उम्र के बालक बालिकाओं का शोषण के उददेश्य से देश या विदेश में बेचना/भेजना/लगाना/प्रयोग करना बाल तस्करी के अंतर्गत आता है। आज गरीबी और दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी से हमारी अर्थव्यवस्था पर पडे दुष्प्रभावों के चलते लोगों में बढती बेरोजगारी ऐसे कुछ कारण हैं जिनसे पिछडे गरीब तबके के परिवारों को अपने बच्चों को इस आग में झोंकना पड़ रहा है।

बीच में ही विद्यालय छोड़ने वाले बालक बालिका सबसे ज्यादा बाल तस्करी के शिकार होते हैं। बाल तस्करी की गिरफ्त में आने वाले बच्चे शारीरिक शोषण, अवैध रूप से गोद लेने, पेड अनपेड वर्कर, अमान्य विवाह के तौर पर उपयोग में लाये जाते हैं । और कभी कबार मानव अंग की तस्करी के लिये उन्हे मार तक दिया जाता है। इसी तरह आतंकवादी समूहों में शामिल कर लिये जाते हैं। अतः यह एक गैंग व माफिया आधारित प्रक्रिया है। इसलिये तस्करी किये बच्चों की खोज व डेटा कलेक्शन बेहद जोखिम भरा होता है।

बाल तस्करी को दिनोंदिन बढ़ता देख केंद्र ने राज्यों को गरीब परिवारों पर पैनी नजर रखने की दरखास्त की है ताकि ये परिवार पैसे के लिये अपने बच्चों को बेच ना सकें। इसके अंतर्गत टराइबल मिनिस्टिरी, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइटस और कई एन.जी.ओ आज इन बच्चों व उनके परिवारों को सरकार की कई लाभकारी योजनाओं से जोड़ रहे हैं। 

नेशनल कराइम रिकोर्ड ब्यूरो के अनुसार बाल अपराधों के कुल 1,48,185 केसेज 2019 में दर्ज किये गये जो 4.5 प्रतिशत अधिक थे 2018 में दर्ज 1,41,764 केसेज की तुलना में। बच्चों के हित में बने कई कानूनों में से एक महत्वपूर्ण कानून बाल श्रम प्रतिषेध और विनियमन अधिनियम 1986, 2016 में संशोधित, बताता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के रोजगार पर प्रतिबंध है। वही बालक या बालिका अपने परिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटा सकता है लेकिन किसी खतरनाक कार्य में नहीं।

सरकार व एन.जी.ओ के दखल और प्रयासों के बावजूद भी आज बाल तस्करी का ग्राफ उठाव की तरफ ही है। कानून के अनुसार जो भी 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे या किशोर को कार्य या रोजगार में लगाता है उसे 6 माह से 2 वर्ष तक के कारागार और 20 हजार से 50 हजार तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। 1098 पर कॉल करके बाल तस्करी व श्रम की रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है। बच्चे किसी मिडीएटर के माध्यम से राजस्थान से बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व झारखंड बाल श्रम के लिये तस्करी किये जाते हैं। 

मुझे बेहद अचंभा हुआ यह जानकर जब पूजा दायमा, चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट ने यह जानकारी दी की राजस्थान में बच्चे अधिकतर नमक, पटाखे, कारपेट वीविंग, लाख की चूडियों और दक्षिण राजस्थान में बीटी कॉटन के फैक्टरीज में अधिकतर कार्यरत हैं। हर दिन 14 से 16 घंटों की भीषण परिस्थितियों में ये बच्चे बहुत कम या बिल्कुल ना के बराबर वेतन में काम करते हैं।

पूजा कहती है जयपुर के रामगंज, शास्त्री नगर, भटटा बस्ति बाल तस्करी के गढ हैं। राजस्थान की ही एक बच्ची जो की अपने माता पिता के द्वारा महज 50 हजार रूपये में पैसों के लालच में मुंबई के बार मालिक को बेच दी गयी। जिसे पूजा व उनकी टीम ने बचाया और परिवार की काउंसलिंग कर आज वह बच्ची अपने घर पर राजस्थान में सुरक्षित जीवन जी रही है। इसी तरह हाल ही में बिहार से जयपुर तस्करी कर लाये 5 बच्चों को छुडाया गया। पूजा कहती हैं ये बच्चे चूडियों के कारखाने में 18 घंटे की विषम परिस्थितियों में काम कर रहे थे। 

एफ.एक्स.बी भारत सुरक्षा एन.जी.ओ के सत्यप्रकाश कहते हैं कि तस्करी से बचाकर लाये इन बच्चों को रेस्क्यू करने के बाद सरकारी रिइंटीग्रेशन प्रोग्राम के फॉलो अप सही प्रकार से नहीं होने, मोनिटरिंग, सरकारी योजनाओं व अन्य मौद्रिक सहायता के अभाव में पुनः तस्करी के जाल में फंसना बेहद आसान है। मन्ना बिसवास, चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर, यूनिसेफ, राजस्थान के अनुसार बाल तस्करी में बचाये गये बच्चों के लिये रिहेबिलिटेशन प्रोग्राम को सही तरह से लागू करने की आवश्यकता है। एजेंसी जिनमें डिस्टरिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट, डिस्टरिक्ट चाइल्ड वेल्फेयर कमिटी और चाइल्ड लेबर टास्क फोर्स जिम्मेदार हैं रिहेबिलिटेशन प्लान बनाने में जो आवश्यक है बच्चों की पुनः होने वाली तस्करी रोकने में।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि बचाये गये बच्चों को सतत माहौल प्रदान करने के लिये होलिस्टिक अप्रोच से कार्य करे । रिहेबिलिटेशन फोलो-अप प्रक्रिया सभी स्तर पर गठित कमेटियों द्वारा पैनी निगरानी के साथ होनी चाहिये। एक सकारात्मक परिणाम के तौर पर आज शिक्षा और सजगता की वजह से जहां एक ओर बच्चों को बाल श्रमिक के तौर पर लोग रखने में कतराने लगे हैं वहीं बाल तस्करी के खिलाफ अब एफ.आई.आर भी दर्ज होने लगी हैं। पर स्थिति अभी भी बेहद खराब है।

Web Title: Anubha Jain blog about Child trafficking is a very challenging problem around the world

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