देश के गौरव को और बढ़ाने के लिए प्रेरित करता अमृत महोत्सव, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग
By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 17, 2021 12:26 PM2021-03-17T12:26:51+5:302021-03-17T12:28:02+5:30
75वीं वर्षगांठ का समारोह 15 अगस्त 2023 तक चलेगा. अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 81 लोगों ने पदयात्रा शुरू की.
आजादी का अमृत महोत्सव सुनते हुए भारतवर्ष की सार्वभौम सत्ता और अस्मिता की स्मृति हमारे मानस में कौंध जाती है जिसे प्राणों की आहुति और दृढ़ संकल्प के तेज ने संभव किया था.
आजादी का क्षण भारत के असंख्य स्वतंत्नता सेनानियों के संघर्ष, समर्पण और बलिदान की अमर गाथाओं को अपने में संजोए हुए है. यह उस प्रतिज्ञा की भी याद दिलाता है जो सारे देश ने एकजुट होकर गुलामी का प्रतिकार करने के लिए ली थी. बारह मार्च की तिथि इसलिए भी खास हो गई कि इसी दिन 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध निहत्थे नमक सत्याग्रह का आरंभ हुआ था जो अपने ढंग का अकेला था और सारे विश्व का ध्यान आकृष्ट कर सका था.
पूरे राष्ट्र ने सारे भेदों को भुला कर मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने की ठानी थी. आज देश स्वतंत्नता की दीप शिखा को संजोने के लिए कृतसंकल्प है और नए दम-खम के साथ देश की आगे की जय यात्ना के लिए तत्पर हो रहा है. पर यह तत्परता और जज्बा निरी भौतिक सत्ता से कहीं अधिक भारत के भाव से उपजता है जो समाज के रक्त और मज्जा में जाने कब से घुला-मिला हुआ है.
यह सही है कि एक देश के रूप में भी भारत की भौगोलिक सीमाएं हैं जो व्यावहारिक स्तर पर एक भूखंड का स्वामित्व निर्धारित करती हैं, पर हम साक्षी रहे हैं कि भूगोल भी इतिहास का विषय बन रहा है. अखंड भारत दो-दो बार विभाजित हुआ और अब कम से कम तीन राष्ट्र राज्य के रूप में विश्व राजनीति के खाते में दर्ज हो चुका है परंतु यह भी सही है भारत और भारतीयता का विचार हजारों साल की सभ्यता और संस्कृति की यात्ना के बीच पुष्पित-पल्लवित हुआ है. वेद मंत्न अपने मूल रूप में आज भी जीवंत हैं.
भारत सिर्फ भूगोल और इतिहास न होकर एक जीवंत अस्तित्व को व्यक्त करता है जिसमें विचारों के साथ जीवन के अभ्यास भी शामिल हैं. यह अस्तित्व अखंड, अव्यय, सकल और समग्र जैसे शब्दों के साथ पूर्णता की ओर ध्यान खींचता है. यह दृष्टि सब कुछ को, सबको देखने पर जोर देती आ रही है. जैसा कि गीता में कहा गया है, सभी प्राणियों में विद्यमान एक अव्यय भाव को देखना और भिन्न-भिन्न पदार्थो में बंटते हुए देख कर भी अविभक्त देखना ही सात्विक ज्ञान है. इसके पीछे निश्चय ही यह अनुभव रहा होगा कि सबको सबकी जरूरत पड़ती है और कोई भी पूरी तरह से निरपेक्ष नहीं हो सकता.
गौरतलब है कि महात्मा गांधी समेत सभी नए पुराने चिंतकों ने सीमित आत्म या स्व के विचार को अपरिपक्व और नाकाफी पाया है. इसीलिए ब्रrा का विचार हो या सत्व, रज और तम की त्रिगुण की अवधारणा - इन सबमें अपने सीमित स्व या अहंकार (स्वार्थ) के अतिक्रमण की चुनौती को प्रमुखता से अंगीकार किया गया है. अहंकार ही अपने पराए का भेद चौड़ा करते हुए प्रतिस्पर्धा और संघर्ष को जन्म देता है.
यही प्रवृत्ति आगे बढ़कर अपने परिवेश और पर्यावरण के नियंत्नण और दोहन को भी जन्म देती है. विश्लेषण और विविधता से बहुलता की दृष्टि पनपती है संश्लेषण के बिना बात नहीं बनती है. बहुलता की प्रतीति एकता की विरोधी नहीं होती है : एकं सद विप्रा: बहुधा वदंति. एक विचार के रूप में भारत विविधताओं को देखता पहचानता हुआ एकत्व की पहचान और साधना में संलग्न रहा है.
इस विराट भाव की अभिव्यक्ति स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और महर्षि अरविंद के चिंतन में प्रकट हुई. इन सबने विकास, प्रगति और उन्नति की कामना में पूर्व की परंपरा को आत्मसात करते हुए उसमें जोड़कर आगे बढ़ने पर बल दिया है, न कि ज्यों के त्यों के स्वीकार की. एक जीवंत भारत एक समग्र रचना है जिसका अपना व्यक्तित्व है, जो उसके सभी अंशों के योग से अधिक है.
यह एक बहुस्तरीय और बहुआयामी अवधारणा है. आर्थिक, भौतिक, मानसिक, राजनीतिक, सामाजिक परिवेशीय और सांस्कृतिक तत्व हैं. जैसे स्वास्थ्य का अर्थ मात्न रोगहीनता न होकर एक सकारात्मक स्थिति होती है वैसे ही देश की जीवंतता भी एक सकारात्मक स्थिति है. इसे हम कई तरह से देख सकते हैं.
राष्ट्र का पुरुषार्थ निष्क्रि यता, असहायता और क्लान्ति की परिस्थिति से ऊपर उठकर जीवन स्पंदन को व्यक्त करता है. आज कई मोर्चो पर कार्य आवश्यक है. इनमें आम जनों का जीवन स्तर ऊपर उठाना, औद्योगिक उत्पादन, राजनीतिक सत्ता का विकेंद्रीकरण, जन स्वास्थ्य के स्तर की उन्नति, नागरिक सेवाओं की गुणवत्ता और सुभिता, प्रशासन में पारदर्शिता, सांस्कृतिक संसाधनों और विरासत को सुरक्षित कर समृद्ध करना प्रमुख है. देश ने कोविड महामारी के दौरान और टीकाकरण के क्र म में जिस क्षमता का परिचय दिया है उसने वैश्विक नेतृत्व का दर्जा दिलाया है.
देश ने स्वदेशी और आत्म निर्भरता की भावना से अपनी नीतियों को नए रूप में ढालने का काम शुरू किया है. शिक्षा नीति का जो ढांचा स्थापित किया जा रहा है उससे देश को बड़ी आशाएं हैं. यह सब संवेदनशील नौकरशाही और आधार संरचना में सुधार के साथ आचारगत शुद्धता की भी अपेक्षा करता है. स्वतंत्नता का अमृत महोत्सव हमें इसी का आमंत्नण देता है.