विजय दर्डा का ब्लॉग: छोटे गांव से चीन को शाह का कड़ा संदेश
By विजय दर्डा | Published: April 17, 2023 11:25 AM2023-04-17T11:25:44+5:302023-04-17T11:25:44+5:30
हमारे लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती चीन है जो हमें परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ता. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीमा पर बसे गांव किबिथू पहुंचकर जो हुंकार भरी है उसकी गूंज चीन को जरूर सुनाई दे रही होगी. चीन को अब समझ लेना चाहिए कि यह 1962 का हिंदुस्तान नहीं है. हमारी फौज तो हमारी सबसे बड़ी ताकत है ही, हमारे युवा भी बेहद पराक्रमी हैं. तुम्हें हर क्षेत्र में पछाड़ने की हम ताकत रखते हैं...!
हिंदुस्तान की अंदरूनी राजनीति में सरकार पर हमेशा ही यह आरोप लगता रहा है कि चीन की आक्रामक नीति के खिलाफ भारतीय प्रतिउत्तर उतना कड़क नहीं होता जितना कड़क पाकिस्तान के खिलाफ होता है. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो. आम आदमी की भावना भी करीब-करीब ऐसी ही रही है. लेकिन पिछले सप्ताह अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा से महज 29 किलोमीटर दूर स्थित केवल 1900 की आबादी वाले आखिरी भारतीय गांव किबिथू से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने निडर और स्पष्ट संदेश दिया है. यह 1962 का हिंदुस्तान नहीं है. हमारी एक इंच जमीन भी कोई हड़प नहीं सकता.
हाल ही में चीन ने तीसरी बार अपने मानचित्र पर अरुणाचल के कुछ और शहरों के नाम बदल दिए. हिंदुस्तान ने प्रतिरोध के लिए केवल अस्वीकार्य कहा तो ये आरोप फिर चस्पा हुआ कि इतनी नरमी क्यों? इसके तत्काल बाद अमित शाह वाइब्रेंट विलेज योजना की शुरुआत करने किबिथू जा पहुंचे.
सबसे पहले आपको ये बता दें कि ये वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम है क्या? पूरी दुनिया जानती है कि चीन अपनी रणनीति के तहत सीमा पर बसे गांवों के विकास का हवाला देकर युद्ध की तैयारियां करता रहा है. अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक उसने ऐसी सड़कें बना लीं कि सीमा पर तेजी से अपने सैनिक पहुंचा सके. उसने नए गांव भी बसा लिए. इसका जवाब यही हो सकता था कि हम भी सरहद के अपने गांवों तक सुविधा पहुंचाएं. इसके लिए 4800 करोड़ की केंद्रीय योजना को मंजूरी मिली है जिसमें से 2500 करोड़ रुपए केवल सड़कों के लिए है.
अरुणाचल, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल और लद्दाख में सीमा से सटे 19 जिलों के 2967 गांवों को वाइब्रेंट विलेज बनाया जाना है. किबिथू इस योजना का पहला गांव बना है.
अब सवाल है कि सबसे पहले किबिथू ही क्यों? तो चलिए झांकते हैं इतिहास में. 1962 में भारतीय और चीनी फौज के बीच इस गांव में भीषण जंग हुई थी. 21 अक्तूबर 1962 को कुमाऊं रेजिमेंट के छह अधिकारियों ने बहादुरी की जो मिसाल पेश की वह कमाल की थी. चीनियों को पीछे हटना पड़ा. मिलिट्री इतिहास में इस जंग को भारतीय सेना के लिए अत्यंत सम्मान की नजर से देखा जाता है. इसीलिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम शुरू करने के लिए किबिथू पहुंचने को चीन को संदेश देने के लिए उठाया गया कदम माना जा रहा है.
अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से यह गांव करीब 600 किलोमीटर दूर है. इस इलाके में चीन की सीमा की ओर यह सबसे आखिरी गांव है लेकिन अमित शाह ने यह कह कर चीन को कड़क संदेश दिया है कि नजरिया बदल चुका है. अब यह आखिरी नहीं बल्कि पहला गांव है. नजरिया बदलने का संदेश हमने जी-20 की बैठक को लेकर भी दे दिया है. चीन ने बहुत विरोध किया लेकिन जी-20 की ईटानगर में बैठक हुई और उसमें 50 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा भी लिया.
जी-20 की बैठक अब 22 से 24 मई तक श्रीनगर में होगी. हो सकता है कि चीन श्रीनगर में भी शामिल न हो लेकिन नए हिंदुस्तान ने चीन की परवाह करना छोड़ दिया है.
यहां एक महत्वपूर्ण बात की मैं जरूर चर्चा करना चाहूंगा कि 1962 के युद्ध में मौजूदा अरुणाचल प्रदेश के करीब-करीब आधे हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया था. उस समय इस इलाके को नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था. 1972 में अरुणाचल को केंद्र शासित प्रदेश की मान्यता मिली और 1987 में यह पूर्ण राज्य बना.
खैर, मैं बात 1962 के युद्ध में चीनी कब्जे की कर रहा था. वो चाहता तो कब्जा कायम रखता! तो फिर वह वापस क्यों लौटा? दरअसल चीन को पता था कि अरुणाचल के लोग चीन का शासन कभी स्वीकार नहीं करते. भारी विद्रोह हो जाता इसलिए चीन ने लौटने में ही भलाई समझी! तो फिर सवाल पैदा होता है कि अब चीन अरुणाचल पर दावा क्यों करता है? चीन को पता है कि हिंदुस्तान इस समय अपने सर्वांगीण विकास पर ध्यान दे रहा है.
इकोनॉमी, इंडस्ट्री से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर तक में भारत ने लंबी छलांग लगाई है. दुनिया की पांचवीं आर्थिक शक्ति बन गया है और 2040 तक तीसरी आर्थिक शक्ति भी बन जाएगा. उसे पता है कि अरुणाचल के शियोमी जिले में भारत यूरेनियम की खोज में काफी आगे बढ़ चुका है. ऐसी बहुत सी प्रगति से वह चिढ़ता है. इसलिए वह भारत का लक्ष्य से ध्यान हटाने के लिए चिमटी काटता रहता है. कभी हमारे शहरों के नाम बदलता है तो कभी हमारे मंत्रियों और प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्रा पर बिना किसी तर्क के आपत्ति जताता है. कभी सीमा पर उत्पात करता है लेकिन हमारे जवान चीनियों की ठुकाई कर देते हैं तो चीन यह स्वीकार भी नहीं करता कि उसके कितने सैनिक मरे.
मैंने तो यहां तक सुना है कि चीन इंजेक्शन लगाकर अपने लोगों की लंबाई बढ़ा रहा है लेकिन इससे क्या फर्क पड़ने वाला है. चीन को क्या याद नहीं कि अमेरिका ने तो पाकिस्तान को हिंदुस्तान से लड़ने के लिए पैटन टैंक दिए थे और हमने उसे खिलौना बना दिया था!
चीन की सीमा पर जाकर दरअसल अमित शाह ने चीन को स्पष्ट और कड़ा संदेश दिया है कि तुम यदि 100 किलो के पहलवान हो तो हम कोई दस किलो के पहलवान नहीं हैं. ध्यान रखना, साठ किलो का पहलवान भी सौ किलो के पहलवान को चित कर देता है! दुश्मन को हम कमजोर नहीं मानते लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि तुम हमें आंखें दिखाओ, हमें चिमटी काटो!
1962 के युद्ध में हमारे पास शून्य से नीचे के तापमान में पहनने वाले कपड़े नहीं थे. अब हमारे पास 6 लेयर के गर्म कपड़े हैं और हमारे जवान सियाचिन के ग्लेशियर में भी पूरे साल डटे रहते हैं. परिस्थितियां कुछ भी हों, हम न डरने वाले हैं न झुकने वाले हैं.
निजी तौर पर एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं चीन से यह जरूर कहना चाहूंगा कि तुम अपनी हरकतें छोड़ो और भगवान बुद्ध की राह पर चलो जिन्हें तुमने त्याग दिया है. हम तो भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गांधीजी की राह पर चल ही रहे हैं. सत्य और अहिंसा हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हमारे यहां सर्व धर्म समभाव है. तुमने तो धर्म को ही त्याग दिया. लोग छिप कर आराधना और इबादत करते हैं. हमारे पास लोकतंत्र है. लोकतांत्रिक नेता हैं. तुमने तो अपने लोगों की आवाज भी बंद कर रखी है! तुम्हारे घर में विद्रोह पनप रहा है. बंदूक के बल पर कब तक रोकोगे? दूसरों को तबाह करने का कुचक्र रचोगे तो एक दिन दुनिया तुम्हारा सामान खरीदना बंद कर देगी. उस दिन तुम जमीन पर आ जाओगे. तुम्हारी ताकत को हम अच्छी तरह जानते हैं. भुलावे में मत रहना!