आलोक मेहता का ब्लॉग: किसान खुद ही समझ सकते हैं अपने हानि-लाभ का गणित
By आलोक मेहता | Published: September 25, 2020 10:54 AM2020-09-25T10:54:54+5:302020-09-25T10:54:54+5:30
संसद में कृषि विधेयक लाने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं की संयुक्त समिति में भी विस्तार से विचार-विमर्श हुआ है. इसके बावजूद श्रेय लेने - देने या विरोध के नाम पर हंगामा होना ठीक नहीं है.
चौधरी चरण सिंह ने 1978 में एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान मुझसे कहा था- ‘‘तुम कोट टाई वाले पत्रकार खेती-किसानी और किसानों के बारे में कुछ नहीं जानते और उनकी समस्याएं नहीं समझ सकते.’’ उन दिनों वे उपप्रधानमंत्री थे.
तब मैंने उनसे विनम्रता से कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप किसानों के असली और सबसे बड़े नेता हैं, आपको यह देख जानकर खुश होना चाहिए कि खेती-किसानी वाले आर्य समाजी दादाजी का पोता कोट-पैंट पहनकर आपके साथ बैठकर बात कर रहा है. बचपन में मैंने खेत, गन्ने, संतरे, गेहूं, आम की फसल और बैलगाड़ी में बैठकर दूर मंडी तक जाने का आनंद भी लिया है. उस समय शिक्षक पिता की जिम्मेदारियों के थोड़े-बहुत कष्ट भी देखे हैं. इसलिए आप किसानों के बारे में जो कुछ कहेंगे, मैं उसे पूरा लिखूंगा - छापूंगा.’’
इस तरह चौधरी साहब, देवीलाल जैसे कई नेताओं से बातचीत करने और किसानों के मुद्दों पर वर्षो से लिखने-छापने के अनुभव रहे हैं. इसलिए इन दिनों किसानों की मेहनत से उपजाई फसल को अधिकाधिक कीमत मिलने और देश भर में कहीं भी किसी को भी बेच सकने के लिए संसद में नया कानूनी प्रावधान होने पर हंगामे को देख सुनकर थोड़ी तकलीफ सी हो रही है.
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सहित देश के हर भाग में खेती-बाड़ी, विभिन्न फसलों को लेकर किसानों की चुनौतियां तथा सफलताएं भी हैं. 1973-74 में भारतीय खाद्य निगम द्वारा अनाज के भंडारण के लिए हरियाणा से शुरू किए गए सेलो गोदामों के प्रयोग से लेकर अब तक सही भंडारण, अनाज के सही दाम, मंडियों की सुविधा अथवा मंडियों में तोलने में गड़बड़ी, किसानों को भुगतान में हेराफेरी और देरी तथा मंडियों से नेताओं की राजनीति के हथकंडों को हमारी तरह शायद लाखों लोग जानते रहे हैं.
इसीलिए पिछले कई वर्षो से केवल भारतीय जनता पार्टी ही नहीं, कांग्रेस, समाजवादी, जनता दल के नाम से प्रभावशाली राजनीतिक संगठन अपने घोषणा पत्नों में किसानों को बिचौलियों से मुक्ति, अधिक दाम, फसल बीमा और हरसंभव सहयोग के वायदे करते रहे हैं.
संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी मंत्नी नरेंद्र सिंह तोमर भी विभिन्न अवसरों पर इन सभी मुद्दों की चर्चा करते रहे. फिर संसद में विधेयक लाने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं की संयुक्त समिति में भी उस पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ है. इसके बावजूद श्रेय लेने - देने या विरोध के नाम पर हंगामा होना ठीक नहीं है.
इसमें कोई शक नहीं कि स्वास्थ्य का मुद्दा हो या आर्थिक अथवा खेती और किसानों का, समय के साथ सुधार करने होते हैं. इसलिए मोदी सरकार द्वारा किसानों के अनाज की खुली बिक्री खरीदी, न्यूनतम अथवा अधिकतम मूल्यों के प्रावधान के लिए पहले अध्यादेश और अब संसद से स्वीकृति के बाद आने वाले कुछ महीनों और वर्षो में भी कुछ सुधारों की आवश्यकता हो सकती है.
पंजाब, हरियाणा की राजनीति और बडी संख्या में बिचौलियों के घर बैठे चलने वाले धंधे पर जरूर असर होने वाला है, लेकिन अधिकांश राज्यों के किसानों को अंततोगत्वा बहुत बड़ा लाभ होने वाला है. अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री ने स्पष्ट घोषणा कर दी है कि सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्यों पर खरीदी निरंतर होती रहेगी. खाद्य निगम गेहूं और धान तथा नाफेड दलहन और तिलहन की खरीदी करते रहेंगे. लेकिन किसान केवल सरकारों पर ही निर्भर क्यों रहे?
विरोध में हमारे नेता यह चिंता जता रहे हैं कि किसानों से फसल आने के पहले ही खरीदी और कीमत के साथ अनुबंध करने वाले बड़े व्यापारी अथवा कंपनियां ठग लेंगी. संभव है शुरू में अधिक कीमत दें और बाद में कीमत कम देने लगें. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि अब किसान और दूर-दराज के भोले-भाले परिवार संचार माध्यमों से बहुत समझदार हो गए हैं.
वे बैंक खाते, फसल बीमा, खाद, बीज और दुनिया भर से भारत आ रहे तिलहन, प्याज, सब्जी-फल का हिसाब-किताब भी देख समझ रहे हैं.
बिना रासायनिक खाद डाले ऑर्गेनिक खेती का लाभ उन्हें थोड़ा समझ में आने लगा है और भंडारण - बिक्री की व्यवस्था होने पर अधिक समझ के साथ लाभ उठाने लगेंगे. अन्नदाताओं के सम्मान और हितों की रक्षा की जिम्मेदारी समाज के हर वर्ग की है. अब आशा करनी चाहिए कि पश्चिमी देशों की तरह किसान अपने उत्पादन, मेहनत, सम्मान के साथ आत्मनिर्भर बनेंगे।