कृषि : गलत नीति की कोख से जन्मा भ्रष्टाचार

By एनके सिंह | Published: December 16, 2018 05:30 AM2018-12-16T05:30:12+5:302018-12-16T05:30:12+5:30

पिछले चार वर्षो में सात राज्य सरकारों ने अपने यहां चुनाव आते ही किसानों का 182802 लाख करोड़ रु. का कर्ज माफ किया

Agriculture: corruption of wrong policy | कृषि : गलत नीति की कोख से जन्मा भ्रष्टाचार

कृषि : गलत नीति की कोख से जन्मा भ्रष्टाचार

पिछले चार वर्षो में सात राज्य सरकारों ने अपने यहां चुनाव आते ही किसानों का 182802 लाख करोड़ रु. का कर्ज माफ किया और तीन राज्यों में चुनाव नतीजों से घबराई केंद्र की भाजपा सरकार करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रु. माफकरने पर विचार कर रही है चुनावी वैतरणी पार करने के लिए.

मनमोहन सरकार ने भी 2009 के चुनाव के ठीक पहले इस मद में 72000 करोड़ माफकिए थे. ताजा खबर के हिसाब से इतना सब करने के बावजूद किसानों की आय में कमी आई है, आत्महत्याएं बढ़ी हैं.  एक आंकड़े से किसानों की दुर्दशा समझ में आएगी. सन 1970 में गेहूं का समर्थन मूल्य 76 रुपए प्रति क्विंटल था, आज 2018 में बड़ी जद्दोजहद और चुनाव के मद्देनजर 1730 रुपए यानी 22.7 गुना है. इसीकालखंड में केंद्रीय कर्मचारियों की आय 130 गुना, अध्यापकों की 320 से 380 गुना, कॉर्पोरेट सेक्टर की 420 से 1200 गुना बढ़ी.

गैर-अनाज उपभोक्ता सामान की कीमतें बेतहाशा बढ़ीं. लिहाजा खेती अलाभकर होती गई. आज पांच साल में चुनाव आने के पहले उसका कर्ज माफ करने से न तो खेती बेहतर होगी, न ही आत्महत्या या पलायन रुकेगा. फिर चुनाव आने वाला है. तीन राज्यों में हार से जहां केंद्र की मोदी सरकार सकते में है, वहीं कांग्रेस की नई राज्य सरकारों पर घोषणा-पत्न और चुनावी मंचों से किसानों से किए वादे निभाने का दबाव होगा. 

समर्थन मूल्य बढ़ाने के राजनीतिक नुकसान ज्यादा हैं अगर सरकारें इसे समङों. किसानों को यह तब मिलता है जब वे अपने उत्पाद सरकारी क्रय-केंद्रों में ले जाते हैं. इस स्कीम की सफलता की शर्त है कि क्रयकेंद्र का सरकारी मुलाजिम ईमानदार हो और गरीब और प्रभाव-विहीन किसानों के माल की भी सही ग्रेडिंग कर ले. राज्यों में भयंकर भ्रष्टाचार के कारण यह संभव नहीं है. नतीजतन, केवल छह प्रतिशत किसान ही सरकारी क्रय केंद्र पर अपना माल बेच पाते हैं.

ये आंकड़े भी भरोसे के नहीं हैं क्योंकि जो खरीद होती भी है वह आढ़तिये के मार्फत फर्जी किसानों के नाम पर जो खेती नहीं करते पर लेखपाल के खातों में उनके नाम वह फसल बता दी जाती है. गरीब किसान बैलगाड़ी पर गेहूं लाद  कर कई दिन धक्के खाने के बाद भी क्रय केंद्र से वापस लौटने लगता है तो आढ़तिये उसे खरे नोट दिखाकर औने-पौने दाम में खरीद लेते हैं और वही माल सरकारी कर्मचारी और बिचौलिए के बीच साठगांठ के तहत सरकार को चूना लगते हुए सरकारी गोदाम पहुंच जाता है. 

कांग्रेस शासित इन तीन राज्यों में यही समस्या होने जा रही है. भ्रष्टाचार रातों-रात खत्म नहीं हो सकता. भाजपा यह आरोप नई सरकार पर लगाने के लिए तत्पर बैठी है. ऐसे में सबसे सही नीति होगी-तेलंगाना मॉडल ‘रायथू बंधु’ जिसके तहत किसानों के खाते में सीधे 4000 रुपए प्रति एकड़ की दर से मदद पहुंचाई जाती है. इसमें भ्रष्टाचार भी नहीं के बराबर होगा और किसान तत्काल खुश भी हो जाएगा. 
 

Web Title: Agriculture: corruption of wrong policy

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