ब्लॉग: पतंजलि आयुर्वेद के आचार्य बालकृष्ण को सम्मान, दुनिया में बज रहा है आयुर्वेद का डंका
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 17, 2022 09:50 AM2022-10-17T09:50:19+5:302022-10-17T09:51:55+5:30
ऐलोपैथी सिर्फ शरीर का इलाज करती थी लेकिन आयुर्वेद का वैद्य जब दवा देता है तो वह मरीज के शरीर, मन, मस्तिष्क और आत्मा का भी ख्याल करता है. आयुर्वेद का नाड़ी-विज्ञान आज भी इतना गजब का है.
कैसी विडंबना है कि विश्व की भुखमरी सूची में भारत का स्थान 107 वां है यानी दुनिया के 106 देशों से भी ज्यादा भुखमरी भारत में है और दूसरी तरफ हमारे लिए गर्व करने की यह खबर आई है कि विश्व की चिकित्सा पद्धतियों में भारत के आयुर्वेद को पहली बार अग्रणी सम्मान मिला है. यह सम्मान दिया है, अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोपीय पब्लिशर्स एल्सेवियर ने! यह सम्मान मिला है, पतंजलि आयुर्वेद के आचार्य बालकृष्ण को! विश्व के प्रतिष्ठित शोधकर्ता वैज्ञानिकों की श्रेणी में अब उनकी गणना हो गई है. यह भारत की प्राचीन और परिणाम सिद्ध चिकित्सा-प्रणाली को मिली वैश्विक मान्यता है.
यदि भारत पर विदेशी आक्रमण नहीं होते तो हमारा आयुर्वेद आज दुनिया का सर्वश्रेष्ठ उपचार तंत्र बन जाता. सौ साल पहले तक ऐलोपैथी के डाक्टरों को यह पता ही नहीं था कि ऑपरेशन के पहले मरीजों को बेहोश कैसे किया जाए? हमारे यहां हजारों साल पहले से चरक-संहिता में इसका विस्तृत विधान है.
ऐलोपैथी कुछ वर्षों तक सिर्फ शरीर का इलाज करती थी लेकिन आयुर्वेद का वैद्य जब दवाई देता है तो वह मरीज के शरीर, मन, मस्तिष्क और आत्मा का भी ख्याल करता है. अब ऐलोपैथी भी धीरे-धीरे इस रास्ते पर आ रही है. आयुर्वेद का नाड़ी-विज्ञान आज भी इतना गजब का है कि दिल्ली के स्व. बृहस्पतिदेव त्रिगुणा जैसे वैद्य मरीज की सिर्फ नाड़ी देखकर ऐसा विलक्षण रोग-विश्लेषण कर देते थे कि जैसा ऐलोपैथी के आठ यंत्र भी एक साथ नहीं कर सकते हैं.
ऐलोपैथी इतनी महंगी है कि भारत के करोड़ों गरीब लोगों को उसकी सुविधा नसीब ही नहीं है. भारत में आयुर्वेद, यूनानी, तिब्बती और होम्योपैथी (घरेलू इलाज) का अनुसंधान बढ़ जाए और आधुनिकीकरण हो जाए तो देश के निर्धन और वंचित लोगों का सबसे अधिक लाभ होगा.