योग ही है आज का युग धर्म, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 21, 2021 07:06 PM2021-06-21T19:06:12+5:302021-06-21T19:07:26+5:30

भारत सहित दुनिया भर में 21 जून को योग दिवस का त्योहार मनाया जाता है और सभी इसमें बढ़ चढ़कर शिरकत करते हैं.

21 june yoga day religion today's era Girishwar Mishra's blog | योग ही है आज का युग धर्म, गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग

2015 में पहला अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया.

Highlights21 जून के दिन की एक खासियत है कि यह वर्ष के 365 दिन में सबसे लंबा दिन होता है.योग के निरंतर अभ्यास से व्यक्ति को लंबा जीवन मिलता है.योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया.

योग का शाब्दिक अर्थ संबंध (या जोड़ ) है और उस संबंध की परिणति भी. इस तरह जुड़ना, जोड़ना, युक्त होना, संयुक्त होना जैसी प्रक्रियाएं योग कहलाती हैं जो शरीर, मन और सर्वव्यापी चेतन तत्व के बीच सामंजस्य स्थापित करती हैं.

कुल मिलाकर योग रिश्तों को पहचानने की एक अपूर्व वैज्ञानिक कला है जो मनुष्य को उसके अस्तित्व के व्यापक संदर्भ में स्थापित करती है. सांख्य दर्शन का सिद्धांत इस विचार-पद्धति की आधार शिला है जिसके अंतर्गत पुरुष और प्रकृति की अवधारणाएं प्रमुख हैं. पुरुष शुद्ध चैतन्य है और प्रकृति मूलत: (जड़) पदार्थ जगत है. पुरुष प्रकृति का साक्षी होता है.

वह शाश्वत, सार्वभौम और अपरिवर्तनशील है. वह द्रष्टा और ज्ञाता है. चितशक्ति भी वही है. प्रकृति जो सतत परिवर्तनशील है, उसी से हमारी दुनिया या संसार रचा होता है. हमारा शरीर भी प्रकृति का ही हिस्सा है जो प्राणवान है. उसके साथ संयोग ही प्रतिकूल अनुभव देने वाले दु:ख का कारण बनता है. इस संयोग से मुक्ति पाना आवश्यक है. प्रकृति में गुणों की प्रधानता से गुणों के बीच द्वंद्व होता है.

यह अविद्या से उपजता है और मनुष्य को दु:ख की अनुभूति होती है. यदि मन पर बुद्धि का नियंत्नण न हो तो वह बेलगाम इधर-उधर भटकता ही रहे. इस कार्य में हमारी ज्ञानेंद्रियां और कर्मेद्रियां मन का साथ देती हैं. फलत: यदि उस पर विवेक-बुद्धि का नियंत्नण न हो तो हमारे सारे कार्य अव्यविस्थत होने लगते हैं और मनुष्य अपने विनाश की ओर कदम बढ़ाने लगता है.

मोटे तौर पर देखें तो आज की त्नासदी यही है कि हम बाह्य वस्तुओं (विषयों) की चपेट में हैं और इंद्रियों के खिंचाव में मन हमेशा डावांडोल रहता है और हम उसी को यथार्थ या वास्तविक मान उसी में रमे रहते हैं. एक इच्छा के बाद दूसरी, फिर तीसरी उसका तांता लगा रहता है क्योंकि वह क्षणिक होती है और कभी भी सारी इच्छाएं पूरी न होने के कारण लगातार असंतोष का भाव बना रहता है.

ऐसे विकल मनुष्य के लिए कमी, अभाव और अतृप्ति आदि के भाव ही उसके प्रेरक बन जाते हैं. वह अज्ञानवश इसी को अपना वास्तविक स्वभाव मान बैठता है और कुंठा तथा क्षोभ से ग्रस्त जीता रहता है. उसमें भय, राग और क्र ोध घर कर जाते हैं. इसके चलते अशांति रहती है और प्रसन्नता खो जाती है और सुख सपना हो जाता है.

योग की विचार-पद्धति समग्र जीवन की एक सकारात्मक शैली उपलब्ध कराती है जो आज की जीवन विरोधी, शोषक और अस्त-व्यस्त करने वाली भ्रामक प्रणालियों का विकल्प प्रस्तुत करती है. हमारी बहिर्मुखी दृष्टि बाह्य संसार को जानने-समझने को उद्यत रहती है पर अस्तित्व की अंतर्यात्ना अक्सर धरी की धरी रह जाती है.

यहां तक कि शरीर, श्वास-प्रश्वास और शरीर के अंगों की समझ भी अधूरी ही रहती है. इसका परिणाम होता है कि हम सब आधि-व्याधि से ग्रस्त रहते हैं. योग शरीर और उससे परे जीवन की समग्र व्यवस्था की दिशा देने का कार्य करता है. स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन से ही स्वस्थ जीवन निर्मित होता है. इसके लिए स्वस्थ और सक्रिय जीवन शैली होनी चाहिए.

आज के तकनीक प्रधान जीवन में समय की उपलब्धता और शारीरिक सक्रि यता की कमी के बीच आत्मपरीक्षण या आत्मालोचन का अवसर नहीं मिल रहा है. तमाम कल्पित अवरोध और बाधाएं मन को विचलित करती रहती हैं. स्वचालित पायलट की तरह मन भ्रमण करता रहता है. अनियंत्रित चिंतन-धारा हमारे आत्मबोध पर नकारात्मक प्रभाव डालती है.

भविष्य आत्म चेतस जीवन में निहित है. यांत्रिक अनुक्रिया नहीं बल्कि सचेत जीवन जीना जरूरी है. आज बाहर की दुनिया की चेतना तो रहती है उसी में हम खोये रहते हैं. व्यक्तियों, वस्तुओं, घटनाओं से जुड़ना, चीजों को एकत्न करना, उपभोग और खर्च करना अर्थात भौतिक संलग्नता ही जीवन के केंद्र में आती जा रही है. पर हम सिर्फभौतिक शरीर मात्न नहीं हैं.

हम शरीर और मन के स्वामी हैं. हम बाहर के उद्दीपकों के प्रति प्रतिक्रि या करने वाले निरे यंत्न नहीं हैं. योग शरीर, मन और आत्म की समग्र दृष्टि से संपन्न करता है. विश्व में सबके साथ आत्मीयता के लिए ध्यान को नियमित करना, समाज के प्रति सकारात्मक वृत्ति, दया, समानुभूति और आदर का भाव आज की अनिवार्यता होती जा रही है. इन सबका मार्ग प्रशस्त करते हुए योग आज का युग धर्म हो रहा है. इसे स्वीकार कर जीवन में उतारना ही आज का युग धर्म है.

Web Title: 21 june yoga day religion today's era Girishwar Mishra's blog

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