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ब्लॉग: अंगदान करना धर्मों के नहीं है खिलाफ

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 14, 2024 10:22 AM

भारत में किडनी, हार्ट और लिवर की बीमारियों से असंख्य मरीज जूझ रहे हैं।

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डॉक्टर शिवनारायण आचार्य

दुनिया भर के सभी धर्मों ने प्रेम, दान और सहानुभूति के महत्व पर जोर दिया है। अंगदान उदारता का अवसर है। किसी जरूरतमंद व्यक्ति को अपने शरीर का अंग देना बहुत उच्च स्तर की उदारता का उदाहरण है। महाभारत में एक घटना का उल्लेख है जिसमें कर्ण ने अपना जीवन रक्षक कवच इंद्र को दान कर दिया था। इंद्रदेव वेश बदलकर ब्राह्मण के रूप में उनके पास आए थे।

यह अच्छी तरह से जानते हुए कि इससे युद्ध में उनकी मृत्यु हो जाएगी, कर्ण ने कवच और कुंडल इंद्र को दे दिया। यह एक महान दान था। उपनिषदों में एक और दान का जिक्र है, वह है ‘महिर्षि दधीचि’ द्वारा देवताओं को अपनी हड्डियों का दान करना, जिससे वे वज्र सा अस्त्र बना सकें।

प्रत्येक धर्म में दान का बहुत महत्व है। कोई भी धर्म अंगदान के खिलाफ नहीं है। सदियों पहले, जब धार्मिक ग्रंथ लिखे गए थे, रक्त या अंगदान का आविष्कार ही नहीं हुआ था, लेकिन ये आज एक वास्तविकता बन गए हैं। इसलिए हमें जीवन बचाने के लिए अंगदान की भावना को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। अंगदान सबसे बड़ा दान है जो कोई भी कर सकता है।

सऊदी अरब के इस्लामिक कौंसिल ने 1982 में कानून पास किया जिसमें अंगदान को वैध घोषित किया गया। सन्‌ 2000 में ईरान के पार्लियामेंट ने जीवित अथवा मरणोपरांत अंगदान कानून पास किया। ये दोनों ही मुस्लिम देश हैं। ईसाई धर्म भी अंगदान को बढ़ावा देता है। बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण अंगदान से पूर्णतया मेल खाता है। बौद्ध धर्मग्रंथों में ऐसी कहानियां हैं जहां अंगों के दान को पुण्य अर्जित करने वाले दान के रूप में संदर्भित किया गया है।

भारत में किडनी, हार्ट और लिवर की बीमारियों से असंख्य मरीज जूझ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल 1.5 लाख से अधिक किडनी की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 3,500-4,000 का ही प्रत्यारोपण किया जाता है। वहीं हर साल 15,000-20,000 लिवर की जरूरत होती है लेकिन केवल 500 का ही ट्रांसप्लांट किया जाता है। अगर लोग मृत्यु के बाद अंगदान करें तो ये कमी दूर हो जाएगी और कई जिंदगियां बचाई जा सकेंगी।

हमें यह समझना चाहिए कि मस्तिष्क मृत्यु की अवधारणा आज वास्तविकता है, एक बार जब किसी व्यक्ति का मस्तिष्क मृत हो जाता है तो वह जीवित नहीं रहता, भले ही उसका हृदय धड़कता रहे।

‘‘जैसे ही मैं इस क्षणभंगुर संसार को छोड़ दूं तो/ मुझे आशा की एक किरण जगाने दो/ उन लोगों की नजर के लिए, जो देख नहीं सकते/ उन लोगों के लिए ताजी हवा का झोंका बनने दो जो सांस नहीं ले सकते/ उनके लिए जीवन का अमृत बनने दो जिनकी किडनी फेल हो गई है/ मेरे दिल को उनमें धड़कने दो जो दिल जिंदा रहने के लिए फड़फड़ा रहे हैं।’’

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