Nurse Day 2021: हर एक नर्स के भीतर छिपी होती है ‘लेडी विद द लैम्प’

By नवीन जैन | Published: May 12, 2021 11:06 AM2021-05-12T11:06:57+5:302021-05-12T11:09:34+5:30

Nurse Day: विश्व नर्स डे हर साल 12मई को मनाया जाता है. यह दिन आधुनिक नर्सिंग की जननी फ्लोरेंस नाइटिंगेल की याद में मनाया जाता है.

Nurse Day 2021: history, significane in corona crisis and know why every nurse is Lady with the Lamp | Nurse Day 2021: हर एक नर्स के भीतर छिपी होती है ‘लेडी विद द लैम्प’

Nurse Day 2021: दुनिया में हर साल 12 मई को मनाया जाता है नर्स डे

डॉक्टर्स को देवदूत कहा जाता है. इनकी सेवा भावना को देखकर इनके पेशे को नोबलेस्ट माना जाता है. कोरोना महामारी में जगह-जगह  देखने में आया है कि डॉक्टर के साथ यदि नर्सेस नहीं होतीं तो शायद हजारों मामलों में डॉक्टर भी हाथ टेक देते. 

डॉक्टर को तो एक दिन में विभिन्न अस्पतालों में अनेक मरीजों को देखना पड़ता है, इसीलिए एक मरीज को वह पांच-दस मिनट से ज्यादा समय नहीं दे सकता. बाकी पूरे 24 घंटे तो नर्स या परिचारिका ही प्रत्येक रोगी की असली डॉक्टर सिद्ध होती है. 

वही समय पर बीपी देखती है, आईसीयू में गंभीर मरीजों की विभिन्न उपकरणों पर निगाह रखती है, आवश्यक हुआ तो डॉक्टर को बुलाती है और जहां तक हो सके, डॉक्टर के साथ मिलकर मरीज की जान बचाने का प्रयास करती है. इसीलिए दुनिया भर में नर्सिंग को अति सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. 

नर्स दिवस क्यों मनाया जाता है?

हर साल मई 12 को विश्व नर्स दिवस मनाया जाता है. यह दिवस आधुनिक नर्सिंग की जननी फ्लोरेंस नाइटिंगेल की स्मृति में मनाया जाता है.

फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 20 मई 1820 को इटली के फ्लोरेन्स शहर में हुआ था. फ्लोरेन्स के साथ नाइटिंगेल शब्द जुड़ने की कथा अविस्मरणीय और कारुणिक है.  दरअसल, वे सीमा पर बने बैरकों में जरूरत पड़ने पर लालटेन लेकर जाती थीं. वहीं घायल सैनिकों की देखभाल करती थीं. यह तथ्य है कि उनकी टोली को मृत सैनिकों को बड़ी संख्या में बचाने में सफलता मिली. इसीलिए सैनिकों ने उन्हें तमगा दे दिया ‘लेडी विद द लैम्प’ यानी जीवन के प्रति आशा की किरण.

भारत में यूं तो नर्सेस की ड्यूटी तयशुदा समय की होती रही है लेकिन कोविड पैंडेमिक में नर्सेस ने वीरांगना का रूप धारण करते हुए कई मामलों में छोटी डॉक्टर का दर्जा हासिल कर लिया है. इसीलिए अन्य पैरामेडिकल के साथ उन्हें फ्रंट वारियर्स कहा जाता है. 

कई डॉक्टर्स के साथ नर्सों की शहादत देने की कथाएं मीडिया में आम हो रही हैं. उन्हें न अपने खाने-पीने की चिंता है न आराम की. लगभग 18 घंटे की लगातार ड्यूटी. अन्य रोगों के मरीजों को भी संभालने की उतनी ही जिम्मेदारी. ये घर पर सिर्फ नहाने तथा बच्चों से मिलने जा पाती हैं. 

स्पेन के एक शहर में तो इनके सम्मान में बॉलकनी में मास्क लगाकर लोगों ने घर लौटती नर्सेस को कुछ समय पहले सलामी दी थी.

नर्सिंग की दुनिया में केरल और कर्नाटक की अनोखी पहचान

केरल अपनी 99 फीसदी साक्षरता दर की वजह से हर उस काम में दुनिया की नजरों में सम्मान से देखा जाता है जिसमें सेवा, समर्पण, त्याग, करुणा, परोपकार, बुद्धिमत्ता, विवेक आदि की जरूरत  हो. केरल के अलावा कर्नाटक भी कुछ-कुछ ऐसा ही प्रदेश है. 

केरल की नर्सेस ने तो कोविड के दूसरे प्रहार में वैज्ञानिक की तरह काम करके दिखाया. वहां की नर्सेस ने वैक्सीन की शीशियों की आखिरी बूंद तक का इस्तेमाल किया और उससे 80 हजार से ज्यादा अतिरिक्त डोजेस बना दिए. अंदाज लगाया जा सकता है कि इस अभिनव प्रयोग ने वहां कितने मरीजों की जान बचाई होगी. 

इस प्रयोग की तारीफ किए बिना पीएम नरेंद्र मोदी से भी नहीं रहा गया. केरल में नर्सिंग सिर्फ पेशा नहीं है, बल्कि जीने का मकसद, मानवता के हित में कुछ नया कर गुजरने की बेखौफ आरजू  है. 

वहां और कर्नाटक में नर्सिंग के सैकड़ों स्कूल और कॉलेज हैं. इनमें नर्सेस ट्रेंड होकर भारत में काम करने के अलावा कई देशों में जाती हैं. भारत की नर्सेस को कनाडा ने तो ट्रेंड किया ही है, देश में भी इसके डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री कोर्सेस उपलब्ध हैं. 

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे अति विकसित देशों तक ने माना है कि यदि उनके यहां भारत की ट्रेंड नर्सेस नहीं होतीं तो उनकी अति आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था चौपट हो सकती थी. गल्फ में सबसे ज्यादा भारतीय नर्सेस जाती हैं. कारण स्पष्ट है- बड़ा पैकेज, अच्छी जीवन शैली और अस्पतालों का लगातार विकास.

भारत में कम है नर्सों की संख्या

भारत में जरूरत के हिसाब से नर्सेस की संख्या बहुत कम है और 483 लोगों पर मात्र एक नर्स है. देश में कम से कम बीस लाख नर्सेस और छह लाख डॉक्टर्स की आवश्यकता है. देश में प्रत्येक वर्ष श्रेष्ठ नर्सेस को फ्लोरेन्स नाइटेंगल पुरस्कार से नवाजा जाता है. 

फ्लोरेन्स नाइटेंगल ने ही सबसे पहले अस्पतालों में से संक्रमण, प्रदूषण, गंदगी आदि को हटाकर सकारात्मकता का उजाला फैलाया था. कहते हैं कि उनकी मुस्कान और आंखों की भाषा इतनी मोहक थी कि जीने की तमन्ना छोड़ चुका मरीज भी फिर जीने के लिए उत्साहित हो जाता था. आज के कोरोना काल में नर्सेस की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो चली है.

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