गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: सेहतमंद रहने के लिए चाहिए स्वस्थ मानसिकता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 30, 2020 03:10 PM2020-06-30T15:10:32+5:302020-06-30T15:10:32+5:30
आज सभी का जीवन आपाधापी और भाग-दौड़ से भरा हुआ है. ऐसे में जरूरी है कि एक बार फिर चिंतन किया जाए कि तन के साथ मन को भी स्वस्थ रखने के लिए क्या करना जरूरी है. पढ़िए गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग
इसमें कोई संदेह नहीं कि आधुनिक यूरो-अमेरिकी शिक्षा नाना प्रकार के ज्ञान और कौशलों की दृष्टि से मनुष्य को संपन्न बनाती जा रही है. इसके हस्तक्षेप से भौतिक परिवेश तेजी से बदल रहा है और देश काल का अनुभव सिकुड़ता-सिमटता जा रहा है. प्रौद्योगिकी के नित्य नए हस्तक्षेप द्वारा प्रकृति की सीमाओं को ढहाते हुए कृत्रिम जीवन स्थितियों का अधिकाधिक विस्तार होता जा रहा है.
इन सबके बीच उत्सुकता, उपलब्धि व महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर मनुष्य के अहंकार की भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि दर्ज हो रही है. इसके परिणामस्वरूप विभिन्न स्तरों पर प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, कुंठा और शोषण का दौर भी चल रहा है. रोगों और महामारियों का प्रकोप भी बढ़ रहा है. कुल मिला कर शांति, संतुष्टि और सह जीवन की स्थिति के लिए खतरे और जोखिम बढ़ रहे हैं.
इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के अवसान की बेला में वैश्विक परिस्थितियां सृष्टि में मनुष्य की सत्ता, उसके प्रयोजन और दायित्व पर पुनर्विचार की अपेक्षा करती हैं. आधुनिक विज्ञान के प्रति आस्था के साथ जिस विवेक की परिपक्वता प्रत्याशित थी वह आज खंडित हो रही है. संभवत: यह दृष्टि एकांगी थी और समग्र के प्रति, सृष्टि की जीवंतता के प्रति उतनी संवेदनशील नहीं थी जितनी वह निजी स्वार्थ के प्रति निष्ठा रख रही थी.
इस तरह के असंतुलित नजरिये के दुष्परिणाम पर्यावरण के तीव्र विनाश और आरोग्य-स्वास्थ्य की हानि के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं. इस परिप्रेक्ष्य में लोगों का ध्यान योग की ओर गया. योग भारतीय ज्ञान और अभ्यास की एक महत्वपूर्ण परम्परा है जो जीवन संजीवनी सरीखी है.
पतंजलि द्वारा मानकीकृत अष्टांग योग में एक विशेष क्रम है जिसके अंतर्गत अभ्यास करना चाहिए. जैसे यम और नियम के पालन के बिना चित्त का एकाग्र होना संभव नहीं है. दुर्गुण हटने पर ही अंत:करण की पवित्नता होगी. यम और नियम के बिना प्राणायाम भी ठीक से नहीं होगा. वस्तुत: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के आठ अंगों से योग का स्वरूप बनता है, इनमें पहले के पांच बहिरंग और तीन अंतरंग कहे जाते हैं. अंतरंग को संयम भी कहा है.
यहां पर यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि महर्षि पतंजलि ने यम अर्थात अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जाति, देश, काल और निमित्त से अनवच्छिन्न ‘सार्वभौम महाव्रत’ कहा है. दूसरे शब्दों में इनका पालन हर किसी को और हर कहीं करना विहित है. यम के साथ नियमों का भी प्रावधान है. ये हैं : पवित्नता, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान. इन पांच नियमों का पालन भी आवश्यक है.
योग सूत्न में यह भी निर्देश है कि यदि मन में इनके विरुद्ध भाव आए तो प्रतिपक्ष भावना करनी चाहिए अर्थात उसका दृढ़ता से निषेध करना चाहिए. यह आसानी से देखा जा सकता है कि ये यम नियम सामान्य जीवन में व्यावहारिक रूप से सकारात्मक फल देने वाले हैं. व्यक्ति और आसपास दोनों ही इससे सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं.
महर्षि पतंजलि ने बड़े विस्तार से इनके प्रभावों की चर्चा की है. उदाहरण के लिए वे कहते हैं कि अहिंसा से लोग वैर त्याग देते हैं, सत्य पालन से व्यक्ति द्वारा कहा सच होने लगता है तथा अपरिग्रह से मन संयत हो जाता है आदि-आदि. आजकल प्राय: योग को आसन (शारीरिक अभ्यास) और ध्यान को मानसिक अभ्यास तक ही माना जाता है. इनका लाभ भी मिलता है परंतु योग तो समग्र जीवन का पाठ्यक्र में है.
मन में आदर्श जीवन किसी कोने में रहता है परंतु हमारी महत्वाकांक्षाएं उसमें बाधा बनती हैं. इससे मनोजगत में ही नहीं शरीर में भी असंतुलन होता है और रोग होते हैं. यह तय करना जरूरी है कि हम खाने के लिए जिएं या जीने के लिए खाना खाएं. आज शारीरिक, मानसिक और सांवेगिक द्वंद्व, दुख और अशांति का बवंडर बड़े बड़ों को ले डूब रहा है. यदि अपने विचारों और व्यवहारों का खाता खंगालें तो पाएंगे वे ज्यादातर समस्याओं के बारे में हैं.
यदि कोई मानसिक या भावनात्मक द्वंद्व हो तो उसी के बारे में सोचते रहते हैं और अधिक अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं. मन में गुंजलक छा जाता है. कुछ साफ नहीं दिखता. योग असंतुलन को दूर कर आंतरिक स्पष्टता, संतुलन और समरसता प्रदान करता है.
योग को अपनाने से इसका समाधान मिलता है. अनेक अध्ययनों में योग गठिया, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पेट के रोग और कैंसर जैसे रोगों में लाभप्रद पाया गया है. परंतु योग, चिकित्सा से आगे जाकर मानस चेतना का भी परिष्कार करता है. वह आत्म निर्भर बनाता है और ऊर्जा का अनुभव कराता है. अत: योग शिक्षा को सभी स्तरों पर शिक्षा में स्थान देना लाभकारी होगा.