योग के पीछे छिपे विज्ञान को समझने की जरूरत
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 29, 2018 08:38 AM2018-09-29T08:38:40+5:302018-09-29T08:38:40+5:30
पूरे शरीर में कंपन तनाव पैदा कर सकता है और कई बार तो शरीर के अंगों को स्थायी नुकसान भी पहुंचा सकता है, जिसमें दृष्टि का धुंधला होना, उनींदापन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, अनिद्रा, सिरदर्द या पेट संबंधी परेशानियां पैदा हो सकती हैं।
(लेख- डॉ. एस. एस. मंठा)
साफ-सफाई, संतोष, तपस्या, पवित्र ग्रन्थों का पाठ और भगवान के प्रति समर्पण - ये पांच नियम अथवा संस्कार हैं। इन मूल्यों को विकसित करने के लिए, जो मन और शरीर का संघ है, उसके लिए योग से बेहतर और क्या हो सकता है? क्या योग और आधुनिक विज्ञान के बीच कोई संबंध है? शरीर की प्राकृतिक आवृत्ति उसके द्रव्यमान के समानुपाती होती है। जब प्राकृतिक आवृत्ति और बाहर से आरोपित आवृत्ति एक समान धरातल पर टकराती हैं तो परिणाम विफलता के रूप में सामने आता है। इसलिए इस टकराव से होने वाले कंपन को रोकने के लिए प्राकृतिक आवृत्तियों के उच्च होने की आवश्यकता होती है।
प्राकृतिक आवृत्ति को निर्धारित करने में भौतिक गुणों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां एकाग्रता की शक्ति और मानव शरीर पर इसके प्रभाव में योग की शक्ति निहित है। मानव शरीर समेत प्रत्येक वस्तु में अनुनासिक आवृत्ति होती है। 0।5 से 80 हर्ट्ज तक आवृत्ति का कंपन मानव शरीर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। गायत्री मंत्र के उच्चारण से 20 हर्ट्ज तक का कंपन पैदा होता है, जिससे डीएनए पर ऐसा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जैसा और किसी भी चीज का नहीं पड़ता है। हर व्यक्ति के शरीर की आवृत्ति अलग-अलग होती है। लंबवत् कंपन के लिए सबसे प्रभावी अनुनाद आवृत्तियां चार से आठ हट्र्ज के बीच होती हैं।
पूरे शरीर में कंपन तनाव पैदा कर सकता है और कई बार तो शरीर के अंगों को स्थायी नुकसान भी पहुंचा सकता है, जिसमें दृष्टि का धुंधला होना, उनींदापन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, अनिद्रा, सिरदर्द या पेट संबंधी परेशानियां पैदा हो सकती हैं। इसलिए एक प्रशिक्षक के नियंत्रण में ही योग का अभ्यास प्रभावी होता है और उससे पैदा होने वाले नियंत्रित कंपन से शरीर को लाभ पहुंचता है। धरती भी 7।83 हर्ट्ज के अनुनाद पर कंपन करती है, जिसे श्यूमन अनुनाद के रूप में जाना जाता है। इसे सब कुछ की प्राकृतिक अवस्था माना जाता है।
आइए इस आवृत्ति सिद्धांत को मानव मस्तिष्क पर लागू करें, क्योंकि मानव शरीर पूरी तरह से जटिल है और चूंकि योग मन और शरीर दोनों को नियंत्रित करता है। भौतिक स्तर पर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मस्तिष्क के उस रहस्यमय स्थान में क्या होता है जहां से कंपन के जरिए अतिरिक्त ऊर्जा हासिल की जाती है। हालांकि मुङो संदेह है कि यह ब्रrांड में किसी के साथ जुड़ने से रोकता है। योग ध्यान की शक्ति के माध्यम से, लगातार प्राकृतिक आवृत्ति को ध्यान में रखकर, कठोरता और द्रव्यमान को बदलने की अनुमति देता है। यह घटना पहले हार्मोनिक्स तक ही बनी रहती है, क्योंकि इन मानों को हमेशा के लिए नहीं बदला जा सकता। एकाग्रता और ध्यान मस्तिष्क को उच्च हार्मोनिक्स स्तर पर जाने की अनुमति दे सकते हैं जहां वह ब्रrांडीय अनुनाद के साथ सामंजस्य बिठा सकता है। वह आत्म-प्राप्ति की स्थिति होती है। एक चरण से आगे दूसरे चरण में बढ़ते हुए, मानव शरीर और दिमाग की क्षमता और दृढ़ता का परीक्षण किया जा सकता है। ब्रrांडीय अनुनाद की स्थिति तक पहुंचने की प्रक्रिया में, ऐसी कई दशाएं आती हैं, जिन्हें इंसान साधारण स्थितियों में महसूस नहीं कर सकता, जैसे कर्म योग से, हठ योग से, राजयोग की ओर बढ़ना और ब्रrांड के साथ एकाकार होना।
श्यूमन अनुनाद एक वैश्विक विद्युत चुंबकीय अनुनाद है,जो पृथ्वी की सतह और आयनमंडल के बीच विद्यमान गुहा के भीतर विद्युत प्रवाह है और 7।86 हर्ट्ज से आठ हर्ट्ज पर विद्युत चुंबकीय तरंगों के साथ गूंजता है, जो कि ग्रह की बुनियादी गति है। ‘सामान्य’ विचार प्रक्रियाएं, जो आदमी के दिमाग में निर्मित होती हैं, उनकी रेंज 14 से 40 हर्ट्ज के बीच होती है। यदि हमारे दिमाग के दोनों सिरे एक दूसरे के साथ आठ हर्ट्ज पर एक दूसरे के साघ सिंक्रनाइज हों तो वे अधिक सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम कर सकते हैं और सूचना के अधिकतम प्रवाह की अनुमति दे सकते हैं।
आठ हर्ट्ज डीएनए प्रतिकृति में डबल हेलिक्स (कुंडलिनी) जागरण की आवृत्ति भी है। मानव शरीर अगर इस आवृत्ति पर गूंजे या योग के अभ्यास से इसे इस आवृत्ति पर टय़ून किया जा सके तो राजयोग और उससे भी आगे पहुंचने की क्षमता हासिल की जा सकती है। दरअसल, हमारे बच्चों को यह महसूस होना चाहिए कि ब्रrांड में सब कुछ नियंत्रित और स्वामित्व में है। योग सरल और सच्चे जीवन को तर्कसंगत बनाता है और मूल्यवान सिद्धांतों को बढ़ाकर भविष्य के लिए बेहतर नागरिक बनाता है। जैसा कि गीता में कहा गया है : ‘‘योग स्वयं के माध्यम से स्वयं की यात्र है।’’ इस प्रकार योग बेहतर शिक्षा के लिए एक महान पूरक है।