आयुष्मान भारत: मोदी सरकार का सही कदम लेकिन कुछ सवाल भी हैं!
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 25, 2018 05:49 AM2018-06-25T05:49:26+5:302018-06-25T05:49:26+5:30
सरकार के लिए यही सही होगा कि वह भारतीय कंपनियों से ही इसका बीमा कराए.
अश्विनी महाजन।
वर्ष 2018-19 के वित्त वर्ष के लिए बजट में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह घोषणा की कि 10 करोड़ परिवारों यानी 50 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य पर आने वाले 5 लाख रुपए तक के खर्च को सरकार वहन करेगी, तो यह एक सपने जैसा प्रतीत हुआ था। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना का जिक्र किया था, जिसके अंतर्गत दो प्रकार की स्वास्थ्य योजनाओं की घोषणा हुई थी- पहली, देशभर में स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों की स्थापना और दूसरी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना। हाल ही में केंद्र ने एक सरकारी अधिसूचना भी जारी की है जिसमें ‘आयुष्मान भारत’ योजना के बारे में विस्तार से बताया गया है। सर्वविदित है कि पिछले लंबे समय से सरकारी अस्पताल और डिस्पेंसरियां काफी बुरी हालत में हैं क्योंकि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार बढ़ती स्वास्थ्य जरूरतों के अनुपात में स्वास्थ्य पर बहुत कम खर्च कर रही हैं।
जहां एक ओर 1354 प्रकार के इलाज हेतु पैकेज की दरें ‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत तय कर दी गई हैं तो दूसरी ओर सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना, 2011 के आधार पर ‘आयुष्मान भारत’ योजना के लाभार्थियों की सूची तैयार करने हेतु घोषणा की गई है। 15 अगस्त 2018 को इस योजना को विधिवत पूरे देश के लिए लागू कर दिया जाएगा।
‘आयुष्मान भारत’ योजना, जिसमें प्रारंभिक तौर पर 10.74 करोड़ परिवारों यानी लगभग 50 करोड़ लोगों को शामिल किया गया है, को आगे चलकर सर्वव्यापी बनाने की योजना है। इस योजना में सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्र और गंभीर रोगों के निदान हेतु स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के तहत 50 करोड़ लोगों के लिए 5 लाख रुपए तक के इलाज का प्रावधान है। 2011 की जनगणना के सामाजिक, आर्थिक और जाति के आंकड़ों के आधार पर 10.74 करोड़ लोगों को चिह्न्ति कर 15 अगस्त 2018 को यह योजना विधिवत जारी कर दी जाएगी। इस संबंध में प्रति परिवार बीमा प्रीमियम राशि तय कर सभी परिवारों का बीमा कराया जाएगा। दावे प्रीमियम राशि के 120 प्रतिशत से ज्यादा होंगे तो उसके 50 प्रतिशत के बराबर राज्य सरकारें वहन करेंगी और उससे कम होने पर उन्हें कोई अतिरिक्त राशि नहीं देनी होगी।
इस संबंध में या तो बीमा कंपनियों के माध्यम से कार्य किया जाएगा, अन्यथा राज्य के स्तर पर ट्रस्ट बनाकर इस योजना को कार्यान्वित किया जाएगा। ट्रस्ट में केंद्र सरकार निश्चित राशि देगी और उस ट्रस्ट से दावों का भुगतान किया जा सकेगा। लेकिन प्रश्न उठता है कि इस कार्य को किन बीमा कंपनियों द्वारा संपादित किया जाएगा और उनके प्रीमियम की राशि क्या होगी? गौरतलब है कि हाल ही में नीति आयोग द्वारा सुझाए गए प्रति परिवार प्रीमियम राशि 1082 रु. को बीमा कंपनियों ने खारिज कर दिया है और इस प्रीमियम को दुबारा से परिकलित किया जा रहा है। यह राशि कितनी होगी, इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार पर इस नई योजना का कितना भार पड़ेगा।
जहां तक बीमा कंपनियों का सवाल है, देश में दो प्रकार की बीमा कंपनियां काम करती हैं एक सरकारी और दूसरी गैर-सरकारी। गैर-सरकारी कंपनियां अधिकांश: बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी से काम करती हैं। यदि गैर-सरकारी कंपनियों को इस काम के लिए लगाया जाता है तो इससे दो प्रकार के खतरे हो सकते हैं। एक, उनके दावों को निपटाने की दर बहुत कम होती है जिसके कारण कई जरूरतमंद लोगों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। दूसरे, ये कंपनियां बीमा व्यवसाय में अपने जोखिम को कम करने के लिए पुनर्बीमा यानी रीइंश्योरेंस कंपनियों से सौदा करती हैं। भारत में कोई रीइंश्योरेंस कंपनी न होने के कारण ये सारा धन विदेशों में जाने की आशंका है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर सरकार के लिए यही सही होगा कि वह भारतीय कंपनियों से ही इसका बीमा कराए।
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