ब्लॉगः मिठाई की परंपरा में शामिल चॉकलेट

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 19, 2018 09:29 PM2018-10-19T21:29:16+5:302018-10-19T21:29:16+5:30

चॉकलेट की मोहक क्षमता कई रूपों में सामने आती है। निर्विवाद रूप से यह मीठी होती है, लेकिन उबाऊ नहीं। इसकी कड़वाहट के पीछे भी एक मिठास छिपी होती है।

Blog: Chocolate covered in the tradition of dessert | ब्लॉगः मिठाई की परंपरा में शामिल चॉकलेट

सांकेतिक तस्वीर

-संतोष देसाई
त्यौहारों के मौसम में उपहारों का आदान-प्रदान शुरू हो गया है। सूखे मेवे और विभिन्न स्थानीय मिठाइयां हमेशा से इसका हिस्सा रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से कुछ नई चीजें भी इसमें शामिल होने का रास्ता ढूंढ रही हैं। इसमें चॉकलेट से अधिक उल्लेखनीय कुछ भी नहीं है, जिसे अब नियमित रूप से स्वाभाविक तौर पर मिठाई के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और दिवाली के समय में स्वीकार्य उपहारों की सूची में शामिल किया जाता है।

शुरुआती दिनों में चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए ही निर्धारित किए गए थे। विज्ञापनों में दिखाया जाता था कि  दफ्तर से लौटते हुए पिता अपने बच्चों के लिए चॉकलेट लाते हैं। लेकिन अफसोस! वास्तविक दुनिया में ऐसा बहुत कम होता था। वयस्क, जो अपने आपको उन दिनों गंभीरता से लेते थे, चॉकलेट नहीं खा सकते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि गैरजरूरी चीजों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

समय के साथ, और मार्केटिंग की चालाकी के बल पर आखिरकार संयम के इस बांध को तोड़ दिया गया और वयस्कों की दुनिया में भी चॉकलेट को प्रवेश मिला। इच्छा, जिसे मध्यम वर्ग के आत्मसंयम का दुश्मन माना जाता था, को वैधता मिली, और अपराध बोध के बिना भी इच्छा को संतुष्ट करना संभव हुआ। 

चॉकलेट की मोहक क्षमता कई रूपों में सामने आती है। निर्विवाद रूप से यह मीठी होती है, लेकिन उबाऊ नहीं। इसकी कड़वाहट के पीछे भी एक मिठास छिपी होती है। इसकी ऐंद्रीय प्रकृति को देखते हुए, भारत में चॉकलेट की वयस्क खपत को वैध बनाना आवश्यक था। इसका एक तरीका यह था कि परंपरा के दायरे में लाने के लिए इसे मिठाई के रूप में प्रचारित किया जाए, ताकि इसे संस्कारी रूप मिल सके।

प्रत्यक्षत: दोनों चीजें दो अलग-अलग संस्कृतियों से थीं। लेकिन हमारे सांस्कृतिक लचीलेपन को धन्यवाद देना चाहिए जिसने  इसकी खपत को वैध बनाया।

तर्कसंगत रूप से ऐसा होने पर कुछ खो जाता है। जब हम किसी नई चीज को ग्रहण करते हैं तो वह पहले से ली जाने वाली चीज को विस्थापित कर देती है। लेकिन चॉकलेट के मामले में यह प्रक्रिया इसके पहले ही शुरू हो चुकी थी, जब त्यौहारों के अवसर पर घर की बनी विशिष्ट पारंपरिक मिठाई को विस्थापित कर अधिक सामान्यीकृत मिठाइयां बाजार से खरीदी जाने लगी थीं।

चॉकलेट के साथ एक अच्छी बात यह रही है कि समय बीतने के साथ इसे खाने की खुशी की तीव्रता कम नहीं हुई है।

(संतोष देसाई भारतीय बाजार, विज्ञापन के दुनिया के जानकार हैं। वह एक स्तंभकार भी हैं।)

Web Title: Blog: Chocolate covered in the tradition of dessert

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