विजय दर्डा का ब्लॉग: सरकार ने ही तबाह कर दिए सरकारी स्कूल!
By विजय दर्डा | Published: June 17, 2019 07:09 AM2019-06-17T07:09:09+5:302019-06-17T07:09:09+5:30
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने वाला है और इसी बात को ध्यान में रखकर लोकमत मीडिया समूह ने महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण किया तो स्थिति की भयावहता उभर कर सामने आई. राज्य के सरकारी स्कूलों की 13228 कक्षाएं भवनों की दुर्दशा के कारण बंद हो चुकी हैं.
कितना अच्छा लगता है जब सरकार कहती है कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है. इसके लिए सरकार सर्व शिक्षा अभियान भी चलाती है लेकिन जब सरकारी स्कूलों को मैं देखता हूं तो रोना आ जाता है. मन में यह सवाल पैदा होता है कि सरकारी स्कूलों को किसने तबाह कर दिया? पहले तो ऐसे हालात न थे! मेरी और मेरे भाई राजेंद्र की प्रारंभिक पढ़ाई सरकारी स्कूल में ही हुई. उस समय इन्फ्रास्ट्रक्चर भले ही बेहतर नहीं था लेकिन शिक्षक लाजवाब थे. उनसे अर्जित ज्ञान से ही हम आगे बढ़े हैं. अब सरकारी स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होने चाहिए, क्योंकि शिक्षा पर सरकार हर साल हजारों करोड़ रुपए खर्च करती है.
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने वाला है और इसी बात को ध्यान में रखकर लोकमत मीडिया समूह ने महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण किया तो स्थिति की भयावहता उभर कर सामने आई. राज्य के सरकारी स्कूलों की 13228 कक्षाएं भवनों की दुर्दशा के कारण बंद हो चुकी हैं. इस शैक्षणिक सत्र में इन कक्षाओं का शुरू हो पाना असंभव सा लगता है. ये कक्षाएं इसलिए बंद हुईं क्योंकि स्कूलों में बैठने के लिए फर्श नहीं है और सिर पर छत नहीं है. कमरे टूटे-फूटे हैं. शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का भीषण अभाव है. हाइजीन कंडीशन की तो बात ही क्या करें. टीन शेड से बनाई गई छतें टूट चुकी हैं या आंधी-तूफान में उड़ गई हैं. खपरैल छतें टूटी होने की वजह से छात्रों पर खतरा मंडराता रहता है. क्षेत्रवार देखें तो विदर्भ में सर्वाधिक 3087 कक्षाएं और मराठवाड़ा में 2526 कक्षाएं बंद पड़ी हैं. वहीं पश्चिम महाराष्ट्र में 2506, उत्तर महाराष्ट्र में 2037 और कोंकण में 553 कक्षाएं बंद पड़ी हैं.
जहां कक्षा के लिए कमरे हैं ही नहीं वहां विद्यार्थियों को ठूंस-ठूंसकर एक ही कमरे में बैठाया जाता है. प्राचार्य और शिक्षकों की मजबूरी है कि वे छात्रों को मंदिर प्रांगण, ग्राम पंचायत भवनों या खुले में पढ़ाएं! आश्चर्यजनक यह है कि किस स्कूल का कौन सा कमरा खतरनाक स्थिति में है, इसकी जानकारी जिलों के आपदा प्रबंधन विभाग को नहीं दी गई है. ऐसे में यदि बारिश के दौरान कोई हादसा हो जाता है, तो वहां पर विभाग के कर्मचारियों का समय पर पहुंच पाना भी मुश्किल होगा. पिछले वर्ष नासिक में कक्षाओं के लिए 622 कमरों की मांग की गई थी, लेकिन वर्ष भर में एक भी कमरे के लिए पैसा नहीं मिला! ताजा डिमांड 747 कमरों की है.
यह हालत केवल महाराष्ट्र की नहीं है बल्कि पूरे देश में यही हाल है. राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन विश्वविद्यालय की ओर से जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम की रिपोर्ट कहती है कि साल 2015-16 और 2016-17 के बीच पूरे देश में करीब 60 लाख बच्चों ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों को छोड़ दिया. पिछले साल का आंकड़ा अभी आया नहीं है, लेकिन जो हालात हैं, सरकारी स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का आंकड़ा बढ़ा ही होगा!
तो बड़ा सवाल यह है कि सरकार जो हजारों करोड़ रुपए शिक्षा पर खर्च करने की बात करती है, वह पैसा जाता कहां है? मेरी टिप्पणी कठोर हो सकती है लेकिन है पूरी तरह सच कि व्यवस्था में बैठे लालची लोग बच्चों का हक मार रहे हैं. स्कूल में कमरों के लिए मिलने वाली राशि खा जाते हैं. बच्चों के गणवेश खा जाते हैं. उन्हें मिलने वाला पोषण आहार तक हजम कर जाते हैं. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि शिक्षा के नाम पर करोड़ों की राशि सरकार जारी करती है, लेकिन जिला परिषद स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चे छत के लिए तरस रहे हैं. ऐसी हालत में तो यही कहा जा सकता है कि सरकार ने ही तबाह कर दिए सरकारी स्कूल. विडंबना देखिए कि सरकार अपने स्कूलों को सुधार नहीं रही है और निजी स्कूलों में बेवजह हस्तक्षेप कर रही है. मेरी राय में निजी स्कूलों पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए.
सरकार को तो इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सरकारी स्कूल और अस्पताल अच्छे कैसे हों! सरकारी स्कूलों का बेहतरीन होना बहुत जरूरी है क्योंकि निम्न मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों के बच्चे वहीं पढ़ते हैं. बेहतरीन शिक्षा इन बच्चों का अधिकार है. शिक्षा उन्नति का आधार है. बहुत से प्रतिभावान बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. न जाने उनमें से कौन नेहरू, शास्त्री, सरदार पटेल, सतीश धवन, अब्दुल कलाम या नारायण मूर्ति बनने की क्षमता रखता होगा!
मैं हमेशा से यह कहता रहा हूं कि सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को सुधारने का अब सबसे सशक्त रास्ता यही है कि सारे सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों का सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य कर दिया जाए. यदि ऐसा होता है तो तत्काल स्थिति सुधरनी शुरू हो जाएगी. हाल ही में मैंने खबर पढ़ी कि कटनी के कलेक्टर पंकज जैन ने अपनी बिटिया का दाखिला सरकारी आंगनवाड़ी में कराया है. फिर खबर आई कि तेलंगाना के विकाराबाद की कलेक्टर मसर्रत खानम आएशा ने अपनी बेटी का एडमिशन सरकारी स्कूल की पांचवीं कक्षा में कराया है. ये अनुकरणीय उदाहरण हैं. जाहिर सी बात है कि जब कलेक्टर के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो वहां के हालात सुधरेंगे ही.
मोदी जी की सरकार ने जिस तरह से स्वच्छता अभियान के क्षेत्र में कमाल किया है, वैसा ही कमाल सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में भी किए जाने की जरूरत है. पूरे देश में एक समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए. राज्य और केंद्र सरकार एक-दूसरे के साथ आएं और तय कर लें कि निश्चित समयावधि में पूरे देश के स्कूलों और अस्पतालों की हालत सुधार देंगे. यदि हम ऐसा कर पाए तो गरीबों और निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बच्चों के लिए यह एक बड़ा तोहफा होगा. ध्यान रखिए, शिक्षा के माध्यम से ही देश आगे बढ़ेगा!