वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नई शिक्षा नीति को लेकर कुछ सवाल
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 31, 2020 05:03 AM2020-07-31T05:03:01+5:302020-07-31T05:03:01+5:30
नई शिक्षा नीति का सबसे पहले तो इसलिए स्वागत है कि उसमें मानव-संसाधन मंत्नालय को शिक्षा मंत्नालय नाम दे दिया गया. मनुष्य को ‘संसाधन’ कहना तो शुद्ध बेवकूफी थी. नरेंद्र मोदी सरकार को बधाई कि उसने इस मंत्नालय का खोया नाम लौटा दिया.
पिछले 73 वर्षो में भारत ने दो मामलों की सबसे ज्यादा उपेक्षा की. एक शिक्षा और दूसरी चिकित्सा. उसका परिणाम सामने है. भारत की गिनती अभी भी पिछड़े देशों में ही होती है, क्योंकि शिक्षा और चिकित्सा पर हमारी सरकारों ने बहुत कम ध्यान दिया और बहुत कम खर्च किया. इनमें से एक बुद्धि को, दूसरी शरीर को बुलंद बनाती है. तन और मन को तेज करनेवाली दृष्टि तो मुङो इस नई शिक्षा नीति में दिखाई नहीं पड़ती. इस नई नीति में न तो शारीरिक शिक्षा पर मुङो एक भी शब्द दिखा और न ही नैतिक शिक्षा पर. यदि शिक्षा शरीर को सबल नहीं बनाती है और चित्तवृत्ति को शुद्ध नहीं करती है तो यह कैसी शिक्षा है?
इसका अर्थ यह नहीं कि इस नई शिक्षा नीति में नया कुछ नहीं है. काफी कुछ है. इसमें मातृभाषा को महत्व मिला है. छठी कक्षा तक सभी बच्चों को स्वभाषा के माध्यम से पढ़ाया जाएगा. यह अच्छी बात है लेकिन हमारी सरकारों में इतना दम नहीं है कि वे दो-टूक शब्दों में कह सकें कि छठी कक्षा तक अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ाने पर प्रतिबंध होगा. यदि ऐसा हो गया तो शिक्षा के नाम पर चल रही निजी दुकानों का क्या होगा? त्रिभाषा-व्यवस्था जिस तरह से की गई है, ठीक है लेकिन अंग्रेजी की पढ़ाई को स्वैच्छिक क्यों नहीं किया गया? क्या इस नई शिक्षा नीति के अनुसार सभी विषयों की एमए और पीएचडी की शिक्षा भी भारतीय भाषाओं के माध्यम से होगी? आज से 55 साल पहले मैंने जवाहरलाल नेहरु विवि में अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की लड़ाई लड़ी थी. मेरी विजय हुई लेकिन आज भी लगभग सारा शोध अंग्रेजी में होता है. इस ढर्रे को आप कब बदलेंगे? ये तो मेरे कुछ प्रारंभिक और तात्कालिक प्रश्न हैं लेकिन नई शिक्षा नीति का जब मूल दस्तावेज हाथ आएगा, तब उस पर लंबी बहस की जाएगी.