निरंकार सिंह का ब्लॉग: शिक्षा व्यवस्था में बदलाव का लक्ष्य
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 10, 2019 02:34 PM2019-07-10T14:34:13+5:302019-07-10T14:34:13+5:30
शिक्षा में आमूल-चूल सुधार के लिए नौ सदस्यों वाली कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा इसी साल 9 मई को केंद्र सरकार को सौंपा था. इसमें प्राथमिक शिक्षा को सिर्फ तीसरी, चौथी और पांचवीं तक रखा जाएगा.
देश में शिक्षा के ढांचे में मोदी सरकार बड़ा बदलाव लाएगी. नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए 400 करोड़ रुपए के फंड का ऐलान भी बजट में कर दिया गया है, जो पिछली बार से तीन गुना ज्यादा है. सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के लागू होने से देश में स्कूली शिक्षा का 50 साल पुराना ढांचा पूरी तरह से बदल जाएगा. यह दुनिया की सबसे बेहतरीन शिक्षा नीतियों में एक है. इसमें शोध, नए प्रयोगों को प्रमुखता दी जाएगी. उच्च शिक्षा में शोध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का प्रस्ताव रखा गया है. सभी मंत्रलयों से मिलने वाली फेलोशिप और छात्रवृत्तियां भी इससे जुड़ जाएंगी. शोध एवं तकनीकी विकास देश की जरूरतों के अनुसार होंगे.
शिक्षा में आमूल-चूल सुधार के लिए नौ सदस्यों वाली कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा इसी साल 9 मई को केंद्र सरकार को सौंपा था. इसमें प्राथमिक शिक्षा को सिर्फ तीसरी, चौथी और पांचवीं तक रखा जाएगा. पहली और दूसरी कक्षा की पढ़ाई बुनियादी शिक्षा से जोड़ी जाएगी. पूरी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव के लक्ष्य को 2035 तक हासिल करने की बात कही गई है.
हमारे बच्चों के बहुत बड़े हिस्से को वह शिक्षा नहीं मिल रही है जिसकी उन्हें जरूरत है. मौजूदा वक्त में बचपन की ज्यादातर शुरुआती शिक्षा आंगनवाड़ियां और निजी प्री-स्कूल दे रहे हैं. एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) के तहत चलाई जा रही आंगनवाड़ियों ने माताओं और शिशुओं की स्वास्थ्य देखभाल के लिहाज से अच्छे नतीजे दिए हैं, मगर शिक्षा के मामले में गच्चा दिया है. निजी प्री-स्कूल बेहतर बुनियादी ढांचा जरूर मुहैया करते हैं, पर उनके पाठ्यक्रम और पढ़ाने के तरीके ऐसे नहीं हैं जिसकी बचपन की शुरुआती शिक्षा के लिए जरूरत है. यही वजह है कि एनईपी की सबसे ऊंची प्राथमिकता 2025 तक प्राथमिक स्कूलों और उससे आगे की कक्षाओं में सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता और अंकज्ञान हासिल करना है.
एनईपी का मसौदा कहता है, ‘‘अगर यह सबसे बुनियादी शिक्षा-आधारभूत स्तर पर पढ़ना, लिखना और अंकगणित पहले हासिल नहीं की जाती, तो हमारे छात्रों के इतने बड़े हिस्से के लिए बाकी की नीति मोटे तौर पर अप्रसांगिक होगी.’’ यह भी पक्का करना होगा कि 3 से 18 साल के बीच की उम्र के सभी छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा बाल अधिकार (संशोधन) 2019 के दायरे में लाया जाए. 1993 की ऐतिहासिक यशपाल समिति की रिपोर्ट ‘लर्निग विदाउट बर्डन’ (बोझ के बगैर सीखना) को आगे ले जाते हुए एनईपी छात्रों पर विषय सामग्री और पाठ्यपुस्तकों के बोझ को कम करने का जतन करती है और तोतारटंत पढ़ाई को हतोत्साहित करती है.