गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहों पर भी देना होगा ध्यान

By गिरीश्वर मिश्र | Published: September 22, 2020 12:30 PM2020-09-22T12:30:04+5:302020-09-22T12:32:40+5:30

मुख्य धारा के स्कूलों को लेकर काफी असंतोष देखने को मिलता रहा है. विद्यालय की संस्था को अधिक संवेदनशील और आग्रहमुक्त होने की जरूरत है.

Girishwar Misra blog attention should also given to alternative paths of school education | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: स्कूली शिक्षा की वैकल्पिक राहों पर भी देना होगा ध्यान

स्कूली शिक्षा में कई बदलाव और विकल्प की जरूरत

Highlightsप्रतियोगिता और उपभोक्तावाद के आगोश में हमारी आज की शिक्षा पद्धति और स्कूलसभी बच्चों को एक ही ढांचे में एक ही तरह के सांचे में ढाल कर शिक्षा देने व्यवस्था उचित नहीं 

स्कूली शिक्षा सभ्य बनाने के लिए एक अनिवार्य व्यवस्था बन चुकी है. शिक्षा का अधिकार संविधान का अंश बन चुका है. भारत में स्कूलों पर प्रवेश के लिए बड़ा दबाव है और अभी करोड़ों बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और जो स्कूल जा रहे हैं उनमें से काफी बड़ी संख्या में बीच में ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ दे रहे हैं. यानी शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. 

दूसरी तरफ स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को ले कर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. सभी बच्चों को उनकी रुचि, क्षमता और स्थानीय सांस्कृतिक प्रासंगिकता आदि को दरकिनार रख सभी को एक ही ढांचे में एक ही तरह के सांचे में ढाल कर शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. 

विद्यालय की संस्था को अधिक संवेदनशील होने की जरूरत

सरकार की औपचारिक शिक्षा प्रणाली फैक्ट्री में थोक के हिसाब से माल तैयार करने के तर्ज पर एक ही तरह के मानक की पक्षधर है. मनुष्य मात्न में जन्म से ही दिखने वाली व्यक्तिगत भिन्नता के तथ्य की अनदेखी करते हुए और मानवीय प्रतिभा की सृजनात्मकता और स्वतंत्न चिंतन की नैसर्गिक विशेषताओं को भुला कर सबके लिए एक ही पैमाने का उपयोग व्यवस्था की दृष्टि से सुभीता तो जरूर देता है पर सहज मानसिक विकास में बाधक होता है. 

कुल मिला कर मुख्य धारा के स्कूलों को लेकर काफी असंतोष देखने को मिलता है. शिक्षा में जिस खुलेपन और विविधता की जरूरत होती है उसके लिए विद्यालय की संस्था को अधिक संवेदनशील और आग्रहमुक्त होने की जरूरत है. 

वैसे भी विश्व की अनेक प्रतिभावान विभूतियों ने स्कूल की संस्था की उपादेयता पर प्रश्नचिह्न उठया है. स्कूलों की संस्था की उपयोगिता के विवाद में न भी पड़ें तो स्कूलों में विविधता इसलिए भी जरूरी है कि स्कूली आयु के बच्चे न केवल सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से अनेक तरह की पृष्ठभूमियों से आते हैं बल्कि उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, स्कूल के लिए तत्परता और शारीरिक-मानसिक क्षमता (जैसा दिव्यांग बच्चों में मिलता है) और जटिल सामाजिक पारिवारिक परिवेश में भी अंतर पाए जाते हैं. 

स्कूल छोड़ कर जाने वाले बच्चों की संख्या बहुत बड़ी

कुंठा के चलते स्कूल छोड़ कर चले जाने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है. देश अभी भी पूर्णत: साक्षर नहीं हो सका है. ऐसे में वैकल्पिक स्कूलों की व्यवस्था का महत्व बढ़ जाता है.

आधुनिक भारत में प्रचलित स्कूली व्यवस्था एक ओर अपने औपनिवेशिक अस्तित्व से बंधी है तो दूसरी ओर अब उस पर वैश्विकता का भूत सवार है. इन सबके बीच यथास्थिति बनी हुई है. इनको अपर्याप्त मानते हुए वैकल्पिक स्कूल को ले कर कई प्रयास होते रहे हैं. 

पाठशाला, गुरुकुल और मदरसे तो जमाने से चले आ रहे थे. अंग्रेजों के जमाने में नया ढांचा चला जो अब मुख्य धारा बना हुआ है. गांधीजी ने शिक्षा के सुंदर वृक्ष के समूल विनाश के लिए अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया था परंतु 1947 में स्वतंत्नता मिलने के बाद भी प्रतियोगिता और उपभोक्तावाद के आगोश में हम उसी शिक्षा पद्धति को चलाते रहे. 

इससे सामाजिक असमानता भी बढ़ी और मूल्यों की दृष्टि से भी हम कमजोर पड़ते गए. इसके समानांतर महंगे निजी स्कूलों की भी भरमार हो गई.

नए तरह के स्कूल और प्रयोग की आवश्यकता

वैकल्पिक दृष्टि से स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद ने प्रयास शुरू किया था. महात्मा गांधी, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, श्री अरविंद,  गिजुभाई बधेका, जिद्दू कृष्णमूर्ति के शैक्षिक  प्रयासों से नए तरह के स्कूल के प्रयोग शुरू हुए. चिन्मय मिशन, साधु वासवानी ट्रस्ट, दयालबाग शैक्षिक संस्थान आदि भी इस दिशा में कार्यरत हैं. 

ऐसे ही मांटेसरी पद्धति के विद्यालय भी चल रहे हैं. सत्तर के दशक में होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम, बेंगलुरु का विकासना, राजस्थान में दिगंतर, उत्तराखंड में सिद्ध स्कूल, मध्य प्रदेश में आधार शिला शिक्षण केंद्र, तमिलनाडु में विद्योदय स्कूल, बिहार में चरवाहा विद्यालय जैसे प्रयासों के साथ ही पूरे देश में इस तरह के प्रयास हो रहे हैं. 

राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान भी इस दिशा में नवाचारी प्रयास कर रहा है. इन वैकल्पिक स्कूलों के विचारों और अभ्यासों को आत्मसात करके मुख्यधारा की शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकेगा. भारत में नवाचारों के लिए प्रतिरोध आम बात है. 

माता-पिता, अभिभावक, नीति निर्माता, अध्यापक सभी चाहते हैं कि सुधार हो परंतु यह सरल नहीं होता है. हम विकल्प के स्कूल के रूप में जिन संस्थाओं को पाते हैं वे प्राय: उन सीमाओं को लांघने की कोशिशें हैं जिनसे  उबरने के लिए मुख्य धारा की संस्थाएं जूझ रही हैं. वैकल्पिक स्कूल शिक्षा के उन्नयन की राह दिखाते हैं.

Web Title: Girishwar Misra blog attention should also given to alternative paths of school education

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