डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: मेडिकल शिक्षा में आमूल बदलाव हो
By डॉ एसएस मंठा | Published: June 25, 2019 06:47 AM2019-06-25T06:47:27+5:302019-06-25T06:47:27+5:30
मेडिकल शिक्षा के पाठय़क्रम में आमूल बदलाव करने की जरूरत है.शहरों में अगर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की जरूरत है तो ग्रामीण क्षेत्रों में तो बुनियादी ढांचा ही मौजूद नहीं है. गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम एक डॉक्टर होना जरूरी है, लेकिन इस क्षेत्र में डॉक्टरों के 8500 पद रिक्त हैं.
देश में मेडिकल शिक्षा की दशा इन दिनों ऐसी है कि उसमें भारी सुधार करने की जरूरत है. इसके लिए बुनियादी ढांचे, अस्पतालों में नर्सो, विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी जैसी सभी चीजों पर ध्यान देना होगा. साथ ही अनुसंधान के क्षेत्र में भी सुधार करना होगा. इन मुद्दों पर ध्यान दिए बिना मेडिकल शिक्षा में सुधार की बात सोचना भी बेमानी है.
नागरिकों की स्वास्थ्य सेवा के नाम पर जितना भारी भरकम पैसा खर्च किया जाता है, उसकी तुलना में मेडिकल शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाना एक पहेली जैसा ही है. मेडिकल शिक्षा के पाठय़क्रम में आमूल बदलाव करने की जरूरत है.शहरों में अगर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की जरूरत है तो ग्रामीण क्षेत्रों में तो बुनियादी ढांचा ही मौजूद नहीं है. गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम एक डॉक्टर होना जरूरी है, लेकिन इस क्षेत्र में डॉक्टरों के 8500 पद रिक्त हैं.
देश में कितने डॉक्टर उपलब्ध हैं, यह सवाल 30 सितंबर 2017 को लोकसभा में उठा था. तब संबंधित मंत्री ने बताया था कि देश में अलग-अलग मेडिकल कौंसिलों के अंतर्गत पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या 1041395 है. मंत्री ने कहा था कि इनमें से अगर 80 प्रतिशत डॉक्टरों को उपलब्ध मानें तो कार्यरत डॉक्टरों की संख्या 833000 है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश है कि प्रत्येक एक हजार नागरिकों के पीछे एक डॉक्टर होना चाहिए. इसे देखते हुए देश को और पांच लाख डॉक्टरों की जरूरत है.
मेडिकल शिक्षा हासिल करने के लिए हर साल दस लाख विद्यार्थी आवेदन करते हैं, जिसमें से मात्र 67532 का एमबीबीएस के लिए चयन होता है. इसे देखते हुए भला कैसे उम्मीद की जा सकती है कि आवश्यक डॉक्टरों की संख्या पूर्ण होगी? ऐसा लगता है कि हमारे देश में मेडिकल शिक्षा सिर्फ उच्च वर्ग के लिए ही है और प्रतिभा होते हुए भी गरीब घरों के विद्यार्थी डॉक्टर बनने का सपना नहीं देख सकते.
देश में 60 प्रतिशत बच्चे ग्रामीण भाग में जन्म लेते हैं. हर 12 मिनट में एक स्त्री की प्रसव के दौरान मौत होती है. तीन लाख नवजात बच्चे जन्म लेते ही मौत के मुंह में समा जाते हैं. 12 लाख बच्चों की मृत्यु एक साल का होने के पूर्व ही हो जाती है. इसके मद्देनजर हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा की दशा शोचनीय है. देश में स्त्री रोग विशेषज्ञों की जरूरत दो लाख है जबकि उपलब्धता सिर्फ पचास हजार की ही है. एनेस्थेटिक्स, पेडियाट्रिक्स, रेडियोलॉजिस्ट - सभी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विशेषज्ञों की कमी है .