Jharkhand Khunti: क्रूरता की कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि पढ़-सुन कर दिल दहल जाता है. ताजा घटना झारखंड के खूंटी जिले की है, जहां एक 25 वर्षीय व्यक्ति ने अपनी ‘लिव-इन-पार्टनर’ की कथित तौर पर गला घोंटकर हत्या कर दी और उसके शव के 40-50 टुकड़े करके जंगल में फेंक दिया. जंगल में मृत महिला के सामान वाले बैग में मिले आधार कार्ड से उसकी शिनाख्त की जा सकी. इस घटना ने वर्ष 2022 में दिल्ली में हुए श्रद्धा वालकर हत्याकांड की याद ताजा कर दी, जिसमें उसके ‘लिव-इन-पार्टनर’ ने हत्या करके इसी तरह उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर जंगल में फेंक दिया था.
हैरानी की बात यह है कि इतनी बर्बरता दिखाने के बाद भी आरोपियों को किसी तरह का अपराधबोध महसूस नहीं होता, वे ऐसे दिखाई देते हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो! कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में अभी अगस्त माह में ही एक ट्रेनी महिला डॉक्टर की बलात्कार व जघन्य हत्या की यादें लोगों के जेहन में ताजा हैं, जिसमें आरोपी द्वारा ठंडे दिमाग से दिखाई गई नृशंसता स्तब्ध कर देने वाली थी.
यह जानकर दिलो-दिमाग सुन्न सा होने लगता है कि ऐसे क्रूर अपराधी हमारे ही समाज का हिस्सा हैं और वारदात उजागर होने के पहले तक वे हमें सामान्य आदमी की तरह ही लगते थे! आदतन अपराधी की तो पृष्ठभूमि जानकर हम फिर भी सतर्क रह सकते हैं लेकिन भद्र नागरिक के वेश में समाज में रहने वाले ऐसे नराधमों की पहचान कैसे हो?
ऐसी घटनाएं अपवादस्वरूप इक्का-दुक्का होतीं तो फिर भी इसे कुछ लोगों की मनोविकृति मानकर हम अपने आप को सांत्वना दे सकते थे, लेकिन जिस बड़ी संख्या में वे सामने आ रही हैं, वे मनुष्यता को हिला देने वाली हैं. वर्ष 2012 का दिल्ली का निर्भया कांड भी ऐसी ही नृशंसता का उदाहरण था, जिसके आरोपी समाज के आम नागरिक ही थे.
अभी इसी महीने मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में लुटेरों ने चांदी की पायल के लिए एक बुजुर्ग महिला की नृशंसता से हत्या कर दी. लुटेरों ने चांदी की पायल निकालने के लिए महिला का पैर काट दिया और उसे नाले में फेंक दिया था. हिंसा से जूझ रहे मणिपुर के जिरीबाम जिले में एक ही परिवार के छह लोगों की जिस क्रूरता से हत्या की गई, वह बेहद डरावनी है.
मारे गए लोगों में किसी का सिर अलग था तो किसी की आंखें गायब थीं. बेरहमी की ऐसी घटनाओं की श्रृंखला बहुत लंबी है. ऐसी घटनाओं में कानून तो अपना काम करता ही है, हम नागरिकों को भी जरा ठहरकर इस पर विचार करना होगा कि समाज में बढ़ती इस पाशविकता का कारण क्या है और इस पर आखिर किस तरह से अंकुश लगाया जा सकता है.