मिथ यह है कि यौन उत्पीड़न की वजह लड़कियों का पहनावा और उनकी जीवनशैली होती है। जबकि तथ्य यह है कि यौन उत्पीड़न की वजह कुंठित मानसिकता है। इसका लड़कियों के पहनावे या जीवनशैली से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यौन उत्पीड़न तो छह महीने की बच्ची और सत्तर साल की बूढ़ी महिलाओं के साथ भी होता है। स्त्रियों के यौन उत्पीड़न को लेकर आम जन मिथ पालकर बैठे हों, तो समझा जा सकता है, लेकिन यदि अदालतें भी पुरानी सोच के हिसाब से तर्क देकर किसी आरोपी का संरक्षण करें, उसे जमानत दे दें तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा?
केरल की एक अदालत ने ऐसा ही एक अजीबोगरीब फैसला दिया है। फैसले में कहा गया है कि फरियादी महिला ने उत्तेजक कपड़े पहने थे, इसलिए यौन शोषण के आरोपी को जमानत दी जाती है। यानी महिलाओं के उत्तेजक कपड़े पहनने पर लागू नहीं होगी धारा 354-ए। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इस बात से असहमत होगा, आपत्ति भी जताएगा। कहना गलत न होगा कि ऐसे ही फैसले आगे चलकर नजीर बन जाते हैं और दुराचारियों के हौसले बुलंद होते हैं। क्या कपड़ों के आधार पर किसी मर्द को किसी स्त्री के साथ जबरदस्ती करने का अधिकार मिल जाता है?
इससे घटिया मर्दवादी सोच को बढ़ावा ही मिलेगा। जरूरत महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अत्याचारों पर अंकुश लगाने की है, उन्हें कुतर्कों के सहारे कठघरे में खड़े करने की नहीं। वैसे, यौन शोषण को महिलाओं के कपड़ों से जोड़कर देखना कोई नई बात नहीं है। हमारे नेता आए-दिन इस तरह के बयान देते रहते हैं। महिलाओं, लड़कियों को लेकर अक्सर सुना जाता है कि पर्दा किया होता तो ये अनहोनी न होती। सवाल यह है कि क्या पर्दा, हिजाब, घूंघट में रहने वाली महिलाएं, लड़कियां हवस का शिकार नहीं बनती हैं?
जिस समाज में छह महीने की बच्ची यौन शोषण से न बची हो, उसके लिए क्या कहा जाए। इस तरह के फैसले सामने आने से महिलाओं की परेशानियां बढ़ सकती हैं। ऐसे में तो कोई भी महिला अगर किसी पर यौन शोषण का आरोप लगाती है तो उसे पहले साबित करना होगा कि उसने कैसे कपड़े पहने थे। फैसले से यह भी ध्वनित होता है कि सत्तर पार का कोई बुजुर्ग किसी स्त्री का शोषण नहीं कर सकता है, जबकि अनेक मामलों में बुजुर्ग भी यौन शोषण के दोषी निकले हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी कि हम समाज में महिलाओं, युवतियों और बच्चियों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने के बजाय उन्हें ही दोषी ठहराएं। महिलाएं घर-बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। आंकड़े भयावह हैं। हमें घर-समाज के पुरुषों, लड़कों को समझाना होगा। समस्या का समाधान तलाशने और वास्तविक दोषियों को कड़ी सजा देने के बजाय महिलाओं के कपड़ों में खोट निकालना ठीक नहीं है।