यह वास्तव में हमारे लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है कि कुशल और पेशेवर मानी जाने वाली महाराष्ट्र पुलिस ने अहमदनगर में सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक नितेश राणे की बातों का संज्ञान लिया। भड़काऊ भाषणों के वायरल होने के तुरंत बाद दो एफआईआर पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे राणे के खिलाफ दर्ज कराई गईं। राणे का नफरत भरा भाषण महाराष्ट्र और उसके बाहर पहले भी अन्य लोगों द्वारा दिए गए ऐसे कई भाषणों और कार्रवाइयों का परिणाम था।
नासिक जिले में एक हिंदू संत द्वारा दूसरे धर्म के खिलाफ अवांछित टिप्पणी करने के बाद, मध्यप्रदेश के छतरपुर में भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिलीं, जहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने पुलिस पर हमला बोल दिया। स्थानीय प्रशासन ने बदले में आरोपी नेता की बड़ी हवेली पर बुलडोजर चला दिया।
दोनों समुदायों की ओर से नफरत भरे भाषणों से एक नया चलन बनने का खतरा पैदा हो गया है, जिससे शांतिपूर्ण समाज का ताना-बाना टूट रहा है। भारत एक सहिष्णु राष्ट्र रहा है, जिसमें बहुलवादी विचारों, जीवन शैली, खान-पान की आदतों और अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के लिए जगह हमेशा रही है। संविधान इसी के अनुकूल बनाया गया था और इसकी भावना को सभी राजनीतिक दलों और नेताओं से बरकरार रखने की उम्मीद की जाती है। लेकिन हर दिन इसके विपरीत देखने को मिल रहा है।
माहौल काफी बिगड़ता जा रहा है। कई युवा शिक्षित भारतीय नौकरी के लिए विदेश जाने के बाद भारत वापस नहीं आना चाहते। क्या यह अच्छा संकेत है? दुर्भाग्यवश, भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में, समाज में गहरी और अंधेरी दरारें स्पष्ट दिखाई दे रही हैं, जिसका कारण है घृणास्पद भाषणों की भरमार। समाज एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू है, जो गहरी चिंता का सबब है। मॉब लिंचिंग, गायों का आवागमन, गोमांस, वक्फ बिल और उससे जुड़े विवाद या बांग्लादेश का घटनाक्रम- ये सभी हमारी सामूहिक धार्मिक सहिष्णुता की परीक्षा ले रहे हैं।
पिछले दस सालों में हिंदू-मुस्लिम सामाजिक रिश्तों में तनाव चरम सीमा पर पहुंच गया है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भगवा पार्टी के कट्टर समर्थकों को लगने लगा है कि अब संघ परिवार का लंबे समय से सपना रहा ‘हिंदू राष्ट्र’ आखिरकार साकार होगा। त्रासदी यह है कि गौ-प्रेमी गौ-माता की सही चिंता करते कम ही दिखाई देते हैं।
मध्यम वर्ग के कई हिंदू, जो गैर-राजनीतिक लोग हैं, दृढ़ता से महसूस करते हैं कि ‘भारत में एक विशेष समुदाय को उसकी जगह दिखाने की जरूरत है।’ शिक्षित पृष्ठभूमि के इन लोगों का मानना है कि अगर मुसलमानों पर आर्थिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक रूप से लगाम नहीं कसी गई तो हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक बन जाएंगे, भारत में ही।बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में मुस्लिम विरोधी भावनाएं दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जा रही हैं।
अल्पसंख्यक समुदाय राणे जैसे लोगों या यहां तक कि भाजपा के बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की विभिन्न टिप्पणियों से भड़का हुआ है, जिन्होंने चुनावों के दौरान ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जिससे उत्तर से दक्षिण भारत तक नफरत फैल गई।
नफरत से जुड़े अपराध किसी भी लोकप्रिय सरकार के लिए चिंता का विषय होने चाहिए। इनकी वजह से न केवल हत्याएं और क्रूर हमले होते हैं - जैसा कि मुंबई में 72 वर्षीय व्यक्ति के साथ हुआ-बल्कि सामाजिक संरचना भी तबाह होती है। एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय को अधिक संदेह की दृष्टि से देखते हैं। बुजुर्ग अशरफ हुसैन भैंस का मांस ले जा रहे थे, गोमांस नहीं, फिर भी धुले के तीन युवकों ने उन पर हमला कर दिया।
वे बुजुर्ग से पूछ सकते थे कि क्या वह गोमांस ले जा रहे हैं या उनके सामान की जांच कर सकते थे, हालांकि किसी भी कानून के तहत उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है। लेकिन उन्हें बुरी तरह पीटना अक्षम्य है। भाजपा से जुड़े तत्वों द्वारा ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। दोनों तरफ आग लगी हुई है। मोदी सरकार को ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटना चाहिए।‘इंडिया हेट लैब’ ने पिछले साल भारत में नफरत फैलाने वाली 668 घटनाओं को दर्ज किया था।
वाशिंगटन स्थित इस समूह ने पाया कि इनमें से 75 प्रतिशत अर्थात 498 घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में हुईं। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत नफरत फैलाने वाली बातों से निपटने के लिए धाराएं हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में थीं, बशर्ते सभी सरकारें नफरत फैलाने वाले अपराधों को रोकने की इच्छाशक्ति दिखाएं। सामाजिक नेताओं को भी इसे गंभीर चुनौती के रूप में देखना चाहिए और जरूरी कदम उठाना चाहिए।
दुनिया भर में राजनीतिक और धार्मिक नेताओं द्वारा नफरत भरे भाषण दिए जा रहे हैं और वे आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। निहित स्वार्थों द्वारा पैदा की जाने वाली धार्मिक दरार के कारण सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं। भारत में हिंदुओं को मस्जिदों से दिन में कई बार लाउडस्पीकर का इस्तेमाल पसंद नहीं है। कुछ मुख्यमंत्रियों ने इस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
अगर भारत में दोनों समुदाय सौहार्द्रपूर्ण तरीके से रहना चाहते हैं तो उनके नेताओं को संयम और परिपक्वता दिखानी होगी। उन्हें अपने अनुयायियों पर नियंत्रण रखना होगा। सामाजिक संघर्ष से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा जो किसी के लिए भी हितकर नहीं है।
वैश्विक नेता भारत को एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था और विश्वशक्ति के रूप में देख रहे हैं। शांतिपूर्ण, विकासशील समाज के लिए मतभेदों को हर हाल में कम करना सरकार की जिम्मेदारी है।