अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: जातियों की गुटबंदी और बाहुबली का एनकाउंटर

By अभय कुमार दुबे | Published: July 16, 2020 12:56 PM2020-07-16T12:56:39+5:302020-07-16T12:56:39+5:30

विकास दुबे और उसके हथियारबंद गुर्गों ने जब आठ पुलिस वालों की गोलियों और धारदार हथियारों से हत्या कर दी तो उसके तुरंत बाद जो प्रक्रिया शुरू हुई- उस पर एक नजर डालते ही समझ में आ जाता है कि ऊपर बताए गए काम अभी तक क्यों नहीं किए जा सके, और आगे भी क्यों नहीं किए जाएंगे.

Abhay Kumar Dubey's blog over vikas dubey encounter: caste grouping and Bahubali encounter | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: जातियों की गुटबंदी और बाहुबली का एनकाउंटर

उप्र पुलिस की एनकाउंटर करने की जिद के कारण प्रदेश के भीतर विकास दुबे का ‘समर्पण’ और गिरफ्तारी नामुमकिन थी.

विकास दुबे जैसा प्रकरण फिर से न घटे, इसके लिए हमें अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था में आमूल-चूल किस्म के परिवर्तन करने होंगे. मौजूदा पुलिस प्रणाली को या तो पूरी तरह से खत्म कर देना होगा या उसमें रैडिकल सुधार करके उसकी शक्ल-सूरत पूरी तरह से कुछ की कुछ बना देनी होगी. राजनीतिक दलों और अपराध की दुनिया के बीच के रिश्तों को निष्प्रभावी बनाने की संहिताएं तैयार करनी होंगी. न्याय व्यवस्था में सुधार करना होगा ताकि अगर पुलिस अपराधी को गिरफ्तार करके अदालत में पेश कर भी दे तो उसे सुचिंतित और निष्पक्ष तरीके से सजा दी जा सके और पुलिस को फर्जी एनकाउंटर का सहारा न लेना पड़े. जेल प्रणाली को ब्रिटिश जेल प्रणाली के कायदे-कानूनों से बाहर निकाल कर नवीकृत करना होगा, ताकि सजा काट रहे कैदी जेल में ही बैठ कर सुरक्षित रूप से जेल के बाहर अपना साम्राज्य न चला सकें.

विकास दुबे और उसके हथियारबंद गुर्गों ने जब आठ पुलिस वालों की गोलियों और धारदार हथियारों से हत्या कर दी तो उसके तुरंत बाद जो प्रक्रिया शुरू हुई- उस पर एक नजर डालते ही समझ में आ जाता है कि ऊपर बताए गए काम अभी तक क्यों नहीं किए जा सके, और आगे भी क्यों नहीं किए जाएंगे. पुलिसजनों के प्राण लेने के बाद जैसे ही विकास दुबे फरार हुआ, वैसे ही उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा के भीतर की जातिगत गुटबाजी तेजी से सक्रिय हो गई. उत्तर प्रदेश की भाजपा तीन जातिगत गुटों के आपसी संतुलन पर टिकी रहती है. यह है ब्राह्मण लॉबी, ठाकुर लॉबी और पिछड़ा लॉबी का संतुलन. इन तीनों गुटों के पास ही मुख्यमंत्री पद और दो उपमुख्यमंत्री पद हैं. तीनों लॉबियां प्रदेश और स्थानीय स्तर पर अपने-अपने राजनीतिक हितों के मद्देनजर बाहुबलियों को उठाने-गिराने की योजनाओं पर अमल करती रहती हैं.

जैसे ही विकास दुबे कांड हुआ, ब्राह्मण लॉबी ने तय किया कि वह पुलिस के हाथों उसे मरने नहीं देगी. यह इस लॉबी की ताकत का प्रमाण है कि उप्र की भाजपा उसके इस आग्रह को मान गई. सोशल मीडिया पर भी मुहिम चलने लगी कि ‘ब्राह्मण शिरोमणि’ विकास दुबे ने ऐसा कुछ नहीं किया है जो किसी दूसरी जाति के बाहुबली नहीं करते रहे हैं. टिप्पणियां की जाने लगीं कि कई जातियों के बाहुबलियों ने पुलिस का खून बहाया है इसलिए अगर एक ब्राह्मण बाहुबली ने बहा दिया जो इतनी हायतौबा क्यों मच रही है. लेकिन समस्या यह थी कि चौबेपुर के बिकरू गांव में हुई ‘उल्टी मुठभेड़’ ने उप्र पुलिस की साख पर पूरी तरह से बट्टा लगा दिया था. पुलिस और एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) ने कमर कर ली थी कि विकास दुबे को किसी भी तरह से छोड़ना नहीं है. भाजपा और उसकी ब्राह्मण लॉबी की यही सबसे बड़ी दिक्कत साबित हुई.

उप्र पुलिस की एनकाउंटर करने की जिद के कारण प्रदेश के भीतर विकास दुबे का ‘समर्पण’ और गिरफ्तारी नामुमकिन थी. ऐसा लगता है कि इसीलिए पहले हरियाणा (जहां भाजपा की सरकार है) पुलिस की मदद से विकास दुबे की गिरफ्तारी करने की कोशिश की गई. इसीलिए विकास दुबे पहले फरीदाबाद में दिखा था. लेकिन किसी वजह से ऐसा न हो पाने की सूरत में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के तहत उज्जैन की पुलिस से यह काम करवाया गया. गिरफ्तारी का नाटक हो गया. भाजपा अपनी इस कुशलता पर अपनी पीठ ठोंक रही थी. लेकिन जानकार लोगों को पक्का यकीन था कि उप्र पुलिस विकास दुबे को किसी कीमत पर छोडेÞगी नहीं. ऐसा ही हुआ. ट्रांजिट रिमांड के बिना उप्र पुलिस विकास दुबे को उज्जैन से ले कर चली और कानपुर से कुछ पहले उसकी ‘जीप पलट गई’, और वहीं एनकाउंटर हो गया.

उप्र की मौजूदा भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही एनकाउंटरों के जरिये कानून और व्यवस्था सुधारने की नीति पर अमल शुरू किया था. ठीक ऐसी ही कोशिश कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह के मुख्यमंत्रित्व वाली कांग्रेस सरकार ने की थी. तब उसके खिलाफ संयुक्त विपक्ष ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को चिट्ठी लिख कर पिछड़े वर्ग के निर्दोष युवकों की फर्जी मुठभेड़ों में हत्या के खिलाफ विरोध व्यक्त किया था. इतिहास में दर्ज है कि एक तरफ सरकार एनकाउंटरों में व्यस्त थी, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री वी.पी. सिंह के न्यायाधीश भाई की हत्या एक बड़े डकैत ने कर दी थी.

इससे पैदा हुई ग्लानि के कारण वी.पी. सिंह ने इस्तीफा दे दिया था. मौजूदा सरकार भी एनकाउंटरों के दम पर कानून-व्यवस्था की समस्या हल नहीं कर पाई है. कानुपर जनपद के सबसे बड़े दस अपराधियों की सूची में उस विकास दुबे का नाम नहीं था, जिसके बंदूकचियों ने पंद्रह मिनट के भीतर-भीतर आठ पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया. यह इस बात का सबूत है कि एनकाउंटर करके कानून का शासन स्थापित नहीं किया जा सकता. वी.पी. सिंह सरकार के हश्र से योगी सरकार को सबक लेना चाहिए. विकास दुबे प्रकरण ने उसकी साख पर ऐसा कलंक लगाया है जिसका धुलना मुश्किल है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog over vikas dubey encounter: caste grouping and Bahubali encounter

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