विजय दर्डा का ब्लॉगः भारत की हार का दर्द ऑस्ट्रिया के इस गांव में भी!
By विजय दर्डा | Published: July 15, 2019 04:43 AM2019-07-15T04:43:12+5:302019-07-15T04:43:12+5:30
जिस दिन भारत और न्यूजीलैंड वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में एक दूसरे के सामने थे पूरी दुनिया के हिंदुस्तानियों की तरह मेरी भी नजर इस महत्वपूर्ण मैच पर थी.
इस समय मैं ऑस्ट्रिया के जिस गांव में हूं वहां की आबादी महज 1900 है. मध्य यूरोप के इस खूबसूरत देश की जनसंख्या वैसे भी बहुत कम है. यही कोई 88 लाख की आबादी होगी. खैर, जिस दिन भारत और न्यूजीलैंड वर्ल्डकप के सेमीफाइनल में एक दूसरे के सामने थे पूरी दुनिया के हिंदुस्तानियों की तरह मेरी भी नजर इस महत्वपूर्ण मैच पर थी. भारत की पराजय ने जाहिर है मुङो भी दुखी कर दिया था क्योंकि इस हार की कोई आशंका थी ही नहीं.
अगले दिन इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को हराया और फाइनल में पहुंच गया. इस मैच के थोड़ी ही देर बाद मेरी मुलाकात इस गांव में एक महिला से हुई. मिलते ही उन्होंने कहा- ‘सॉरी मिस्टर दर्डा, इंडिया लॉस्ट!’ मैं थोड़ा सा आश्चर्यचकित रह गया कि क्या ऑस्ट्रिया के लोग भारतीय खेल को फॉलो करते हैं? मैंने उनसे पूछ लिया- ‘क्या आप क्रिकेट को फॉलो करती हैं?’ उन्होंने कहा कि मैं ब्रिटिश हूं और मुङो बुरा लगा कि हिंदुस्तान वर्ल्डकप क्रिकेट के सेमीफाइनल में हार गया. मैंने उनसे कहा कि आपको क्यों बुरा लगा? आपका देश तो 27 साल बाद फाइनल में पहुंचा है. आपको तो खुश होना चाहिए! उन्होंने कहा कि आपके साथ खेलने का मजा ही कुछ और होता! (जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे तब फाइनल का रिजल्ट भी आ चुका होगा).
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानियों का स्पोर्ट्समैनशिप गजब का है. दुनिया के किसी और देश की टीम में ऐसा नहीं है. आपका धोनी कितना क्यूट है, कितना शानदार है, कितना प्रभावी है..और वह हंसने लगीं. हिंदुस्तान की तारीफ सुनकर मुङो वाकई अच्छा लगा. मैंने पूछा कि क्या आप हमारे देश की राजनीति में भी रुचि लेती हैं? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बिल्कुल नहीं! न अपने देश की राजनीति में रुचि रखती हूं और न आपके देश की राजनीति में!
मुङो लगा कि खेल सिर्फ खेल नहीं है. जब भारत और पाकिस्तान का मैच चल रहा था तो पूरी दुनिया के हिंदुस्तानी सांस रोककर मैच देख रहे थे. इस तरह के मैचों में क्रिकेट हमारी रूह बन जाता है. तो जब ऐसा लगाव हो और भारतीय टीम अच्छा खेल रही हो तब किसी को आशंका नहीं थी कि न्यूजीलैंड से भारत हार जाएगा. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हुआ. यदि हमारे चयनकर्ताओं ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए एक मजबूत स्तंभ ढूंढ लिया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता. दुनिया की करीब-करीब सभी टीमों में उनके शानदार खिलाड़ी चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करते हैं लेकिन हमारे यहां इस नंबर पर केवल प्रयोग चलता रहा. इसीलिए जब शुरुआती चार विकेट सस्ते में गिर गए तो पराजय पक्की हो गई! इस पर कोई खिलाड़ी कमेंट करे तो यह स्वाभाविक है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, लता मंगेशकर कमेंट करें तो जाहिर सी बात है कि यह केवल एक मैच नहीं था.
मुङो लगता है कि जितना एक्साइटमेंट हमारे देश में एनडीए को चुनाव में 350 सीटें मिलने पर नहीं था, उससे ज्यादा एक्साइटमेंट क्रिकेट के सेमीफाइनल मैच को लेकर था. इस मैच में हार ने जाहिर है सबका दिल तोड़ा है. बहरहाल, खेल भावना जिंदगी के हर क्षेत्र में जरूरी है. देश बनाना हो, समाज बनाना हो, घर चलाना हो, सभी जगह खेल भावना की जरूरत होती है. खेल भावना के बगैर किसी भी क्षेत्र में तरक्की संभव नहीं है. मुङो याद आता है कि जिस दिन इंग्लैंड और भारत का मैच था उस दिन पाकिस्तान भी दुआ कर रहा था कि भारत जीते. यह खेल भावना का ही तो कमाल है. मुङो लगता है कि खेल भावना ही एकमात्र ऐसी चीज है जो सारे मुल्कों को एक कर सकती है. न्यूजीलैंड से जब भारत हारा तब मुङो एक पाकिस्तानी मित्र का फोन आया और उन्होंने भी भारत की हार पर दुख जताया.
अब थोड़ी सी बात इस छोटे से गांव की जहां सुविधाएं इतनी हैं कि आप आश्चर्यचकित रह जाएं. यहां खेल के मैदान हैं, दौड़ने के लिए ट्रैक है, शानदार जिम है, जिम्नास्टिक के साथ ही हाइकिंग की सुविधा है. सबकुछ बड़े सलीके से बना है और इतना गुणवत्तापूर्ण है कि इसमें प्रोफेशनल खिलाड़ी भी खेल सकें. शानदार लेक है. पानी इतना साफ कि आप अंदर तक झांक सकें. अत्यंत ठंडे पानी में लोग तैराकी कर रहे हैं. सीधे शब्दों में कहूं तो सब खेल रहे हैं. गांव में बेहतरीन म्यूजिक सेंटर है. इतना बड़ा कि 50 लोग एक साथ गा-बजा सकते हैं. गांव में शानदार स्कूल और बेहतरीन अस्पताल है, अच्छे बगीचे हैं और अच्छा सा चर्च है. पूरा गांव जैसे फूलों से सजा है. पार्किग की सुविधा तो ऐसी है कि आप देखते रह जाएं. सबकुछ करीने से है. मैंने पूछा कि यह सब कौन बनाता है? लोगों ने बताया कि गांव का प्रबंधन है, लोकल गवर्नमेंट है, वे इसे बनाते और मेंटेन करते हैं. मैं लगातार सोच रहा हूं कि हमारे गांव क्या कभी इस शानदार स्थिति में पहुंच पाएंगे?
यहां के लोगों के व्यवहार ने मुङो बहुत प्रभावित किया. मैंने एक व्यक्ति से यह सवाल किया कि आप लोगों का बर्ताव इतना अच्छा कैसे है? उन्होंने बड़ी सहजता से कहा कि यदि हमारा व्यवहार अच्छा नहीं होता तो आप हमारे यहां कैसे आते? जिससे मैंने यह सवाल पूछा था वह मूलत: जर्मन भाषी था लेकिन उसने अंग्रेजी इसीलिए सीखी है ताकि बाहर से आने वाले लोगों से सहजता से बातचीत कर सके.
मुङो एक युवा मिला जो बॉक्सिंग करने वालों के हाथ में पट्टी बांधता है. यह पट्टी बांधने के बाद ही बॉक्सिंग ग्लव्स पहने जाते हैं. वह विश्व स्तर के खिलाड़ियों को पट्टी भी बांधता है और उनका उपचार भी करता है. उसने मुझसे कहा- ‘मैं हिंदुस्तान गया था. हिंदुस्तान गरीब है लेकिन बहुत कल्चर्ड है. मैं बनारस, ऋषिकेश, आगरा जैसी जगहों पर गया. आपके पास शानदार संस्कृति है.’ मैं उसकी बातें सुनकर प्रफुल्लित हुआ. और हां, एक और जानकारी देना चाहूंगा कि यहां कोई भी बोतलबंद पानी नहीं पीता. मुङो लोगों ने कहा कि यहां पानी सीधे आल्प्स पर्वत श्रृंखला से आ रहा है. बिल्कुल शुद्ध और खनिज से भरपूर.