जिसे कभी लायक नहीं माना, वह आज नायक है?, इंसानी कद या रंग मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी नहीं

By रवींद्र चोपड़े | Updated: June 16, 2025 08:30 IST2025-06-16T08:28:42+5:302025-06-16T08:30:29+5:30

South Africa vs Australia, Final WTC 2025: तेम्बा बावुमा हैं, जिनकी अगुवाई में दक्षिण अफ्रीका ने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का खिताब जीतकर आईसीसी ट्रॉफी का 27 साल का सूखा खत्म किया.

South Africa vs Australia, Final WTC 2025  one who never considered worthy hero today blog ravindra chopde | जिसे कभी लायक नहीं माना, वह आज नायक है?, इंसानी कद या रंग मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी नहीं

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Highlightsकप्तान तो क्या टीम में रहने के ही लायक नहीं माना जाता था, लेकिन आज वह नायक हैं.ग्रीम स्मिथ, एबी डिविलियर्स, मॉर्नी मॉर्कल जैसे कई ऊंचे कद के गोरेचिट्टे खिलाड़ी हुए.दक्षिण अफ्रीकी टीम ने 1991 में क्लाइव राइस की कमान में भारत का दौरा किया.

South Africa vs Australia, Final WTC 2025: किसी ने  ‘बौना कप्तान’ कहकर उनका मजाक बनाया. किसी ने टीम में उनकी मौजूदगी को दक्षिण अफ्रीका  की ‘आरक्षण नीति’ का उत्पाद बताया.  कभी 63 इंच के कद की वजह से उन्हें जलील किया गया तो कभी उनके अश्वेत रंग को भी निशाने पर लिया गया. उन्हें कप्तान तो क्या टीम में रहने के ही लायक नहीं माना जाता था, लेकिन आज वह नायक हैं. वह तेम्बा बावुमा हैं, जिनकी अगुवाई में दक्षिण अफ्रीका ने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का खिताब जीतकर आईसीसी ट्रॉफी का 27 साल का सूखा खत्म किया.

दक्षिण अफ्रीका की जुलु भाषा में  ‘तेम्बा’ का मतलब है ‘आशा’.  तेम्बा ने  प्रमाणित कर दिया कि ऊंचा कद, गोरा रंग या आरक्षण कामयाबियों की पगडंडी नहीं हो सकती. बावुमा ने जो ऐतिहासिक कामयाबी अपनी टीम को दिलाई वह इंगित करती है कि इंसानी कद या रंग मंजिल तक पहुंचने की सीढ़ी नहीं है.

साहस, धीरज, कठोर मेहनत और विषमताओं के बीच खुद को शांत रखकर पुख्ता रणनीति बनाने से सफलता की राह निश्चित हो सकती है. दक्षिण अफ्रीका में क्रिकेट का इतिहास 200 साल से भी ज्यादा पुराना है लेकिन सन्‌ 1948 में वहां रंगभेद की शुरुआत हुई, जब नेशनल पार्टी ने नस्लीय अलगाव को कानून बनाया.

इस वजह से 1970 में, आईसीसी ने दक्षिण अफ्रीका को  निलंबित कर दिया. निलंबन 21 साल तक जारी रहा. भारत ने दक्षिण अफ्रीका की वापसी के लिए पुरजोर प्रयास किए जो कामयाब रहे. भारत के प्रति आभार व्यक्त करते हुए दक्षिण अफ्रीकी टीम ने 1991 में क्लाइव राइस की कमान में भारत का दौरा किया.

पिछले 33-34 वर्षों में दक्षिण अफ्रीकी टीम में केप्लर वेसल्स, जैक कैलिस, गैरी कर्स्टन, एलन डोनाल्ड, लांस क्लूसनर, शॉन पोलाक, ग्रीम स्मिथ, एबी डिविलियर्स, मॉर्नी मॉर्कल जैसे कई ऊंचे कद के गोरेचिट्टे खिलाड़ी हुए, लेकिन इनमें से कोई भी खिताब नहीं दिला सका. इसके विपरीत टीम पर आईसीसी के हर बड़े टूर्नामेंट के सेमी फाइनल-फाइनल में हारने की बदौलत ‘चोकर्स’ का ठप्पा लग गया.

कोई भी तुर्रम खिलाड़ी इस धब्बे को धो नहीं सका.  जो काम यह श्वेत और कद्दावर खिलाड़ी नहीं कर सके उसे पांच फिट तीन इंच के अश्वेत खिलाड़ी ने कर दिखाया. दक्षिण अफ्रीकी बोर्ड ने  वर्ष 2016 में राष्ट्रीय टीम में कम से कम तीन अश्वेत खिलाड़ियों को स्थान देने का कानून बहाल किया. इसे अश्वेतों के लिए आरक्षण कहा जा रहा है.

2016 से पहले ही यह कानून था लेकिन फिर इसका अमल रोक दिया गया था. अब इस कानून के तहत बावुमा समेत कागिसो रबाडा और लुंगी एंगिडी नामक तीन अश्वेत खिलाड़ी दक्षिण अफ्रीकी टीम में हैं और दिलचस्प बात यह है कि तीनों ने खिताब दिलाने में बहुत बड़ा किरदार निभाया है.  सो, बावुमा ने वह कर दिखाया जो किसी भी गोरे और लंबे खिलाड़ी के लिए मुमकिन नहीं हुआ.

उम्मीद करते हैं कि दक्षिण अफ्रीका की यह ऐतिहासिक सफलता उन लोगों को जगाएगी जो बाउमा की रंग और कद तथा टीम में उनकी एक विशेष नीति की बदौलत मौजूदगी का मखौल उड़ाते थे.  रंग, कद, जाति, धर्म, नस्ल के दुष्चक्र में फंसे हुए लोगों को जरूर इस बात पर सोचने की जरूरत है कि सफलता के मानदंड क्या हो सकते हैं.

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