IND vs PAK: दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम रविवार की शाम नाटकीय घटनाक्रमों का गवाह बना. पाकिस्तान को एशिया कप टी-20 मुकाबले में करारी शिकस्त देने के बाद भारतीय टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने प्रतिद्वंद्वी टीम के कतारबद्ध खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया. टॉस के दौरान भी उन्होंने कप्तान सलमान आगा से हाथ नहीं मिलाया था. मुकाबला चाहे बहुराष्ट्रीय प्रतियोगिता का हिस्सा हो या फिर द्विपक्षीय सीरीज का, टॉस के समय कप्तानों और परिणाम के बाद दोनों टीमों के खिलाड़ियों का शेकहैंड एक तरह से ‘प्रोटोकॉल’ है और सूर्यकुमार यादव ने इसका पालन नहीं किया.
भारत की पाकिस्तान पर बड़ी जीत से गद्गद् भारतीय समर्थकों के लिए उस समय खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा जब सूर्यकुमार ने टीम की यह उपलब्धि पहलगाम हमले के शहीदों और सशस्त्र बलों के शौर्य को समर्पित कर दी. हाथ न मिलाने का फैसला सूर्यकुमार यादव तथा उनकी टीम ने तत्काल नहीं लिया था.
पाकिस्तान के खिलाफ खेलने को लेकर देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए यह फैसला लिया गया था. अब इस मामले पर खेल जगत में तीव्र प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति के साथ सियासत भी गर्मा चुकी है. पर इतना तय है कि इसके दूरगामी असर नजर आएंगे. हो सकता है इससे दोनों मुल्कों के बीच क्रिकेट के मैदान पर प्रतिद्वंद्विता पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा कड़ी हो जाए.
एशिया कप में 21 तारीख को फिर इन्हीं दो टीमों के बीच मुकाबला संभावित है. पाकिस्तान की टीम जब से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगी, उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी अगर कोई है तो वह भारत ही है. इन दोनों देशों के दरम्यान क्रिकेट में इतनी तीव्र प्रतिद्वंद्विता हमेशा से ही क्यों रही है यह अब पड़ताल का विषय नहीं रहा.
दरअसल कश्मीर को भारत से अलग करने के हर प्रयास में पाकिस्तान हर बार मुंह की खाता रहा है. संयोग से नब्बे के दशक के शुरुआती काल तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम भारत के मुकाबले बीस थी. वह भारत को लगातार हरा रही थी. रणक्षेत्र में पिटता पाकिस्तान ‘रनक्षेत्र’ में भारत को हराकर सुकून महसूस करता रहा.
उसे क्रिकेट के मैदान में भारत के खिलाफ जीत, मैदान-ए-जंग में हार का बदला चुकाने का तसल्लीभरा एहसास दिलाती थी. उसके खिलाड़ियों में भारत को येन-केन प्रकारेण हराने की भावना दिन-ब-दिन तीव्र होने लगी. दूसरी ओर सरहद के इस पार भी बंटवारे का दर्द लोगों में था.
भारतीयों को दुनिया के किसी भी देश के खिलाफ हार मंजूर थी लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ हर हाल में जीतने का दबाव खिलाड़ियों पर बढ़ने लगा. हश्र यह हुआ कि दोनों देशों के बीच आपसी टकराव, संघर्ष तीव्र होने लगा और भारत-पाकिस्तान के बीच मैदान पर प्रतिद्वंद्विता क्रिकेट की दुनिया में सबसे बड़ी हो गई.
इस बीच पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आए बगैर भारत में दहशतगर्दी को हवा देता रहा. पहलगाम की वारदात को अंजाम देकर पाकिस्तान ने फिर साबित कर दिया कि वह टेढ़ी पूंछ है. उसकी इसी हरकत का असर सूर्यकुमार यादव तथा उनकी टीम की दुबई में प्रतिक्रिया है.
दुनिया इसे जो भी समझे या माने लेकिन आधी सदी से भी अधिक समय तक दहशतगर्दी का दंश झेल चुके एक मुल्क की पीड़ा औरों को क्या पता? इस समय पाकिस्तानी क्रिकेट टीम रसातल पर है. असल में पूरा पाकिस्तान ही रसातल में है. लगातार सियासी अस्थिरता और हुक्मरानों में दूरदर्शिता के अभाव का यह परिणाम है.
पाकिस्तान में पिछले 75 सालों में हुकूमत लंबे समय तक फौज के हाथों का खिलौना रही है. इसके अलावा पाकिस्तान ने अपनी सारी शक्ति भारत से कश्मीर को अलग कराने में और इसके लिए आतंकी हरकतों को खाद-पानी देने में जाया कर दी. आज कंगाल पाकिस्तान इसी वजह से हम देख रहे हैं. दुर्भाग्य यह है कि वह अपनी इस हालत से भी सबक नहीं ले रहा है!