भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: ब्याज दर में कटौती निष्प्रभावी साबित होगी
By भरत झुनझुनवाला | Published: August 11, 2019 09:03 AM2019-08-11T09:03:07+5:302019-08-11T09:03:07+5:30
रि जर्व बैंक ने हाल ही में ब्याज दर में एक बार फिर कटौती की है. सोच है कि ब्याज दर न्यून होने से उपभोक्ता एवं निवेशक दोनों अधिक मात्ना में ऋण लेंगे
रि जर्व बैंक ने हाल ही में ब्याज दर में एक बार फिर कटौती की है. सोच है कि ब्याज दर न्यून होने से उपभोक्ता एवं निवेशक दोनों अधिक मात्ना में ऋण लेंगे. उपभोक्ता ऋण लेकर बाइक खरीदेगा एवं निवेशक ऋण लेकर बाइक बनाने की फैक्ट्री लगाएगा. उपभोक्ता द्वारा बाजार से बाइक खरीदी जाएगी और उस बाइक को निवेशक द्वारा सप्लाई किया जाएगा. इस सुचक्र के स्थापित होने से देश में बाइक का उत्पादन बढ़ेगा और इसी प्रकार अन्य तमाम वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा. देश की आय अथवा सकल घरेलू उत्पाद अथवा जीडीपी में वृद्धि होगी. लेकिन विचारणीय है कि बीते समय में रिजर्व बैंक द्वारा कई बार इसी प्रकार की कटौती की जा चुकी है फिर भी अर्थव्यवस्था दबती जा रही है. अत: अर्थव्यवस्था के दबने का मूल कारण समझने की जरूरत है.
अर्थव्यवस्था के संकट में आने का पहला कारण सरकारी खपत में पर्याप्त कटौती का न होना है. सरकार द्वारा दो प्रकार के खर्च किए जाते हैं. चालू खर्च एवं पूंजी खर्च. इन दोनों का योग वित्तीय खर्च होता है. दोनों प्रकार के खर्च के योग यानी वित्तीय खर्च को पोषित करने के लिए सरकार बाजार से जो ऋण लेती है उसे वित्तीय घाटा कहा जाता है. वित्तीय घाटा यह नहीं बताता कि ली गई रकम का उपयोग सरकार की खपत अथवा चालू खर्चो को पोषित करने के लिए किया गया है या उस रकम का उपयोग सरकार के पूंजी खर्चो के लिए किया गया है. वर्ष 1990-91 में सरकार का वित्तीय घाटा 7.6 प्रतिशत था जो कि 2019-20 में घटकर 3.5 प्रतिशत हो गया है. इसमें 4.1 प्रतिशत की कटौती हुई है. अब देखना यह है कि इस कुल कटौती में चालू खर्चो और पूंजी खर्चो में से कौन से खर्चो की कटौती की गई है.
वर्ष 1990-91 में सरकार का पूंजी घाटा 4.4 प्रतिशत था और चालू घाटा 3.2 प्रतिशत था. इस प्रकार कुल वित्तीय घाटा 7.6 प्रतिशत था. वर्ष 2019-20 में सरकार का वित्तीय घाटा 3.5 प्रतिशत था, पूंजी घाटा 0.9 प्रतिशत एवं चालू घाटा 2.6 प्रतिशत था. इससे पता लगता है कि इन तीस वर्षो में सरकार का पूंजी घाटा 4.4 प्रतिशत से घटकर 0.9 प्रतिशत हो गया. इसमें 3.5 प्रतिशत की भारी कटौती हुई. तुलना में सरकार के चालू खर्च 3.2 प्रतिशत से घटकर 2.6 प्रतिशत हुए. इनमें 0.6 प्रतिशत की मामूली कटौती हुई. इससे स्पष्ट होता है कि सरकार ने वित्तीय घाटे को नियंत्नण में करने के लिए सरकारी खपत में कटौती न करके सरकारी निवेश में कटौती की है. सरकारी निवेश यानी राजमार्गो, नहरों, बिजली के ग्रिडों इत्यादि के निर्माण में सरकार ने खर्च कम किए हैं जिसके कारण अर्थव्यवस्था दबी हुई है.
सरकार के ये पूंजी खर्च दो तरह से अर्थव्यवस्था को गति देते हैं. पहला, इन खर्चो से सीधे बाजार में मांग बनती है जैसे बिजली की ग्रिड बनाने के लिए स्टील के खंभे लगाने पड़ते हैं और स्टील की खपत होती है. दूसरा, सरकार के पूंजी खर्च अर्थव्यवस्था में मोबिल आयल का भी काम करते हैं. जैसे यदि बिजली की ग्रिड सही हो गई तो उद्योगों को बिजली की क्वालिटी अच्छी मिलती है और उनकी उत्पादन लागत कम आती है. तुलना में चालू खर्चो में सरकारी कर्मियों को वेतन अधिक दिए जाते हैं. इन वेतन का एक हिस्सा विदेश चला जाता है जैसे सोना खरीदने में या बच्चों को विदेशी शिक्षा दिलाने में.
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि इस समय सरकारी पूंजी खर्च में कटौती के कारण अर्थव्यवस्था में मांग कम है और मोबिल आयल भी कम काम कर रहा है. साथ-साथ चालू खर्च में उसकी तुलना में कटौती न होने के कारण देश की पूंजी के एक हिस्से का विदेश में जाना जारी है. यह एक प्रमुख कारण है कि अर्थव्यवस्था दबी हुई है.
अर्थव्यवस्था के दबे रहने का दूसरा कारण हमारे द्वारा मुक्त व्यापार को अपनाना है. अपने देश में उत्पादन लागत ज्यादा आती है जिसके कारण चीन में बना हुआ माल अपने देश में भारी मात्ना में प्रवेश कर रहा है. चीन और भारत दोनों में भ्रष्टाचार व्याप्त हैं लेकिन भ्रष्टाचार के चरित्न में अंतर है. जानकार बताते हैं कि चीन में यदि आप किसी प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कराने गए तो भ्रष्टाचार के माध्यम से आप रजिस्ट्री के कुल खर्च को कम करा सकते हैं. भ्रष्टाचार एक प्रकार से उद्यमी को लाभ पहुंचाता है. उसकी उत्पादन लागत को कम करता है. भारत के भ्रष्टाचार का चरित्न बिलकुल विपरीत है. यदि आप रजिस्ट्री कराने जाते हैं तो आपको भ्रष्टाचार का अतरिक्त खर्च देना पड़ता है जिससे आपकी लागत बढ़ती है.
अर्थव्यवस्था के दबे रहने का तीसरा कारण हमारा आधुनिकता के प्रति मोह है. सरकार चाहती है कि देश को विकसित देशों के समतुल्य बनाए, लेकिन सरकार इस बात को नहीं समझ रही है कि अपने देश में बढ़ती जनसंख्या और भूमि की अनुपलब्धता के कारण हम विकसित देशों के मॉडल को यहां लागू नहीं कर पाएंगे. जैसे सरकार ने वाराणसी के घाटों पर नाविकों के लाइसेंस कैंसिल कर दिए जिससे कि बड़ी नावों का पर्याप्त व्यापार बढ़े. लेकिन बड़ी नावों के चलने से रोजगार कम होगा और रोजगार कम होने से अर्थव्यवस्था में मांग कम होगी. नाविक बेरोजगार होंगे. उनके लिए ब्याज दर में कटौती निष्प्रभावी होगी.
ब्याज दर में कटौती उस वक्त लाभप्रद होती है जब अर्थव्यवस्था में प्राण हो, मांग हो, तो उस मांग में थोड़ी वृद्धि ब्याज दर में कटौती करके हासिल की जा सकती है. जैसे यदि व्यक्ति स्वस्थ हो तो सस्ता घी उसके लिए लाभप्रद हो सकता है, लेकिन व्यक्ति अस्वस्थ हो तो सस्ते घी की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती.