सतीश सिंह का ब्लॉग: एनबीएफसी में सुधार लाने की चुनौती

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 6, 2019 03:27 PM2019-06-06T15:27:43+5:302019-06-06T15:27:43+5:30

एनबीएफसी पिछले वर्ष सितंबर में आईएलएंडएफएस संकट के सामने आने के बाद से लगातार संकट में हैं. उनकी सबसे बड़ी समस्या तरलता से जुड़ी हुई है. पूंजी की कमी की वजह से एनबीएफसी की उधारी लागत में वृद्धि हुई है.

Satish Singh's Blog: Challenge to Improve NBFC | सतीश सिंह का ब्लॉग: एनबीएफसी में सुधार लाने की चुनौती

सतीश सिंह का ब्लॉग: एनबीएफसी में सुधार लाने की चुनौती

माना जा रहा है कि तरलता जोखिम प्रबंधन के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के प्रस्तावित दिशा-निर्देशों से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लाभ में कमी आएगी, जो 1 अप्रैल 2020 से प्रभावी होने वाले हैं. प्रस्तावित दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने के बाद एनबीएफसी की देनदारियों की कड़ाई से निगरानी की जाएगी. इतना ही नहीं, इससे जुड़े सभी हितधारकों को प्रस्तावित दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा.

एनबीएफसी पिछले वर्ष सितंबर में आईएलएंडएफएस संकट के सामने आने के बाद से लगातार संकट में हैं. उनकी सबसे बड़ी समस्या तरलता से जुड़ी हुई है. पूंजी की कमी की वजह से एनबीएफसी की उधारी लागत में वृद्धि हुई है. जमा और उधारी के बीच स्प्रेड कम होने से एनबीएफसी का मुनाफा भी कम हुआ है. अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए एनबीएफसी लघु अवधि के लिए उधार दे रही हैं, क्योंकि कम अवधि की उधारी लागत कम है, जबकि लंबी अवधि की उधारी लागत ज्यादा.  

रिजर्व बैंक के प्रस्तावित दिशा-निर्देशों के मुताबिक एनबीएफसी को परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन बढ़िया तरीके से करना होगा. इस संदर्भ में छोटी अवधियों के लिए जैसे, 8 से 14 दिनों या 15 से 30 दिनों के लिए उधार देना लाभकारी हो सकता है. संचयी परिसंपत्ति-देयता के अंतर को भी 8 से 14 दिनों के लिए 10 प्रतिशत और 15 से 30 दिनों के लिए 20 प्रतिशत करना होगा. आमतौर पर जब नकद प्रवाह, नकद आमद से अधिक होता है, तब देनदारी और लेनदारी के बीच अंतर आ जाता है.  

रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी को तरलता कवरेज अनुपात (एलसीआर) का निर्वाह रखने के लिए भी निर्देशित किया है. एलसीआर से पता चलता है कि बैंक के पास उच्च-गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति हैं या नहीं. पर्याप्त संपत्ति होने पर एनबीएफसी अपने कारोबार का संचालन कम से कम 30 दिनों तक करने में समर्थ होंगे. कहा जा सकता है कि एनबीएफसी के मौजूदा कारोबारी मॉडल की वजह से उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. 

दरअसल, एनबीएफसी उधारी देने के लिए खुद उधार लेते हैं, लेकिन  आईएलएंडएफएस के डूबने के बाद एनबीएफसी में बैंक या दूसरे संस्थान निवेश करने से हिचक रहे हैं, जिससे उनके पास पूंजी की कमी हो गई है. ऐसे में एनबीएफसी को वर्तमान संकट के भंवर से निकालने के लिए रिजर्व बैंक ने दिशा-निर्देश जारी किया है, साथ ही ज्यादा कारोबार करने वाले एनबीएफसी को एक जोखिम अधिकारी नियुक्त करने के लिए निर्देशित किया गया है, ताकि जोखिम की स्थिति में एनबीएफसी खुद संकट से बाहर निकल सकें. उम्मीद है कि रिजर्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के संदर्भ में जारी किए गए ताजा दिशा-निर्देश प्रभावी साबित होंगे. 

Web Title: Satish Singh's Blog: Challenge to Improve NBFC

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