रुपये को और अधिक टूटने से बचाना जरूरी, मूल्य में गिरावट के लिए ये हैं जिम्मेदार
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 7, 2018 10:05 PM2018-09-07T22:05:50+5:302018-09-07T22:14:19+5:30
आयातित सामान खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और मोबाइल फोन के दाम भी बढ़ते हुए दिखाई दे सकते हैं। इस समय डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत घटने के कुछ कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका व चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण रुपए की कीमत लगातार घटती गई है।
जयंतीलाल भंडारी
इन दिनों डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत अब तक के सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गई है। 5 सितंबर को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 72 के स्तर तक फिसल गया तथा निकट भविष्य में रुपए की कीमत में और गिरावट आने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। रुपए की कीमत में यह तेज गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण बनते हुई दिखाई दे रही है। ऐसे में देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि अब डॉलर के मुकाबले रुपए को और अधिक टूटने से बचाना जरूरी है।
वस्तुत: रुपए के मूल्य में गिरावट के लिए प्रमुखतया वैश्विक आर्थिक घटक जिम्मेदार हैं। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता हुआ व्यापार युद्ध और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें सबसे प्रमुख कारण हैं। रुपए में लगातार गिरावट से 2018-19 में देश का कच्चे तेल का आयात बिल 26 अरब डॉलर बढ़कर 114 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने से अधिकांश वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
आयातित सामान खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और मोबाइल फोन के दाम भी बढ़ते हुए दिखाई दे सकते हैं। इस समय डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत घटने के कुछ कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका व चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण रुपए की कीमत लगातार घटती गई है। दुनिया के उभरते हुए देशों की मुद्राओं की कीमत भी डॉलर के मुकाबले एकदम तेजी से घट गई है। कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए आयात बिल और विभिन्न वस्तुओं के तेजी से बढ़ते हुए आयात के कारण देश में डॉलर की मांग बढ़ गई है।
चूंकि डॉलर में निवेश दुनिया में सबसे सुरक्षित निवेश माना जा रहा है। अतएव दुनिया के निवेशक बड़े पैमाने पर डॉलर की खरीदी करते हुए दिखाई दे रहे हैं। डॉलर की मजबूती के कारण देश का सराफा बाजार भी मंदी की गिरफ्त में है। कमजोर रुपए से सोने की चमक बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन वैश्विक बाजार में सोने की कीमत कम होने से घरेलू बाजार में भी सोने की चमक फीकी पड़ गई है।
निश्चित रूप से डॉलर की मजबूती के बीच निर्यात बढ़ने की संभावनाओं को साकार किए जाने की रणनीति बनाई जानी होगी। अर्थ विशेषज्ञों का यह कहना है कि एक डॉलर की तुलना में 71 रुपए तक का स्तर सस्ते रुपए के फायदे के मद्देनजर उपयुक्त रहा है। लेकिन अब रुपए को और अधिक टूटने से बचाने के लिए उपयुक्त रणनीति के साथ ही निर्यात बढ़ाने की नई पहल जरूरी है। जरूरी है कि निर्यातकों को आसानी से कर रिफंड मिल सके तथा निर्यात कारोबार संबंधी लालफीताशाही समाप्त की जा सके। साथ ही नए निर्यात संबंधी समर्थक कारोबारी सौदों के प्रति स्पष्ट प्रतिबद्धता जताई जानी चाहिए।
इस समय दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के बीच इन दोनों देशों में भारत से निर्यात बढ़ने की संभावनाओं के जो मौके हैं उनको भी साकार किया जाना होगा। रुपए की ऐतिहासिक गिरावट को एक अवसर की तरह लिया जाना चाहिए।