अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रिजर्व बैंक के अधिशेष पर निरर्थक विवाद

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 6, 2019 02:50 PM2019-09-06T14:50:05+5:302019-09-06T14:58:01+5:30

दुनियाभर में केंद्रीय बैंकों के मुनाफे को उनकी सरकारों को हस्तांतरित कर दिया जाता है. यानी कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय रिजर्व बैंक का अपने लाभों और संचित लाभों पर कोई अधिकार नहीं है.

RBI surplus: Unnecessary dispute over Reserve Bank's surplus | अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रिजर्व बैंक के अधिशेष पर निरर्थक विवाद

अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रिजर्व बैंक के अधिशेष पर निरर्थक विवाद

भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल द्वारा गठित बिमल जालान समिति द्वारा दिए गए सुझावों के अंतर्गत बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपए भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिए हैं. इसके बाद रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के विवादास्पद बयानों के बाद रिजर्व बैंक की आरक्षित निधि को सरकारी खजाने को हस्तांतरित करने के संबंध में चल रहे विवाद पर, कम से कम रिजर्व बैंक की तरफ से विराम लग गया है. विरल आचार्य ने अक्तूबर 2018 में यह बयान दिया था कि रिजर्व बैंक द्वारा उसकी आरक्षित निधि को सरकार को हस्तांतरित करना अत्यंत खतरनाक होगा.  

इस संदर्भ में एक प्रासंगिक सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के लाभों अथवा संचित लाभों पर आखिर किसका अधिकार है? रिजर्व बैंक की ‘बैलेंस शीट’ यानी तुलन-पत्र बनाने का अधिकार बैंक के निदेशक मंडल के पास है, हालांकि बोर्ड को इसके लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी होगी. कुछ साल पहले रिजर्व बैंक निदेशक मंडल ने आरबीआई एक्ट की धारा-47 के तहत अपनी संपत्ति के मूल्य में उथल-पुथल से निपटने और अपनी अप्रत्याशित जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से एक ‘ऑपरेशनल रिजर्व एवं रिवैल्युएशन एकाउंट’ बनाया. इसके तहत जून 2018 तक रिजर्व बैंक के पास कुल संचित भंडार 9.63 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया, जो उसकी संपत्ति का लगभग 28 प्रतिशत था. दुनिया भर में किसी भी केंद्रीय बैंक के पास आनुपातिक रूप से इतना बड़ा फंड नहीं है. 

यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय बैंक कोई साधारण बैंक नहीं होता. जहां सामान्य बैंकों का साख जोखिम होता है, केंद्रीय बैंक का यह जोखिम नगण्य होता है. इसलिए किसी भी केंद्रीय बैंक के लिए संचित भंडार यानी रिजर्व की आवश्यकता लगभग नगण्य होती है. इसलिए किसी केंद्रीय बैंक के रिजर्व हेतु वाणिज्यिक बैंकों के लिए निर्धारित मानदंड लागू नहीं किए जा सकते. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री ओलिवर ब्लैनचर्ड के अनुसार केंद्रीय बैंकों को ऋणात्मक इक्विटी पूंजी पर भी चलाया जा सकता है. यानी एक तरफ रिजर्व बैंक को रिजर्व की जरूरत नहीं है तो दूसरी तरफ उसने अपने पास रखे गए भंडार के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी भी नहीं ली है और न ही अपनी आवश्यकता के लिए इक्विटी पूंजी के लिए कोई रूपरेखा बनाई है.

दुनियाभर में केंद्रीय बैंकों के मुनाफे को उनकी सरकारों को हस्तांतरित कर दिया जाता है. यानी कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय रिजर्व बैंक का अपने लाभों और संचित लाभों पर कोई अधिकार नहीं है. हालांकि, बिना वैधानिक मंजूरी के रिजर्व बैंक के भंडार बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं, लेकिन इन भंडारों का अचानक केंद्र सरकार को हस्तांतरण कठिनाई उत्पन्न कर सकता है, इसलिए इसकी समय सीमा और हस्तांतरण की प्रक्रिया पर चर्चा जरूरी है. 

जहां तक कानूनी स्थिति का सवाल है, रिजर्व बैंक के मुनाफे पर केंद्र सरकार का ही अधिकार होता है. इसके अलावा रिजर्व बैंक को आरक्षित निधि बनाने हेतु केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं थी. साथ ही साथ रिजर्व बैंक का निदेशक मंडल इन भंडारों के उपयोग हेतु नियम बनाने में भी विफल रहा.जब केंद्र सरकार के लिए रिजर्व बैंक की आरक्षित निधि के हस्तांतरण के संबंध में बहस विवाद के रूप में बदल गई तो रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजी ढांचे यानी इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क (ईसीएफ) की समीक्षा करने हेतु रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में 26 दिसंबर 2018 को छह सदस्यीय समिति का गठन किया गया. 

वित्त मंत्रलय ने यह इच्छा जाहिर की थी कि रिजर्व बैंक इस संबंध में उच्चतम वैश्विक परंपराओं का पालन करे और सरकार को अधिशेष हस्तांतरित किया जाए.  वित्त मंत्रलय का यह विचार था कि रिजर्व बैंक द्वारा अपनी सकल संपत्ति के 28 प्रतिशत के बराबर का अधिशेष रखना, 14 प्रतिशत के वैश्विक मानदंड से काफी ज्यादा था. गौरतलब है कि इस मुद्दे पर पूर्व में 3 समितियां अपनी राय दे चुकी हैं. 1997 में वी. सुब्रमण्यम, 2004 में उषा थोराट और 2013 में वाईएच मालेगांव समितियों ने अपनी राय इस बाबत दी थी. जहां सुब्रमण्यम समिति ने 12 प्रतिशत आकस्मिक रिजर्व बनाने की सिफारिश की थी, थोराट समिति ने इससे अधिक 18 प्रतिशत आकस्मिक निधि का सुझाव दिया था. यहां यह जानना जरूरी है कि रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल ने तब थोराट समिति की सिफारिश को लागू नहीं किया और सुब्रमण्यम समिति की सिफारिशें ही जारी रखीं. 

बिमल जालान समिति ने उल्लेख किया है कि केंद्रीय बैंक के संचालन के दौरान कभी-कभार सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभिन्नता हो सकती है, लेकिन इस संबंध में सरकार और रिजर्व बैंक के उद्देश्यों में हमेशा सामंजस्य बनाए रखने की जरूरत होगी. हालांकि समिति ने सरकार को आरबीआई के अधिशेष के हस्तांतरण की राशि का उल्लेख तो नहीं किया है, लेकिन इसे चरणबद्घ तरीके से हस्तांतरण का सुझाव जरूर दिया है, जो पहले से ही एक अभ्यास है. 

Web Title: RBI surplus: Unnecessary dispute over Reserve Bank's surplus

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