प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः बजट सॉफ्ट नहीं, बोल्ड होगा!
By Prakash Biyani | Published: June 24, 2019 08:51 PM2019-06-24T20:51:11+5:302019-06-24T20:51:11+5:30
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने दल के भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट 5 जुलाई को पेश करेंगी. अनुमान है कि बजट लोकलुभावन नहीं होगा.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने दल के भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट 5 जुलाई को पेश करेंगी. अनुमान है कि बजट लोकलुभावन नहीं होगा. उन्हें तो उस फॉल्ट लाइन को फिल करना है जो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाए हैं.
मसलन, मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में किसानों की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, फसल बीमा उपलब्ध करवाया, सिंचाई संसाधन बढ़ाए, पर ग्रामीणों की आय नहीं बढ़ी तो चुनाव के ठीक पहले छोटे किसानों को सालाना 6 हजार रुपए नगद राशि देनी पड़ी. निर्मला सीतारमण के लिए चिंता की बात है कि इतने प्रयासों के बाद भी ग्रामीण अंचल में फीलगुड मिसिंग है. गांव से शहरों की ओर पलायन घट नहीं रहा है.
मोदी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़कें, पुल, फ्लाईओवर, रेलवे, एयरपोर्ट आदि) पर खूब पैसा खर्च किया, शहरों को स्वच्छ और स्मार्ट बनाया, पर रियल एस्टेट सेक्टर परेशान है कि मकान नहीं बिक रहे हैं, ऑटो सेक्टर हैरान है कि गाड़ियां नहीं बिक रही हैं. व्हाइट गुड्स (फ्रिज, वॉशिंग मशीन, एसी) की बिक्री नहीं बढ़ रही है. लोग पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं तो लोगों की बचत भी नहीं बढ़ रही है. मार्केट में नगदी की कमी है. निजी निवेश नहीं बढ़ना मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ में बाधा बना हुआ है, जिसके कारण रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं. महंगाई पर नियंत्नण के बावजूद शहरों में भी फीलगुड मिसिंग है.
निजी सेक्टर की हवाई सेवा कंपनी जेट एयरवेज को बैंक बचा नहीं पाए और 25 हजार जेट कर्मचारी बेरोजगार हो गए. दूरसंचार क्षेत्न की सरकारी कंपनियां एमटीएनएल और बीएसएनएल डूबने के कगार पर पहुंच गई हैं और इनके ढाई लाख से ज्यादा कर्मचारियों पर बेरोजगार होने की तलवार लटकी हुई है. यही नहीं, सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, (दिवालिया कानून) लागू किया तो उम्मीद जगी थी कि डिफॉल्टरों की सम्पदा बेचकर बैंक डूब चुका कर्ज वसूल करेंगे, पर डिफॉल्टरों ने इस कानून में भी सेंध लगा दी.
डिफॉल्टरों की सम्पदा कागजों में ही बिकी है, खरीददारों को कारखानों का कब्जा नहीं मिला है और न ही बैंकों को अपनी पूंजी मिली है. निर्मला सीतारमण के लिए चिंता की बात है कि कर्ज वसूली प्रक्रिया निर्धारित अवधि (280 दिन) में पूरी नहीं हो रही है और सरकार को रिजर्व बैंक से गुहार लगानी पड़ी है कि वह अपना रिजर्व घटाए यानी आर्थिक आपदाकाल के लिए संग्रहित पूंजी सरकार को दे ताकि बजट घाटा नियंत्रित रहे व मार्केट में तरलता बढ़े. प्रथम दृष्टया अप्रिय लगनेवाले फैसले लिए जा सकते हैं, लंबित आर्थिक सुधार अभियान शुरू हो सकता है जिसमें भूमि सुधार कानून और श्रमिक कानून में बदलाव मुख्य है.