पवन के. वर्मा का ब्लॉग: खुद विपक्ष के लिए नुकसानदेह है उसका बिखरा होना

By पवन के वर्मा | Published: April 21, 2019 11:52 AM2019-04-21T11:52:41+5:302019-04-21T11:52:41+5:30

केंद्र सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर निम्न प्रकार के खर्च किए जा रहे हैं : खाद्य सब्सिडी पर 140,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष, रोजगार गारंटी एवं दूसरी कल्याणकारी योजनाओं पर 136,000 करोड़ एवं शिक्षा व स्वास्थ्य पर 134,000 करोड़, कुल 410,000 करोड़. इस रकम का मेरे आकलन में आधा यानी 205,000 करोड़ प्रशासनिक खर्च में जाता है.

Of wind Verma's blog: It is harmful to the opposition itself, its scattered in loksabha elections 2019 | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: खुद विपक्ष के लिए नुकसानदेह है उसका बिखरा होना

कांग्रेस ने ऐलान किया कि यदि वह सत्ता में आई तो गरीब व्यक्ति को यानी केवल छोटे किसान को ही नहीं, बल्कि देश के हर गरीब नागरिक के खाते में 6,000 रुपया प्रति माह या 72,000 रु. प्रति वर्ष की रकम सीधे डाली जाएगी

Highlightsदेश में पेट्रोल और डीजल की 14,532 करोड़ लीटर की खपत होती है.10 रु. प्रति लीटर का यूबीआईएस सेस लगा दिया जाए तो 140,000 करोड़ रु. अर्जित हो सकते हैं.जीएसटी पर यदि 10 प्रतिशत यूबीआईएस सेस लगा दिया जाए तो 120,000 करोड़ रु. प्रतिवर्ष अर्जित हो सकते हैं.

चु नाव के इस मौसम में दोनों प्रमुख पार्टियों भाजपा तथा कांग्रेस के बीच मतदाताओं को लुभाने की घोषणाएं की जा रही हैं. पहले भाजपा के वित्त मंत्नी ने अंतरिम बजट में ऐलान किया कि हर छोटे किसान के खाते में 6,000 रुपए की रकम प्रति वर्ष सीधे डाल दी जाएगी. इसके बाद कांग्रेस ने ऐलान किया कि यदि वह सत्ता में आई तो गरीब व्यक्ति को यानी केवल छोटे किसान को ही नहीं, बल्कि देश के हर गरीब नागरिक के खाते में 6,000 रुपया प्रति माह या 72,000 रु. प्रति वर्ष की रकम सीधे डाली जाएगी जिससे वह अपनी मौलिक जरूरतों को पूरा कर सकें. दोनों पार्टियों को यह समझ आ रहा है कि सरकारी योजनाओं  से गरीब को राहत पहुंचाने की योजनाएं सफल नहीं हुई हैं. 

इस प्रस्तावित नगद ट्रांसफर योजना का एक सीधा लाभ यह होगा कि गरीबी पूरी तरह दूर हो जाएगी बशर्ते सभी नागरिकों को इन योजनाओं में शामिल किया जाए. ऐसे नगद ट्रांसफर को यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम अथवा यूबीआईएस कहा जाता है. इस योजना का दूसरा लाभ होगा कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में मांग व निवेश का सुचक्र स्थापित हो जाएगा. यही रकम यदि कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से व्यय की जाती है तो उसके एक हिस्से का रिसाव हो जाता है. सीधे नगद देने में यह रिसाव बंद हो जाएगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. तीसरा लाभ होगा कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त नौकरशाही के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाएगी. इन सभी लाभों को देखते हुए देशवासियों को सीधे रकम देने की योजना को लागू करना चाहिए. लेकिन सभी को संशय है कि इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी? इस संशय को बल इससे मिलता है कि विश्व में सिर्फ एक देश ने यूबीआईएस को प्रयोग के रूप में लागू किया था, फिनलैंड ने. और फिनलैंड ने इस योजना को केवल 2 साल बाद ही त्याग दिया क्योंकि इसका आर्थिक भार बहुत अधिक था. लेकिन मेरे गणित के अनुसार अपने देश में यह भय निर्मूल है चूंकि हम बहुत बड़ी रकम कल्याणकारी योजनाओं पर व्यय कर रहे हैं. सरकार चाहे तो यूबीआईएस के लिए धन जुटा सकती है. गणित इस प्रकार है -

केंद्र सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर निम्न प्रकार के खर्च किए जा रहे हैं : खाद्य सब्सिडी पर 140,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष, रोजगार गारंटी एवं दूसरी कल्याणकारी योजनाओं पर 136,000 करोड़ एवं शिक्षा व स्वास्थ्य पर 134,000 करोड़, कुल 410,000 करोड़. इस रकम का मेरे आकलन में आधा यानी 205,000 करोड़ प्रशासनिक खर्च में जाता है. शेष का आधा यानी 102,000 करोड़ बीपीएल परिवारों को मिलता है और शेष का आधा 102,000 करोड़ एपीएल परिवारों को मिलता है जिसका बीपीएल को नुकसान होगा. केंद्र सरकार द्वारा ही फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम पर 100,000 करोड़ रु. की सब्सिडी हर वर्ष दी जा रही है. इसे समाप्त कर दिया जाए तो मेरे आकलन में बीपीएल परिवारों को इसका 5 प्रतिशत यानी 5000 करोड़ का नुकसान होगा. फर्टिलाइजर तथा पेट्रोलियम की सब्सिडी में उनका हिस्सा कम होगा क्योंकि इन माल की खपत बीपीएल द्वारा कम की जाती है. शेष 95,000 करोड़ का घाटा एपीएल परिवारों को होगा.

सरकार कुछ रकम अतिरिक्त टैक्स लगाकर अर्जित  कर सकती है. अपने देश में पेट्रोल और डीजल की 14,532 करोड़ लीटर की खपत होती है. इस पर 10 रु. प्रति लीटर का यूबीआईएस सेस लगा दिया जाए तो 140,000 करोड़ रु. अर्जित हो सकते हैं. इसी प्रकार जीएसटी पर यदि 10 प्रतिशत यूबीआईएस सेस लगा दिया जाए तो 120,000 करोड़ रु. प्रतिवर्ष अर्जित हो सकते हैं. इन दोनों मदों पर 260,000 करोड़ रु. अर्जित किए जा सकते हैं. इसमें बीपीएल पर भार 10} यानी 26,000 करोड़ रुपए पड़ेगा, जबकि एपीएल पर भार 90} यानी 234,000 करोड़ पड़ेगा क्योंकि पेट्रोल एवं अन्य वस्तुओं की अधिकाधिक खपत एपीएल परिवारों द्वारा ही की जाती है. केंद्र सरकार द्वारा आयकर पर यदि 10} का यूबीआईएस सेस लगा दिया जाए तो 100 करोड़ रु. अर्जित किए जा सकते हैं जिसका पूरा भार एपीएल परिवारों पर पड़ेगा क्योंकि बीपीएल परिवार आयकर नहीं देते हैं.

उपरोक्त गणना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा 410,000 करोड़ विभिन्न सब्सिडियों को समाप्त करके, 100,000 करोड़ फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम सब्सिडी समाप्त करके, 260,000 करोड़ रु. पेट्रोल एवं जीएसटी पर सेस लगाकर और 100,000 करोड़ इनकम टैक्स पर सेस लगाकर अर्जित किए जा सकते हैं. यह कुल मिलाकर 870,000 करोड़ होता है. इस रकम से 135 करोड़ लोगों को 6,000 रु. प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष दिया जा सकता है. यदि पांच लोगों का परिवार मानें तो यह रकम 30,000 रु, प्रति परिवार प्रति वर्ष अथवा 2,500 रु. प्रति परिवार प्रति माह बैठती है. इस रकम को देने में सरकार पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा. 

अंतिम आकलन है कि केंद्र सरकार अपने ही बल पर यूबीआईएस को लागू कर सकती है. वित्त मंत्नी ने जो छोटे किसान को सीधे रकम देने का वायदा किया है, उसका विस्तार करना चाहिए. कांग्रेस को यूबीआईएस को केवल गरीबों पर लागू करने के स्थान पर सम्पूर्ण जनता पर लागू करना चाहिए. 

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