उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉगः लोककल्याणकारी भूमिका में बजट

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 2, 2019 08:29 AM2019-02-02T08:29:27+5:302019-02-02T09:24:54+5:30

एक फरवरी को संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्नी पीयूष गोयल ने जिस तरह खजाने का मुंह किसानों, मजदूरों और गरीब लोगों के लिए खोला है, उससे तो यही जाहिर होता है.

Mesh Chaturvedi's blog: Budget in the welfare role | उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉगः लोककल्याणकारी भूमिका में बजट

फाइल फोटो

साढ़े 27 साल पहले तत्कालीन वित्त मंत्नी मनमोहन सिंह ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए उदारीकरण की राह तो पूरी तैयारी के साथ चुनी थी, लेकिन इस उदारीकरण ने जाने-अनजाने लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को भी कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई. हाल के वर्षो में उदारीकरण के जरिए दुनिया के ज्यादातर देशों में स्थापित हुए क्रोनी कैपिटलिज्म पर बड़ा आरोप यही रहा कि उसने अमीरों को जिस अनुपात में और ज्यादा अमीर बनाया, उस अनुपात में गरीबों की गरीबी दूर नहीं हुई.

1.9 ट्रिलियन डॉलर वाली हैसियत के साथ भारत को दुनिया की छठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में बेशक इसी उदारीकरण का योगदान है. लेकिन यह भी सच है कि शस्य संस्कृति वाला अपने देश का किसान देश की बढ़ती आर्थिक ताकत के साथ ही चिंताओं के घेरे में रहा है. लेकिन लगता है कि अब समय का चक्र  घूम रहा है. भारतीय राजनीति एक बार फिर लोककल्याणकारी राज व्यवस्था को अपनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है. एक फरवरी को संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्नी पीयूष गोयल ने जिस तरह खजाने का मुंह किसानों, मजदूरों और गरीब लोगों के लिए खोला है, उससे तो यही जाहिर होता है.

बजट भाषण में पांच एकड़ से कम के रकबा वाले किसानों को हर महीने पांच सौ रुपए देने का ऐलान हो या फिर एम्प्लॉई प्रोविडेंट फंड वाले लोगों के दुर्घटना बीमा को तीन लाख से छह लाख रुपया करना हो या फिर आयकर की छूट सीमा पांच लाख रुपए करना हो, ये प्रस्ताव शुद्ध रूप से उस व्यक्ति के हित में हैं, जिसकी आय बेहद सीमित है, जो समाज के निचले तबके से आता है. किसानों के लिए घोषित राहत का फायदा देश के करीब 12 करोड़ किसान परिवारों को मिलेगा. 

चुनावी साल में आए इस बजट को माना जाएगा कि यह उन किसानों और मजदूरों की बड़ी तादाद को पटाने और आकर्षित करने की कोशिश है, जो असल में शहरी नागरिकों की तुलना में ज्यादा संख्या में वोट देने के लिए निकलता है. वैसे सत्ता संभालते वक्त नरेंद्र मोदी के एक भाषण को याद किया जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि चार साल कठोर परिश्रम करेंगे और आखिरी साल राजनीति. हो सकता है कि लोककल्याण की इन योजनाओं की भूमिका उनके मन में पहले से ही हो. वजह चाहे जो भी हो, लोक कल्याणकारी भूमिका में लौटती इस राजनीति और राज व्यवस्था का स्वागत ही किया जाना चाहिए. 

Web Title: Mesh Chaturvedi's blog: Budget in the welfare role

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