लोकमत संपादकीयः उम्मीदों के अनुरूप लोकलुभावन बजट

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 2, 2019 08:05 AM2019-02-02T08:05:57+5:302019-02-02T08:05:57+5:30

किसानों के लिए जो साल में छह हजार रु. देने की घोषणा की गई है, वह कुछ खास नहीं है. किसानों की कजर्माफी की जो मांग जोर पकड़ रही थी, इसके जरिये सरकार ने उसकी मामूली भरपाई करने की कोशिश की है.

Lokmat editorial: Populist budgets based on expectations | लोकमत संपादकीयः उम्मीदों के अनुरूप लोकलुभावन बजट

फाइल फोटो

मोदी सरकार का बहुप्रतीक्षित अंतरिम बजट कमोबेश उम्मीदों के अनुरूप ही दिखाई देता है. दो महीने बाद ही आम चुनाव होने वाले हैं, इसलिए जाहिर है कि इस अंतरिम बजट के माध्यम से सरकार द्वारा जनता को हरसंभव तरीके से लुभाने की कोशिश करने की उम्मीद थी. कहा जा सकता है कि सरकार पहली नजर में अपने इस प्रयास में सफल हुई है.

दो हेक्टेयर तक के किसानों के खाते में हर साल छह हजार रु. डालने तथा आयकर में छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख रु. तक किए जाने की घोषणा को इसी लोकलुभावन कोशिश का उदाहरण कहा जा सकता है, क्योंकि सरकार यदि वास्तव में किसानों और मध्यम वर्ग की हितचिंतक होती तो इस तरह के कदम पिछले चार वर्षो में भी उठा सकती थी.

असल में पिछले दिनों देश के तीन प्रमुख राज्यों में जिस तरह से विधानसभा चुनावों में लोगों ने भाजपा के खिलाफ अपनी नाराजगी का इजहार किया, उससे सरकार समझ गई कि अगर अब आखिरी समय में भी आम लोगों के लिए कुछ ठोस नहीं किया गया तो आम चुनावों में इसका खामियाजा निश्चित रूप से भुगतना पड़ेगा. दरअसल सरकार ने पिछले चुनावों के समय रोजगार के अवसर बढ़ाने, किसानों की हालत सुधारने और मध्यम वर्ग को राहत देने के जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किए जाने से जनता में नाराजगी का माहौल है. लेकिन किसी भी बहाने सही, आम लोगों का अगर भला होता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए.

हालांकि किसानों के लिए जो साल में छह हजार रु. देने की घोषणा की गई है, वह कुछ खास नहीं है. किसानों की कजर्माफी की जो मांग जोर पकड़ रही थी, इसके जरिये सरकार ने उसकी मामूली भरपाई करने की कोशिश की है. इसके अलावा श्रमिकों को जो 60 साल की उम्र के बाद तीन हजार रु. पेंशन देने की घोषणा की गई है, वह भी कोई बहुत आकर्षक नहीं है.

हर माह सौ-सौ रु. जमा कराने के बाद अगर तीस-पैंतीस साल बाद तीन हजार रु. हर माह मिलेंगे भी तो महंगाई को देखते हुए उस समय उसकी कितनी कीमत रहेगी? कुल मिलाकर सरकार ने दो माह पहले के विधानसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ नाराजगी प्रदर्शित करने वाले कमोबेश सभी वर्गो को खुश करने की कोशिश की है, क्योंकि रोजगार के घटते अवसरों और कृषि क्षेत्र की खराब होती हालत को देखते हुए ऐसा करना जरूरी था. अब देखना है कि आगामी आम चुनावों के मद्देनजर मतदाता इसे किस रूप में लेता है. 

Web Title: Lokmat editorial: Populist budgets based on expectations

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